जयपुर. स्वतंत्रता दिवस से पहले ईटीवी भारत ने कुछ राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से बात की है. इस दौरान देश में आजादी के सही मायने जानने की कोशिश की गई. उनके जवाब तो सुनने में तो बहुत अच्छे लगे, लेकिन इसी बीच राजधानी के चौराहे पर एक बुजुर्ग और एक बच्चा हाथ में तिरंगा लेकर उसे बेचने के लिए जद्दोजहद करता दिखा.
देश की आजादी के 72 साल हो चले हैं. आज देश कई ऊंचाइयां छू कर रहा है, लेकिन आज देश में हर व्यक्ति के लिए आजादी के अपने अलग मायने हैं. एक ग्रहणी को रोजमर्रा के सामानों पर मिलने वाला डिस्काउंट उसकी आजादी है. एक व्यापारी को जीएसटी में राहत मिलना उसकी आजादी है. इसी तरह शहर के प्रथम नागरिक मेयर विष्णु लाटा की नजर में आजादी वो है जो स्वतंत्रता के बाद सुख-सुविधाओं का उपयोग और उपभोग देश वासियों की ओर से किया जा रहा है.
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वहीं स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक उज्जवल राठौड़ मानसिक आर्थिक और विचारों की आजादी की बात कह रहे हैं. वहीं डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज की मानें तो देश के उस अंतिम व्यक्ति जो सुख सुविधाओं के अभाव में है, उसे मूलभूत आवश्यकताएं मिले. उसके अधिकार सुरक्षित हो और वो अपने दायित्व पूर्ण करने के लिए सक्षम हो, वही सही मायने में आजादी है.
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ये जवाब सुनने में तो काफी अच्छे लगते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी देश में भुखमरी के हालात है. राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती है. आज भी यहां तिरंगे को हाथ में लेकर चौराहे पर बेचने के लिये जद्दोजहद करते हुए एक मासूम और एक बुजुर्ग को देखा गया, जो दो वक्त की रोटी के लिए यह तमाम मशक्कत कर रहे थे. ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि जब देश के आखिरी गरीब व्यक्ति को मूलभूत आवश्यकताएं पहुंचने को आजादी कहा जा रहा है तो फिर इन गरीब और बेबस लोगों पर आखिर सरकार और प्रशासन की निगाहें क्यों नहीं पड़ती.