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यहां विजय दशमी के चार दिन पहले होता है रावण दहन, 6 महीने तक चलता है सिलसिला

पूरे देश में विजय दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है. हालांकि जयपुर के रेनवाल में विजय दशमी के चार दिन पहले ही यह परंपरा निभा ली जाती है. खास बात ये है कि रावण दहन का यह सिलसिला अगले 6 माह तक चलता रहता (Ravan Dahan till 6 months in Jaipur) है. इसे लेकर यहां कहा जाता है कि रावण विजय दशमी तक नहीं बल्कि होली के बाद तक जिंदा रहता है. पढि़ए ये खास रिपोर्ट...

Ravan Dahan 4 days before Vijay Dashami in Renwal, Jaipur
यहां विजय दशमी के चार दिन पहले होता है रावण दहन, 6 महीने तक चलता है सिलसिला
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Published : Sep 29, 2022, 11:22 PM IST

रेनवाल (जयपुर). सुनने में अजीब लगता हो, लेकिन यह सच है. जहां पूरे देश में विजयदशमी को रावण दहन किया जाता है, वहीं जयपुर जिले के रेनवाल कस्बे में विजयदशमी से चार दिन पहले आसोज माह के नवरात्रा के छठे दिन रावण दहन (Ravan effigy combustion in Jaipur) होगा. यह सिलसिला अलग-अलग गांवों में अलग-अलग तिथियों को 6 माह तक चलता है. इसी वजह से यहां कहा जाता है कि रावण विजय दशमी तक नहीं बल्कि होली के बाद तक जिंदा रहता है.

रेनवाल में इसी माह की अष्टमी को झमावाली मैदान पर रावण दहन होगा. हरसोली में विजय दशमी को रावण दहन किया जायेगा. वहीं करणसर कस्बे में आसोज माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रावण दहन होगा. मींडी गांव में भी त्रयोदशी को रावण दहन व मेला का आयोजन होता है. बाघावास कस्बे में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रावण दहन होता है. बासडीखुर्द में कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन होता है.

विजय दशमी से चार दिन पहले यहां होता है रावण दहन...

पढ़ें: Special: यहां रावण दहन पर मनाते हैं शोक, जोधपुर के गोदा श्रीमाली रावण मंदिर में होता लंकापति का भव्य पूजन

नांदरी गांव में सबसे आखिर में, होली के भी बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को नृसिंह लीला व रावण दहन होता है. यह प्रक्रिया सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही है. इसके पीछे कई कारण हैं. मनोरंजन के साधन सीमित होने के कारण बुजुर्गों ने भिन्न-भिन्न तिथियों को मेले के आयोजन की ऐसी व्यवस्था बना दी, जिससे लोग आसपास के सभी मेलो में भाग लेकर अपना मनोरंजन कर सकें. व्यापारी भी आसपास के सभी मेले में शामिल होकर व्यापर कर सकें. साथ ही धर्म का प्रचार-प्रसार भी ज्यादा से ज्यादा हो सके.

पढ़ें: जानिए, कहां दशहरे पर नहीं किया जाता पुतला दहन

अनूठा है रेनवाल का दशहरा: इस दशहरा मेला में शामिल होने के लिए मुंबई, कोलकाता, असम, नेपाल, चैन्नई जैसी जगहों पर रहने वाले प्रवासी इस मेले में परिवार सहित शामिल होते हैं. दशहरा मेला कमेटी के कार्यकर्ता कई दिन पहले से ही तैयारी में जोर-शोर से जुट जाते हैं. मेले में नाईयों के बालाजी मंदिर से भगवान श्रीराम पालकी में बैठकर दशहरा मैदान पहुंचते हैं. उनके साथ मुखोटे लगाए पूरी वानर सेना नाचते हुए चलती है. पालकी के साथ विद्वान पंडित मूदंग की थाप पर पयाना दंडक बोलते हुए साथ चलते हैं. रास्ते में सुरपंखा का नाक कटना, विभीषण का शरणगति का चित्रण किया जाता है. इसके बाद दशहरा मैदान में करीब एक घंटे तक श्रीराम व रावण की सेना के बीच युद्ध चलता है.

पढ़ें: अंत की अनोखी परंपरा : पहलवानों ने पैरों से रौंदकर 'रावण' का अहंकार किया खत्म, जानें पूरी कहानी

इसके बाद रावण वध के साथ ही आतिशबाजी के साथ पुतले का दहन होता है. जीत की खुशी में पालकी में विराजे श्रीराम की रास्ते में जगह-जगह लोग आरती उतारते हैं. बड़ा मंदिर के सामने अवतार लीलाओं का आयोजन होता है. जहां मुखोटे लगाए राम की सेना के पात्र नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हैं. गणेशजी रिद्धि सिद्धि के साथ, रामदरबार, पंचमुखी हनुमान, आदि का वीर, मकरध्वज, केशर, मयंद, नल, नीर, सुग्रीव, अंगद, नीलकंठ, बराह अवतार, नरसिंह अवतार, गरूड वाहन, शिव परिवार आदि की झांकिया निकाली जाती हैं. इसमें दक्षिण भारतीय शैली का अनूठा नजारा देखने को मिलता है. यह मेला साम्प्रदायिक एकता को भी दर्शाता है. इसमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. मेले में भगवान की पूजा कर आशीर्वाद लेते हैं.

पढ़ें: SPECIAL: यहां बारहों महीने रहता है रावण परिवार, दशहरे के दिन लगता है लंकेश का दरबार...हर साल होता है रावण दहन

हालांकि धर्म शास्‍त्रों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मार कर शांति कायम की थी. इसे असत्य पर सत्य की जीत कहा जाता है. इसकी खुशी में इस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाते हुए रावण के पुतले का दहन किया जाता है. रेनवाल सहित आसपास के कई गांवों व कस्बों में होली के बाद भी दशहरा मनाकर रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जिसे बदलने की किसी ने आज तक कोशिश नहीं की. इसे लेकर कहा जाता है कि रावण विजय दशमी को नहीं मरता, बल्कि होली के बाद तक जिंदा रहता है.

रेनवाल (जयपुर). सुनने में अजीब लगता हो, लेकिन यह सच है. जहां पूरे देश में विजयदशमी को रावण दहन किया जाता है, वहीं जयपुर जिले के रेनवाल कस्बे में विजयदशमी से चार दिन पहले आसोज माह के नवरात्रा के छठे दिन रावण दहन (Ravan effigy combustion in Jaipur) होगा. यह सिलसिला अलग-अलग गांवों में अलग-अलग तिथियों को 6 माह तक चलता है. इसी वजह से यहां कहा जाता है कि रावण विजय दशमी तक नहीं बल्कि होली के बाद तक जिंदा रहता है.

रेनवाल में इसी माह की अष्टमी को झमावाली मैदान पर रावण दहन होगा. हरसोली में विजय दशमी को रावण दहन किया जायेगा. वहीं करणसर कस्बे में आसोज माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रावण दहन होगा. मींडी गांव में भी त्रयोदशी को रावण दहन व मेला का आयोजन होता है. बाघावास कस्बे में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रावण दहन होता है. बासडीखुर्द में कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन होता है.

विजय दशमी से चार दिन पहले यहां होता है रावण दहन...

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नांदरी गांव में सबसे आखिर में, होली के भी बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को नृसिंह लीला व रावण दहन होता है. यह प्रक्रिया सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही है. इसके पीछे कई कारण हैं. मनोरंजन के साधन सीमित होने के कारण बुजुर्गों ने भिन्न-भिन्न तिथियों को मेले के आयोजन की ऐसी व्यवस्था बना दी, जिससे लोग आसपास के सभी मेलो में भाग लेकर अपना मनोरंजन कर सकें. व्यापारी भी आसपास के सभी मेले में शामिल होकर व्यापर कर सकें. साथ ही धर्म का प्रचार-प्रसार भी ज्यादा से ज्यादा हो सके.

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अनूठा है रेनवाल का दशहरा: इस दशहरा मेला में शामिल होने के लिए मुंबई, कोलकाता, असम, नेपाल, चैन्नई जैसी जगहों पर रहने वाले प्रवासी इस मेले में परिवार सहित शामिल होते हैं. दशहरा मेला कमेटी के कार्यकर्ता कई दिन पहले से ही तैयारी में जोर-शोर से जुट जाते हैं. मेले में नाईयों के बालाजी मंदिर से भगवान श्रीराम पालकी में बैठकर दशहरा मैदान पहुंचते हैं. उनके साथ मुखोटे लगाए पूरी वानर सेना नाचते हुए चलती है. पालकी के साथ विद्वान पंडित मूदंग की थाप पर पयाना दंडक बोलते हुए साथ चलते हैं. रास्ते में सुरपंखा का नाक कटना, विभीषण का शरणगति का चित्रण किया जाता है. इसके बाद दशहरा मैदान में करीब एक घंटे तक श्रीराम व रावण की सेना के बीच युद्ध चलता है.

पढ़ें: अंत की अनोखी परंपरा : पहलवानों ने पैरों से रौंदकर 'रावण' का अहंकार किया खत्म, जानें पूरी कहानी

इसके बाद रावण वध के साथ ही आतिशबाजी के साथ पुतले का दहन होता है. जीत की खुशी में पालकी में विराजे श्रीराम की रास्ते में जगह-जगह लोग आरती उतारते हैं. बड़ा मंदिर के सामने अवतार लीलाओं का आयोजन होता है. जहां मुखोटे लगाए राम की सेना के पात्र नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हैं. गणेशजी रिद्धि सिद्धि के साथ, रामदरबार, पंचमुखी हनुमान, आदि का वीर, मकरध्वज, केशर, मयंद, नल, नीर, सुग्रीव, अंगद, नीलकंठ, बराह अवतार, नरसिंह अवतार, गरूड वाहन, शिव परिवार आदि की झांकिया निकाली जाती हैं. इसमें दक्षिण भारतीय शैली का अनूठा नजारा देखने को मिलता है. यह मेला साम्प्रदायिक एकता को भी दर्शाता है. इसमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. मेले में भगवान की पूजा कर आशीर्वाद लेते हैं.

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हालांकि धर्म शास्‍त्रों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मार कर शांति कायम की थी. इसे असत्य पर सत्य की जीत कहा जाता है. इसकी खुशी में इस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाते हुए रावण के पुतले का दहन किया जाता है. रेनवाल सहित आसपास के कई गांवों व कस्बों में होली के बाद भी दशहरा मनाकर रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जिसे बदलने की किसी ने आज तक कोशिश नहीं की. इसे लेकर कहा जाता है कि रावण विजय दशमी को नहीं मरता, बल्कि होली के बाद तक जिंदा रहता है.

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