जयपुर. संसद के दोनों सदनों में पारित हुए कृषि विधेयकों के खिलाफ जारी सियासय, अब गरमा गई है. कांग्रेस नेतृत्व ने कांग्रेस शासित सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को निर्देश दिया है. साथ ही बताया है कि किसानों से जुड़े नए कानून को लागू करने के बजाए आर्टिकल 254(2) का इस्तेमाल करते हुए कृषि कानूनों के खिलाफ कानून बनाएं. इसको लेकर राजस्थान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया है.
राठौड़ ने कहा कि केंद्र सरकार के कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवा विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून का रूप ले चुका है. उसके खिलाफ कांग्रेस पार्टी नेतृत्व का यह फैसला, किसानों की खुशहाली के मार्ग को रोकने वाला फैसला साबित होगा.
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राठौड़ के अनुसार देश में किसान के दम पर दशकों तक शासन करने वाली कांग्रेस ने किसानों के कल्याण के बारे में कभी नहीं सोचा. 10 साल से ज्यादा समय तक स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में रखने वाली कांग्रेस, अब जब देश के किसानों को लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना प्रारंभ हो गया. किसानों की दशकों पुरानी मांग अपने उत्पाद को जहां चाहे जिसे चाहे बेचने का अधिकार मिलना सुनिश्चित हो गया. साथ ही पूर्व में लागू कृषि उपज अधिनियम को यथावत रखते हुए किसानों को बड़ी व्यवस्था देने के लिए केंद्र सरकार प्रगतिशील कानून लेकर आए तो कांग्रेस पार्टी किसानों की आमदनी 2022 तक दोगना करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प में रोड़ा अटकाने लगी और ढोंग रचकर किसानों को गुमराह करने का काम कर रही है.
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राठौड़ ने कहा कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का यह निर्णय राजस्थान सहित कांग्रेस शासित प्रदेशों की विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार के किसानों के हित में लाए गए लोक कल्याणकारी विधायकों को रोकने का निर्णय करना न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए आत्मघाती होगा. बल्कि देश के किसानों की खुशहाली के मार्ग को रोकने वाला भी होगा. कांग्रेस नेतृत्व का यह फैसला, इस बात का परिचायक है कि कांग्रेस पार्टी कभी नहीं चाहती है कि देश का पेट भरने वाला अन्नदाता उनके सामान समृद्ध और सशक्त हो पाए. कांग्रेस पार्टी ऐसा करके देश की संघीय व्यवस्था को चुनौती देने पर उतारू है. जो देश के लोकतंत्र को कमजोर करने का काम होगा. इसके विपरित मोदी सरकार भी किसानों को उनके अधिकार देने के लिए दृढ़ संकल्पित है.