जयपुर. वर्ष 2021 किसान आंदोलन के नाम रहा. तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ किसान आंदोलन (farmer agitation against agricultural laws) 15 दिसंबर को 378वें दिन समाप्त हुआ. साल भर किसान सर्दी, गर्मी और बरसात का सामना करते हुए तंबुओं में ही दिन रात काटे. वर्ष 2021 किसानों के लिए कैसा रहा इस पर किसान नेता एवं किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि देश के किसान जो खेतों में मेहनत कर फसल तैयार करता है वह अपने खेत-खलिहान छोड़कर अपने हक के लिए धरने (protest against agriculture laws in rajasthan) पर बैठा रहा. एक वर्ष से भी ज्यादा दिनों तक चले इस आंदोलन में किसानों को कई उतार चढ़ाव से भी गुजरना पड़ा. कई बार आंदोलन कमजोर पड़ता दिखा तो किसान दोबारा एकजुट हुए और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला.
उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में जहां युवाओं का जोश और उत्साह दिखाई दिया वहीं 80 साल के बुजुर्गों का दृढ़ निश्चय और धैर्य भी आंदोलन को इतना लंबा चलाने में सहायक रहा. संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 नवंबर 2020 से आंदोलन शुरू हुआ जो दिल्ली बॉर्डर पर 378वें दिन समापन हुआ है. आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान गंवाई है. रामपाल जाट ने कहा कि किसान आंदोलन भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन अभी भी कुछ मांगों को लेकर किसान टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर डेट हुए हैं. इनकी मांग है कि फसल के समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर कानून (Farmer Demand to make law for MSP) बनाया जाए.
कानून बनने के साथ शुरू हुआ विरोध
14 सितंबर 2020 को कृषि कानून बिल लोकसभा में पेश किया गया जो 17 सितंबर 2020 को पास हुआ. 27 सितंबर 2020 को दोनों सदनों से पास बिलों पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर किए. इसके बाद आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 बने. इसके बाद देशभर में किसानों के विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. जाट ने कहा कि किसानों के इस आंदोलन में राजस्थान पीछे नही रहा. 15 किलोमीटर लंबी ट्रैक्टर रैली राजस्थान के बारां जिले में निकली. हर जिला मुख्यालय पर धरने दिए गए और कानून को लेकर नाराजगी भी जताई गई.
सीमाओं पर पहुंचने से पहले ही शुरू हो गया था आंदोलन
किसान आंदोलन की शुरुआत उनके दिल्ली पहुंचने से पहले ही तब शुरू हो गई थी, जब सरकार जून के पहले सप्ताह में कोरोना काल के बीच तीन कृषि अध्यादेश लेकर आई. इसका विरोध विपक्षी दलों के साथ-साथ किसान संगठनों ने भी शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे पंजाब और हरियाणा में इसका विरोध तेज होता गया. पंजाब में इसके विरोध में रेल रोको आंदोलन से लेकर कई प्रकार के विरोध प्रदर्शन किए गए. राजस्थान के किसानों ने भी सरकार के पूतले फूंके. अगस्त में किसानों ने जेल भरो आंदोलन किया और सैकड़ों किसानों ने गिरफ्तारियां दीं.
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थाने में गूंजा... पूरा मोल घर में तोल
रामपाल जाट ने कहा कि इसी साल किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन के दौरान जेल भी गए. किसानों को दिल्ली के उसी संसद मार्ग पुलिस थाने में रखा गया जिसमें आजादी से पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को रखा गया था. उसी जेल में किसानों ने 'पूरा मोल, घर में तोल' का का नारा दिया. जेल में किसानों ने सत्याग्रह किया, जेल की उन तीनों बैरक को राखी बांधी जिसमे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को रखा गया था .
इसी साल सुप्रीम कोर्ट में सभी याचिकाओं एक साथ किया
किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि बीते 4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने विवादित तीनों कानून को लेकर अलग-अलग कोर्ट में चल रही याचिकाओं को एक जगह सुप्रीम कोर्ट मे मंगवा लिया जिस पर सुनवाई होनी थी. हालांकि इससे पहले 19 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन करते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर कर दिया था.
खरीद की गारंटी का कानून
रामपाल जाट ने कहा कि ‘एमएसपी पर खरीद का कानून बनाओ’ यह मांग तो किसानों की अभी भी जारी है. एमएसपी की घोषणा सबसे पहले 1966-67 में गेहूं के लिए की गई थी. बाद में दूसरी फसलों को बढ़ावा देने के लिए एमएसपी का दायरा बढ़ा दिया गया. मौजूदा समय में 23 फसलों पर एमएसपी मिलता है जिसमें सात अनाज (धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), पांच तरह की दालें (चना, अरहर, मूंग, उड़द और मसूर), सात तिलहन (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम और नाइजरसीड) और चार व्यावसायिक फसलें (गन्ना, कपास, खोपरा और कच्चा जूट) शामिल हैं. एमएसपी के आधार पर ही केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियां फसलों की खरीद करती हैं लेकिन अब किसान चाहते हैं कि इसे कानून बना दिया जाए जिससे कि उपज की खरीद मंडी और बाहर एमएसपी के आधार पर हो. उससे कम की खरीद पर सजा का प्रावधान हो.
राजस्थान में लगी किसान संसद
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की तर्ज पर जयपुर में 15 सितंबर को किसान संसद बुलाई गई. अंतराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर हुई इस किसान संसद में तीनों कृषि कानूनों का वापस लेने के प्रस्ताव को बहुमत के साथ पास किया गया था. किसान आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए यह संसद रखी गई. इसके जरिए देश की सरकार को बताया गया कि किसान भी संसद चला सकता है.
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खास बात यह है कि संसद का आयोजन ठीक संसद सत्र की तर्ज़ पर हुआ. किसान संसद में छाया लोकसभा अध्यक्ष चुना गया और उनकी अध्यक्षता में किसान संसद सत्र हुआ. सदन में मौजूद छाया सांसदों ने तीनों कृषि कानूनों पर बारी बारी अपना जवाब दिया और बताया कि जिस तरह से यह कानून किसानों को नुकसान देने वाला है. इसमें प्रश्न काल से लेकर शून्य काल सहित संसद की तरह विभिन्न सत्र आयोजित किये गए.
बाजरा, मूंग, मूंगफली की खरीद एमएसपी पर भी नहीं हो रही
रामपाल जाट ने राजस्थान की सरकार को लेकर कहा कि यह सही है कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस ने किसानों का साथ दिया लेकिन किसानों के लिए समर्थन मूल्य के मामले में राजस्थान की सरकार ने भी कोई अच्छा काम नहीं किया है. हालात यह है कि लगातार मांग करने के बाद भी सरकार समर्थन मूल्य को कानूनी रूप नहीं दे रही है. इसकी वजह से किसानों को समर्थन मूल्य से कम रेट तो कभी-कभी लागत से भी कम दाम पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है.
सरकार को चाहिए कि वह जिस तरह से अपने वेतन भत्ते को बढ़ाने के लिए विपक्षी पार्टियों के साथ खड़ी हो जाती है, किसानों के हित के लिए भी पक्ष-विपक्ष को एक साथ खड़े होना चाहिए. कृषि उपज मंडी समिति के कानून को जो अभी विवेकाधीन है उसे मैंडेटरी बना दो तो किसानों को बाजरे का दाम मिल जाएंगे. नीलामी बोली जब एमएसपी से शुरू होगी तो किसानों को उनका हक मिल जाएगा. यह बात लगातार सरकार से कह रहे हैं, लेकिन राजस्थान सरकार सहमत होते हुए भी आज तक यह काम नहीं कर पाई. इस बार मूंग भी घाटे में बेचना पड़ रहा है .