जयपुर. करीब 1 साल पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह को राजस्थान भाजपा में बतौर प्रभारी नियुक्त किया गया तो उम्मीद की जा रही थी कि वह अलग-अलग गुटों में बंटी राजस्थान भाजपा को एकजुट करेंगे लेकिन वे इसमें नाकाम रहे. पार्टी मजबूत नहीं हुई और उपचुनाव में हार का दंश भी झेलना पड़ा. अरुण सिंह के 1 साल के कार्यकाल में राजस्थान भाजपा न तो मजबूत हो पाई और न ही सफलता के पायदान पर आगे बढ़ सकी.
गुटबाजी रोकने में नाकाम रहे अरुण सिंह
अरुण सिंह पिछले साल 13 नवंबर को राजस्थान के प्रदेश प्रभारी बनाए गए थे. वह भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भी हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि राजस्थान का प्रभार मिलने के बाद यहां अलग-अलग खेमों में बंटे भाजपा नेताओं को वह एक जाजम पर बैठाने में सफलता हासिल करेंगे. खासतौर पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया जैसे नेताओं को एकजुट कर पार्टी को मजबूत करेंगे लेकिन उनके 1 साल के कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ. आलम यह है कि जब निकाय चुनाव में भाजपा की हार हुई तो में हाड़ौती संभाग में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जुड़े समर्थक नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व की कार्यशली पर सवाल उठाते हुए वसुंधरा राजे को आगे लाने और सर्वमान्य नेता बनाने बयान देना शुरू कर दिया.
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इसके बाद वसुंधरा समर्थक नेता और पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा ने भी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और राजस्थान से आने वाले तीन केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत कैलाश चौधरी और अर्जुन मेघवाल के खिलाफ जुबानी हमला शुरू कर दिया. हालांकि शर्मा पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई और उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया लेकिन अब फिर जब धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली तो कोटा के पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत और प्रहलाद गुंजल ने पार्टी संगठन की कार्यशैली पर सवाल उठा दिए. कहने का मतलब है कि बतौर राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह एक साल में गुटबाजी नहीं रोक सके.
अरुण सिंह के साल भर के कार्यकाल में 5 उपचुनाव, 4 में भाजपा हारी
अरुण सिंह को राजस्थान का प्रभार दिए जाने के बाद प्रदेश में 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. अप्रैल 2021 में राजसमंद, सहाड़ा और सुजानगढ़ सीट पर उपचुनाव हुए जिनमें से केवल राजसमंद सीट पर ही भाजपा को जीत मिल पाई जबकि 2 सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद हुए धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को अब तक की सबसे करारी शिकस्त मिली. वल्लभनगर में भाजपा प्रत्याशी हिम्मत सिंह झाला की जमानत जब्त हो गई तो धरियावद में भाजपा तीसरे नंबर पर रही लिस्ट में तब थी जब अरुण सिंह इन उपचुनाव में लगातार तीन दिन इन उप चुनाव क्षेत्र में सक्रिय रुप से चुनाव प्रचार करते रहे थे लेकिन कमल खिलाने में असफल रहे.
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साल 2023 तक राजस्थान भाजपा कैसे बन पाएगी अजेय
राजस्थान भाजपा को साल 2023 तक अजेय भाजपा बनाने का संकल्प प्रदेश नेतृत्व और पार्टी ने लिया तो कई बार भाजपा की बैठकों में इस संकल्प को दोहराया भी. मौजूदा परिस्थितियों में न तो भाजपा नेता एकजुट हैं और न राजस्थान में भाजपा की स्थिति मजबूत कही जा सकती है. हालांकि उपचुनाव में हार को प्रदेश भाजपा नेता बेहद हल्के में ले रहे हैं लेकिन पार्टी आलाकमान इससे नाराज हैं और जिन नेताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है, उनकी रिपोर्ट भी तैयार हो रही है.
तो क्या बदले जा सकते हैं राजस्थान भाजपा के प्रभारी?
बतौर राजेस्थान प्रभारी अरुण सिंह के 1 साल के कार्यकाल के दौरान कोई खास बड़ी उपलब्धि राजस्थान भाजपा को नहीं मिल पाई. चूंकि साल 2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में पार्टी आलाकमान अब राजस्थान के मामले में शायद ही कोई रिस्क ले. संभावना इस बात की भी है कि अब राजस्थान भाजपा के प्रभार में कोई बड़ा परिवर्तन हो. यदि कोई परिवर्तन हुआ भी तो वह आगामी दिनों में कुछ प्रदेशों में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा.