जयपुर. भरतपुर खनन को लेकर संत की आत्मदाह का मामला ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है. भाजपा प्रदेश स्तरीय फैक्ट माइनिंग समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार को दोषी (Allegation on Gehlot Government) ठहराया है. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि सरकार की अदूरदर्शिता के चलते एक संत को अपनी जान गंवानी पड़ी है. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है कि गहलोत सरकार ने घटना के बाद जो कार्रवाई की, वह पहले की होती तो संत की जान नहीं जाती.
भाजपा सरकार के फैसले को फॉलो करना चाहिए था : भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने रिपोर्ट लेने के बाद कहा कि रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया सरकार को फेल्योर नजर आ रहा है. खान मंत्री का इस्तीफा लेना चाहिए. पूनिया ने कहा कि ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा पूरे प्रदेश के लिए नहीं, बल्कि देशभर के लिए (Satish Poonia Targets Gehlot Government) आस्था का केंद्र है. वहां पर वैध और अवैध किस्म की माइनिंग होती है, लेकिन जब 2005 में बीजेपी सरकार ने प्रतिबंध लगाया था, उसे कांग्रेस की सरकार को फॉलो करना चाहिए था.
पूनिया ने कहा कि 551 दिन से अगर संतों का आंदोलन चल रहा था तो कांग्रेस को इस पर संज्ञान लेना चाहिए था, लेकिन सरकार ने लापरवाही की. जिसके कारण एक संत को जान गंवानी पड़ी. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जो कमेटी बनाई थी, उसने अपनी रिपोर्ट दे दी है. जल्द ही आलाकमान के निर्देश पर एक्शन प्लान तैयार करेंगे. पूनिया ने कहा कि प्रदेश में अराजकता का माहौल बन गया है. पूर्वी राजस्थान की घटना ने वहां के लोगों को उद्वेलित किया है. पार्टी सियासी समीकरण के हिसाब से नहीं, बल्कि अमन-चैन और सुख-शांति के लिए और वहां के आस्था के संरक्षण के लिए काम करेगी.
सरकार समय रहते कदम उठाती तो संत को आत्मदाह नहीं करना पड़ता : भाजपा प्रदेश स्तरीय फैक्ट माइनिंग समिति के सदस्य पूर्व कृषि मंत्री रहे प्रभुलाल सैनी ने कहा कि संपूर्ण तथ्य देखते हैं तो राजस्थान की सरकार की मिलीभगत इसमें सामने आती है. खास तौर से खनन मंत्री और राज्यमंत्री और यहां तक कि स्थानीय मंत्री जिम्मेदार हैं. उन्होंने 551 दिन से चल रहे साधुओं के आंदोलन को (Saints Movement Against Illegal Mining) गंभीरता से लिया होता तो यह घटना नहीं होती. यह राजस्थान की पहली घटना है, जहां कानून की रक्षा और पर्यावरण बचाने के लिए साधु-संत आंदोलन कर रहे हैं.
सरकारी उदासीनता के कारण ध्यान नहीं दिया गया. जब साधु ने सुसाइड का कदम उठा लिया उसके बाद आनन-फानन में आदेश निकाले गए. जब घटना हो गई, उसके बाद आनन-फानन में एफआईआर दर्ज हुई और कार्रवाई भी की गई. सैनी ने कहा कि यही कार्रवाई पहले कर दी जाती तो शायद एक संत को आत्मदाह जैसा कदम नहीं उठाना पड़ता. इससे यह स्पष्ट लगता है कि सरकार अपनी कमियों को छुपाने के लिए इस तरह का प्रयास कर रही है. सैनी ने कहा कि सरकार अभी वहां के साधु-संतों को दबाने का प्रयास कर रही है. वे वहां से किस तरह अपनी जगह छोड़ें, इसको लेकर काम किया जा रहा है. साधु-संत अभी वहां पर गीता पाठ कर रहे हैं. हम भी उनका साथ देंगे, लेकिन यह बात सही है कि इस पूरे प्रकरण में जो उदासीनता बरती गई है, वह एक साधु की मौत का कारण बनी है.
निरस्त पट्टों के बावजूद खनन होता रहा : सैनी ने कहा कि हमारी सरकार के वक्त में 2005 में साधु-संतों की बात को ध्यान रखते हुए और पर्यावरण की दृष्टि से उचित मानते हुए 202 पट्टे निरस्त किए थे. ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा के क्षेत्र में हमने किसी तरह की माइनिंग नहीं हो, इसको लेकर रोक लगाई थी. लेकिन जो अभी का घटनाक्रम है, यह कुछ माइनिंग को लीज की अनुमति देने के कारण हुई है. उसमें सरकार की मंशा साफ पता चलती है, क्योंकि अवैध खनन को संरक्षण दे रही थी.