जयपुर. राखी के त्योहार (Raksha Bandhan 2022) को भाई-बहन के अटूट प्रेम के पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस त्योहार का मतलब है रक्षा के लिए भाई की कलाई पर बहन की तरफ से बांधा गया रक्षा सूत्र. इस बार जयपुर में यह रक्षा सूत्र न सिर्फ भाई और बहन के इस पर्व में दोनों की रक्षा का पैगाम होगा बल्कि पर्यावरण की रक्षा का भी संकेत होगा. रक्षाबंधन पर जैविक खेती और उत्पादों को तैयार करने वाली जयपुर की एक स्वयंसेवी संस्था ने खास तरह की राखी तैयार की है, जिसमें तुलसी, अश्वगंधा, कालमेघ जैसे औषधीय पौधों के बीज होंगे. साथ ही गोबर से बनी राखियां इन बीजों के अंकुरण में सहायक होगी.
इको फ्रेंडली होगी राखी- आम तौर पर रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2022) में रेशम की डोरी वाली फैंसी राखियों का ट्रेंड बाजार में सेट मिलता है. ये राखियां कलाई से उतरने के बाद अक्सर डस्टबीन का हिस्सा हो जाया करती थी, लेकिन इस बार इस तरह की राखियों का विकल्प बाजार में मौजूद है जिन्हें लोग भी पसंद कर रहे हैं. जयपुर के सांगानेर में स्थित पिंजरापोल गोशाला से जुड़ी महिला स्वयं सहायता समूह की टीम ने गोबर से बनी औषधीय पौधों के बीज वाली राखियां तैयार की है, जिन्हें इस्तेमाल के बाद गमले में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा. इन राखियों से ऑर्गेनिक पौधे निकलेंगे. ये पौधे पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही लंबे समय तक भाई-बहन की राखी की याद को भी बरकरार रख सकेंगे. मतलब त्योहार के बाद जब यह राखी गमले या बागीचे में रखी जाएगी, तो लगातार पानी डालने से इसके अंदर से पौधे निकलेंगे, जो घर और बागीचे की सुंदरता भी बढ़ाएंगे.
इस प्रक्रिया से तैयार होती है राखी- जयपुर के इस स्वंय सहायता समूह की तरफ से तैयार की गई इको फ्रेंडली राखियों (Eco friendly Rakhi) का रिस्पांस काफी मिल रहा है. इसका उदाहरण है इस साल बीज वाली इन इको फ्रेंडली राखियों की डिमांड आई है. ये महिलाएं बताती हैं कि हम गोबर को अच्छी तरह धूप में सूखा लेते हैं, जिससे 95 प्रतिशत तक गोबर की गंध चली जाती है. इसके बाद सूखी गोबर के बारीक चूर्ण में जटामासी, गाय का देशी घी, हल्दी, सफेद चिकनी मिट्टी और चंदन मिलाया जाता है.
सबसे आखिर में ग्वार फली का चूर्ण मिलाकर पानी के साथ पूरे मिश्रण को आटे की तरह गूंदा जाता है. ग्वार फली गोंद का काम करती है, जिससे पूरा मिश्रण न केवल सख्त हो जाता है, बल्कि इसकी ऊपरी सतह चिकनी और चमकदार हो जाती है. पानी के लगातार संपर्क में रहने से गोंद और गोबर घुल जाते हैं. राखी तैयार होने के बाद पीछे की सतह में मोली का धागा लगा दिया जाता है, जो कलाई में बांधने के काम आता है. पूरी प्रक्रिया में रासायनिक वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता है. फिलहाल इस कार्य में करीब 10 महिलाएं जुटी हुई हैं.
पढ़ें- रक्षाबंधन: जानें किसने बनाई डायमंड राखी और कितनी है इसकी कीमत
प्रकृति प्रेम से जुड़ी है पुरानी प्रथा- भारतीय जैविक महिला किसान उत्पादक संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष संगीता गौड़ ने बताया कि अक्सर देखने में आता है कि बाजार में महंगी से महंगी राखियां खरीदी जाती है और रक्षा बंधन के कुछ दिन बाद डस्टबीन की शोभा बनती है. रक्षाबंधन पवित्र बन्धन का पवित्र त्योहार है, भाई की कलाई से उतरी हुई राखी भी पवित्र मानी जाती है. पुरानी मान्यताओं के मुताबिक राजस्थान में रक्षाबंधन के 8 दिन बाद गोगा नवमी मनाई जाती हैं, गोगाजी को राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है. राजस्थान का यह सदियों पहले से रिवाज रहा है की राखी के बाद सभी उतरी हुई राखियों को रक्षाबंधन के आठ दिन बाद गोगानवमी को गोगा जी को भेंट किया जाता है. इन भावनाओं को मद्देनजर गाय के गोबर और औषधीय बीजों की राखी को गोगा नवमी के दिन गोगा जी के साथ या बिना राखी को गमले में डालने से आपके पवित्र रिश्ते की तरह वह राखी नन्हें-नन्हें पौधों का निर्माण करेगी. जिससे आपके घर में रक्षाबंधन पर भाई के रक्षा के आशीर्वाद के स्वास्थ्य रक्षा का भी आह्वान होगा.
गोवंश संरक्षण भी होगा- भारतीय जैविक महिला किसान उत्पादक संघ के मुताबिक नेचर फ्रेंडली राखी प्रकृति प्रेम की मिसाल के साथ-साथ गोवंश के संरक्षण का पैगाम देगी. इससे पहले इस स्वयं सहायता समूह की महिलाएं दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश, स्वास्तिक, ऊं, पेन स्टैंड और फ्लॉवर पाट बनाती हैं. इससे महिलाओं को आजीविका तो मिल रही है, साथ ही गोवंश के संरक्षण के लिये जरूरी आर्थिक मदद भी जमा हो जाएगी. गोपालकों को भी प्रति गाय चार-पांच हजार रुपये की आय हो जा रही है, यहां तक की दूध नहीं देने वाली गायों को भी गोमूत्र और गोबर के जरिये बचाया जा सकता है.