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स्वतंत्रता दिवस से पहले ईटीवी भारत के कैमरे में कैद 'खोखले दावों की हकीकत'

ईटीवी भारत कैमरे में कैद आजादी की तस्वीर यह सात दशक बाद बदलाव की हकीकत बयां करती है. यह तस्वीर ब्यूरोक्रेट्स के आजादी के मायने से इतर है.

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Published : Aug 14, 2019, 9:25 PM IST

jaipur news, जयपुर खबर

जयपुर. स्वतंत्रता दिवस से पहले ईटीवी भारत ने कुछ राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की है. इस दौरान देश में आजादी के सही मायने जानने की कोशिश की गई. उनके जवाब तो सुनने में तो बहुत अच्छे लगे, लेकिन इसी बीच राजधानी के चौराहे पर एक बुजुर्ग और एक बच्चा हाथ में तिरंगा लेकर उसे बेचने के लिए जद्दोजहद करता दिखा.

ईटीवी भारत के कैमरे में कैद 'खोखले दावों की हकीकत'

देश की आजादी के 72 साल हो चले हैं. आज देश कई ऊंचाइयां छू कर रहा है, लेकिन आज देश में हर व्यक्ति के लिए आजादी के अपने अलग मायने हैं. एक ग्रहणी को रोजमर्रा के सामानों पर मिलने वाला डिस्काउंट उसकी आजादी है. एक व्यापारी को जीएसटी में राहत मिलना उसकी आजादी है. इसी तरह शहर के प्रथम नागरिक मेयर विष्णु लाटा की नजर में आजादी वो है जो स्वतंत्रता के बाद सुख-सुविधाओं का उपयोग और उपभोग देश वासियों की ओर से किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें: 6 साल बाद वापस मिला, खोया हुआ बेटा

वहीं स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक उज्जवल राठौड़ मानसिक आर्थिक और विचारों की आजादी की बात कह रहे हैं. वहीं डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज की मानें तो देश के उस अंतिम व्यक्ति जो सुख सुविधाओं के अभाव में है, उसे मूलभूत आवश्यकताएं मिले. उसके अधिकार सुरक्षित हो और वो अपने दायित्व पूर्ण करने के लिए सक्षम हो, वही सही मायने में आजादी है.

यह भी पढ़ें: झालावाड़ में बारिश का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है, किसानों के चेहरे पर आई मुस्कान

ये जवाब सुनने में तो काफी अच्छे लगते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी देश में भुखमरी के हालात है. राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती है. आज भी यहां तिरंगे को हाथ में लेकर चौराहे पर बेचने के लिये जद्दोजहद करते हुए एक मासूम और एक बुजुर्ग को देखा गया, जो दो वक्त की रोटी के लिए यह तमाम मशक्कत कर रहे थे. ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि जब देश के आखिरी गरीब व्यक्ति को मूलभूत आवश्यकताएं पहुंचने को आजादी कहा जा रहा है तो फिर इन गरीब और बेबस लोगों पर आखिर सरकार और प्रशासन की निगाहें क्यों नहीं पड़ती.

जयपुर. स्वतंत्रता दिवस से पहले ईटीवी भारत ने कुछ राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की है. इस दौरान देश में आजादी के सही मायने जानने की कोशिश की गई. उनके जवाब तो सुनने में तो बहुत अच्छे लगे, लेकिन इसी बीच राजधानी के चौराहे पर एक बुजुर्ग और एक बच्चा हाथ में तिरंगा लेकर उसे बेचने के लिए जद्दोजहद करता दिखा.

ईटीवी भारत के कैमरे में कैद 'खोखले दावों की हकीकत'

देश की आजादी के 72 साल हो चले हैं. आज देश कई ऊंचाइयां छू कर रहा है, लेकिन आज देश में हर व्यक्ति के लिए आजादी के अपने अलग मायने हैं. एक ग्रहणी को रोजमर्रा के सामानों पर मिलने वाला डिस्काउंट उसकी आजादी है. एक व्यापारी को जीएसटी में राहत मिलना उसकी आजादी है. इसी तरह शहर के प्रथम नागरिक मेयर विष्णु लाटा की नजर में आजादी वो है जो स्वतंत्रता के बाद सुख-सुविधाओं का उपयोग और उपभोग देश वासियों की ओर से किया जा रहा है.

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वहीं स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक उज्जवल राठौड़ मानसिक आर्थिक और विचारों की आजादी की बात कह रहे हैं. वहीं डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज की मानें तो देश के उस अंतिम व्यक्ति जो सुख सुविधाओं के अभाव में है, उसे मूलभूत आवश्यकताएं मिले. उसके अधिकार सुरक्षित हो और वो अपने दायित्व पूर्ण करने के लिए सक्षम हो, वही सही मायने में आजादी है.

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ये जवाब सुनने में तो काफी अच्छे लगते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी देश में भुखमरी के हालात है. राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती है. आज भी यहां तिरंगे को हाथ में लेकर चौराहे पर बेचने के लिये जद्दोजहद करते हुए एक मासूम और एक बुजुर्ग को देखा गया, जो दो वक्त की रोटी के लिए यह तमाम मशक्कत कर रहे थे. ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि जब देश के आखिरी गरीब व्यक्ति को मूलभूत आवश्यकताएं पहुंचने को आजादी कहा जा रहा है तो फिर इन गरीब और बेबस लोगों पर आखिर सरकार और प्रशासन की निगाहें क्यों नहीं पड़ती.

Intro:जयपुर - देश को आजाद हुए 7 दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। इसे लेकर ईटीवी भारत ने कुछ राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की कि उनके नज़र में आजादी के क्या मायने हैं। उनके जवाब सुनने में तो बहुत अच्छे लगे। लेकिन इसी बीच राजधानी के चौराहे पर एक बुजुर्ग और एक बच्चे को हाथ में तिरंगा लेकर उसे बेचने के लिए जद्दोजहद करते देखा। तो सवाल और गहरा हो गया कि क्या यही है सही मायने में आजादी।


Body:देश की आजादी के 72 साल हो चले हैं। आज देश कई ऊंचाइयां छू कर रहा है। लेकिन आज देश में हर व्यक्ति के लिए आजादी के अपने अलग मायने हैं। एक ग्रहणी को रोजमर्रा के सामानों पर मिलने वाला डिस्काउंट उसकी आजादी है। एक व्यापारी को जीएसटी में राहत मिलना उसकी आज़ादी है। इसी तरह शहर के प्रथम नागरिक मेयर विष्णु लाटा की नजर में आजादी वो है जो स्वतंत्रता के बाद सुख-सुविधाओं का उपयोग और उपभोग देश वासियों की ओर से किया जा रहा है।
बाईट - विष्णु लाटा, मेयर

तो, स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक उज्जवल राठौड़ मानसिक आर्थिक और विचारों की आजादी की बात कह रहे हैं।
बाईट - उज्ज्वल राठौड़, निदेशक, डीएलबी

वहीं डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज की माने तो देश के उस अंतिम व्यक्ति जो सुख सुविधाओं के अभाव में है, उसे मूलभूत आवश्यकताएं मिले। उसके अधिकार सुरक्षित हो, और वो अपने दायित्व पूर्ण करने के लिए सक्षम हो, वही सही मायने में आजादी है।
बाईट - मनोज भारद्वाज, डिप्टी मेयर

ये जवाब सुनने में तो काफी अच्छे लगते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि आज भी देश में भुखमरी के हालात है। राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती है। आज भी यहां तिरंगे को हाथ में लेकर चौराहे पर बेचने के लिये जद्दोजहद करते हुए एक मासूम और एक बुजुर्ग को देखा गया। जो दो वक्त की रोटी के लिए यह तमाम मशक्कत कर रहे थे।


Conclusion:ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब देश के आखिरी गरीब व्यक्ति को मूलभूत आवश्यकताएं पहुंचने को आजादी कहा जा रहा है। तो फिर इन गरीब और बेबस लोगों पर आखिर सरकार और प्रशासन की निगाहें क्यों नहीं पड़ती।
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