भोपाल/ जयपुर. प्रदेश में होने वाले उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक बनाए गए पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में गरजने जा रहे हैं. सचिन पायलट 2 दिनों के दौरान 9 सभाओं को संबोधित करेंगे. इसके अलावा वो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी करेंगे.
ये पहला मौका है, जब सचिन पायलट ग्वालियर चंबल क्षेत्र में सिंधिया के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट के काफी अच्छे मित्र माने जाते हैं, लेकिन सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही दोनों ही नेताओं की विचारधाराएं अलग-अलग हो गई हैं. सचिन पायलट की भाषण शैली युवाओं के बीच काफी गहरी पैठ रखती है. यही वजह है कि, कांग्रेस ने सिंधिया के गढ़ में ही उन्हें मैदान में उतारा है. जिससे कांग्रेस को फायदा मिल सके. इसके अलावा सचिन पायलट 31 अक्टूबर को भी प्रदेश में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे.
पायलट की ताबड़तोड़ सभाएं
सचिन पायलट मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए 27 और 28 अक्टूबर को शिवपुरी, मुरैना, भिण्ड और ग्वालियर जिले की विभिन्न विधानसभाओं में कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे.
क्या अब पायलट के भरोसे चंबल में कांग्रेस ?
दरअसल सचिन पायलट युवा नेता हैं, और युवाओं में सचिन पायलट की लोकप्रियता काफी है. यही वजह है कि अब ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस की प्रचार प्रसार की कमान सचिन पायलट के हाथों रहने वाली है. लिहाजा एक बात तो साफ है कि, इस समय ग्वालियर-चंबल अंचल में बीजेपी और कांग्रेस लगातार अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हर जुगत का लगा रही है.
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दोनों पार्टियां इस अंचल में कोई कमी न रहे इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. यही वजह है कि अब चंबल अंचल में कांग्रेस लगातार ऐसा चेहरा तलाश कर रही है, जो इस उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कमी को पूरा कर सके.
दोस्ती और पार्टी की जिम्मेदारी दोनों कैसे ?
इधर कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि, सचिन पायलट देश के युवा नेता हैं. ग्वालियर-चंबल संभाग से उनका नाता गहरा है. प्रत्येक चुनाव में यहां प्रचार करने पायलट आते रहे हैं. युवाओं के बीच उनका अच्छा खासा क्रेज है. जिसके चलते कांग्रेस पार्टी राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को उपचुनाव में प्रचार के लिए उतार रही है. अब देखना होगा कि, ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे करीबी दोस्त सचिन पायलट कैसे ग्वालियर-चंबल अंचल में आकर उनके ही खिलाफ बयान बाजी करते हैं.
पायलट के प्रचार पर बीजेपी का तंज
बीजेपी ने सचिन पायलट के एमपी उपचुनाव में प्रचार करने की खबर सामने आने के बाद तंज कसना शुरू कर दिया है. पार्टी के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर का कहना है कि, अच्छी बात है कि, सचिन पायलट ग्वालियर चंबल संभाग में प्रचार प्रसार करेंगे. इस दौरान यहां के लोगों को ये जानने का मौका मिलेगा कि, आखिर किस तरीके से एक युवा नेता की उनके ही पार्टी के लोगों के द्वारा अपमान किया गया. प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए उनके लिए किस तरह के अपशब्दों का प्रयोग किया गया.
कौन किस पर होगा भारी ?
खैर, कौन किस पर भारी होगा, ये तो उपचुनाव साबित करेगा, लेकिन सचिन पायलट को प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सौंपने की प्रमुख वजह ग्वालियर-चंबल अंचल संभाग के मुरैना जिले की 5 सीटे और भिंड जिले की दो सीटों पर बढ़त बनाना है. ये सीटें गुर्जर बहुल होने के कारण कांग्रेस को ज्यादा फायदा मिलने के कयास लग रहे हैं. यह सभी विधानसभा ऐसी हैं, जहां पर गुर्जर वोट हर चुनाव में निर्णायक होता है. यही वजह है कि सचिन पायलट गुर्जरों का वोट कांग्रेस को दिलाने में किंग मेकर साबित हो सकते हैं.
दिग्विजय और कमलनाथ की सभाएं
वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी एक साथ 28 अक्टूबर को मुंगावली में एक जनसभा को संबोधित करेंगे. अभी तक दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे से ही चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हुए थे, लेकिन अब वो भी चुनावी रण में सामने आकर जनसभाओं को संबोधित करेंगे. वो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ एक ही मंच साझा करेंगे, इसके अलावा मुंगावली में कई स्थानीय कार्यक्रमों में भी शिरकत करेंगे.
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इसके बाद वो कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी करेंगे और आगे की रणनीति को तैयार करने का काम करेंगे. दिग्विजय सिंह ब्यावरा भी जाएंगे और वहां भी वो कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात कर चुनावी व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे.
बहुमत का समीकरण
राहुल लोधी के इस्तीफे के बाद कुल 230 सीटों में काग्रेस के 87 विधायक रह गए हैं, तो वहीं बीजेपी के कुल 107 विधायक हैं. 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा का विधायक है. बाकी की 29 सीटें फिलहाल खाली हैं, जिनमें से 28 पर उपचुनाव हो रहे हैं. जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, उसमें से कुल 25 सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा की वजह से खाली हुई हैं, जो पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं, तो वहीं दो सीटें कांग्रेस विधायकों और एक सीट बीजेपी विधायक के निधन से रिक्त हुई है. बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए मात्र नौ सीट जीतने की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को 28 सीटों की जरूरत पड़ेगी.