जयपुर. प्रदेश में कर्ज के बोझ तले दबे किसानों को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है. एक तरफ किसानों की जमीनें नीलाम हो रही है, दूसरी तरफ बीजेपी और कोंग्रेस में जुबानी बयान बाजी तेज है. ऐसे में किसान नेता रामपाल जाट ने इस मामले (Rampal Jat conversation on farmer land auction) में अपने विचार रखे.
किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि 1984 से पहले किसी भी किसान जमीन नीलाम नहीं होती थी, यदि कोई किसान कर्ज नहीं चुका सकता था तो उसकी फसल जो पैदा होती थी, उसका जितनी उसकी आवश्यकता थी खाने के लिए उसे छोड़कर बाकी फसल से कर्ज चुकाया जाता था. लेकिन अब वक्त बदल गया है अब किसान के जीवन का सबसे अहम हिस्सा जिसे जमीन कहते हैं वही नीलाम होने लग गई.
निंदा आधारित राजनीति सही नहीं
रामपाल जाट ने कहा कि यह काम उस वक्त की केंद्र सरकार ने किया था. आज जो निंदा आधारित राजनीति हो रही है वह ठीक नही है. जिसमें खुद के पार्ट को काई नहीं देख रहा बस एक दूसरे की कमी देखता है, जबकि किसानों को लेकर सियासत नहीं होनी चाहिए . जाट ने कहा कि वर्तमान सरकार में जो आज काम किया है, वह पहले ही करना चाहिए था. सरकार ने 2019 में विधानसभा में रोडा एक्ट संशोधन करके पास किया था , वह अच्छा निर्णय था . जिसमें किसानों की जमीन नीलाम नहीं होने का प्रावधान किया.
लेकिन राजभवन और सरकार के बीच में जिस तरीके से इस बिल को लेकर आपसी सामंजस्य का भाव देखने को मिला. यह बड़ा दुर्भाग्य पूर्ण है. मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि केंद्र सरकार के पास राज्यपाल बिल नहीं भेजा, तो क्या यह जिम्मेदारी सरकार की बनती थी कि वह राज्यपाल से इस संदर्भ में आग्रह करती कि आप को जो बिल पास करके भेजा है. उसे केंद्र सरकार को भेजे.
सामंजस्य की रही कमी
रामपाल जाट ने कहा कि पहला सवाल राज्य सरकार ने राज्यपाल से क्यों इस बिल को केंद्र सरकार को भेजने की आग्रह किया, दूसरा कि जब सरकार ने किसी बिल को विधानसभा में पास कर दिया तो राज्यपाल इस बिल को दिल्ली भेजने को लेकर किस बात का इंतजार कर रहे हैं. क्या राज्यपाल की जिम्मेदारी नही बनती की वो सरकार को सूचित करते कि बिल केंद्र सरकार को भेजा गया या नहीं. कुल मिला कर आप से सामंजस्य की कमी की वजह से इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई .
राजनीतिक कारण किसानों को फुटबॉल बना रहे हैं , यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है . जाट ने कहा कि अगर किसान कर्ज नहीं चुका पाता है तो उसका कारण तो सरकार है . सरकार किसानों से फसल समर्थन मूल्य पर खरीदे. किसानों को उनकी उपज का उचित मुआवजा दे तो किसानों को कर्ज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. लेकिन सरकार इस पर तो काम नहीं करना चाहती. जाट ने कहा कि विधानसभा में विधेयक लाया गया था उसमे किसानों की जमीन नीलाम अलग रखी गई थी , अच्छा काम था लेकिन उस पर भी सियासत शुरू हो गई.
घोषणा होती है लेकिन मिलता कुछ नहीं
रामपाल जाट ने कहा कि यह सही बात है कि सरकार बनने से पहले कांग्रेस के घोषणा पत्र में किसानों की कर्ज माफी की बात की थी. इतना ही नहीं कांग्रेस के हाईकमान ने कहा था 10 दिन में प्रदेश के किसानों का सम्पूर्ण कर्जा माफ होगा लेकिन हुआ क्या , किसान वही कर्ज के बोझ तले दबा है . जाट ने निर्वाचन आयोग से मांग की है कि जो भी राजनीतिक पार्टी का नेता ऐसी घोषणा करे और उसे पूरा नहीं करे तो उसके खिलाफ दंडित सहिंता में मुकदमा दर्ज हो और कानूनी करवाई की जाए. इसके साथ राजनीति दल की मान्यता समाप्त करें.
दोनों पार्टियों ने झूठे वादे करके गुमराह किया
जाट ने कहा कि घोषणा पत्र का अपना महत्व होता है लोग उस पर भरोसा करते हैं. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने वादा पूरा नहीं किया , बीजेपी ने 2009 में भी इसी तरह की घोषणा की थी और उन्होंने कहा था कि देश का किसान खुशहाल बनाएं . संपूर्ण रुप से ऋण माफ करके , ऋण मुक्त किसान बनाएंगे , लेकिन हुआ कुछ भी नहीं . बीजेपी हो या कांग्रेस का दोनों ने ही झूठे वादे करके किसानों को गुमराह किया है .
अधिकारियों को पाबंद क्यों नहीं किया
रामपाल जाट ने कहा कि जब 2019 में बिल पास हो गया था तो सरकार प्रदेश में अपने अधिकारियों को पाबंद क्यों नहीं कर पाई कि किसी भी किसान की जमीन नीलामी नहीं की जाए. जमीन नीलामी का अधिकार तहसीलदार और एसडीओ के पास है. अगर कोई भी बैंक का कर्ज किसान नहीं चुका पाता है तो बैंक संबंधित तहसील के अधिकारी के पास जाता है . वह अधिकारी किसान को नोटिस जारी करता है .
नोटिस के बाद सीधी नीलामी कर दी जाती है. इसमें किसी तरह की कोई सुनवाई का अधिकार नहीं है. इन सब बातों का पता होने के बाद भी सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए. इससे यह साफ समझ में आता है कि सरकार चाहे बीजेपी हो चाहे कांग्रेस की हो किसान उनकी प्राथमिकता में नहीं है.