जयपुर. प्रदेश में 3 बड़े शहरों के 6 नगर निगमों में चुनाव है, लेकिन राजधानी जयपुर के दोनों नगर निगमों के ऊपर सबकी निगाहें टिकी है. जयपुर नगर निगम भाजपा का परंपरागत गढ़ रहा है, लिहाजा इस बार भी दोनों ही नगर निगमों में जीत का दावा भाजपा कर रही है. अब यदि जीत मिलती है तो महापौर कौन होगा इस पर भी मंथन शुरू हो गया है.
जयपुर हेरिटेज नगर निगम और जयपुर ग्रेटर नगर निगम दोनों में इस बार महापौर का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है. ऐसे में पार्टी ने जिन ओबीसी महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है, उनमें से ही कोई एक महापौर पद की दावेदार होंगी. अब बात करें जयपुर ग्रेटर की तो इसमें सबसे ऊपर नाम पूर्व महापौर रह चुकीं शील धाबाई का है. शील धाबाई भाजपा का पुराना चेहरा है और नगर निगम महापौर का अनुभव भी इनके पास है. इसके साथ ही राष्ट्रीय गुर्जर महासभा में भी ये पदाधिकारी हैं. हालांकि बढ़ती उम्र इनके लिए माइनस पॉइंट हो सकता है.
- भारती लख्यानी
ग्रेटर नगर निगम से ही निवर्तमान पार्षद मुकेश लख्यानी की पत्नी भारती लख्यानी को उतारा गया है, जो ओबीसी से ही आती हैं. मुकेश लख्यानी विधायक अशोक लाहोटी के नजदीकियों में शामिल हैं, वही सिंधी समाज से आने के कारण इनकी दावेदारी मजबूत है. बताया जा रहा है यदि भारती जीती और बीजेपी का बोर्ड बना तो पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी भारती लख्यानी को महापौर पद पर बैठाने के लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे.
वहीं, भारती लख्यानी के माइनस पॉइंट की बात करें तो वे विधायक के कितने भी नजदीक क्यों ना हो, कोई भी विधायक नहीं चाहेगा उनके क्षेत्र से कोई पार्षद महापौर बने. क्योंकि जयपुर महापौर का रुतबा और सियासी कद विधायक से कहीं बड़ा होता है.
- सौम्या गुर्जर
जयपुर ग्रेटर में भाजपा की पार्षद प्रत्याशी सौम्या गुर्जर को भी महापौर के चेहरे के रूप में देखा जा सकता है. सौम्या गुर्जर शिक्षित तो हैं ही साथ ही राज्य महिला आयोग और जिला परिषद की सदस्य भी रह चुकी हैं. इनके पति भी पूर्व में करौली के सभापति रह चुके हैं. राजाराम गुर्जर की धर्मपत्नी सौम्या माथुर को प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने सामान्य वार्ड से चुनाव लड़ाया है, जबकि सौम्या गुर्जर ओबीसी वर्ग से आती हैं.
पार्टी ने सौम्या के लिए अपने नियमों को बदल दिया तो फिर नगर निगम का बोर्ड बनने और सौम्या गुर्जर के जीतने के बाद उन्हें महापौर भी बनाया जा सकता है. हालांकि राज्य महिला आयोग में सदस्य रहते हुए सौम्या गुर्जर का सेल्फी कांड सुर्खियों में रहा था. वहीं, संगठन या पार्टी से जुड़े कार्यक्रमों में भी सौम्या गुर्जर सक्रिय नहीं दिखती हैं.
इनके अलावा जयपुर नगर निगम ग्रेटर में ओबीसी वर्ग से आने वाली वार्ड 50 प्रत्याशी संजू चौधरी, वार्ड 51 प्रत्याशी सुखप्रीत बंसल और कई अन्य महिला प्रत्याशी हैं, जिनके नाम पर विचार हो सकता है. लेकिन महापौर पद के रूप में इन्हीं 3 महिला प्रत्याशियों को देखा जा रहा है.
जयपुर हेरिटेज नगर निगम
अब जयपुर हेरिटेज नगर निगम से भाजपा के महापौर के रूप में देखे जाने वाले चेहरों की बात करें तो यहां कुछ चेहरे ओबीसी महिलाओं के हैं जिन पर सबकी निगाहें टिकी हैं.
- कपिला कुमावत
कपिला कुमावत वार्ड 59 से भाजपा की प्रत्याशी हैं और बीजेपी के पुराने और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता विजयपाल कुमावत की पत्नी हैं. कपिला कुमावत एक सामान्य परिवार की उच्च शिक्षित महिला हैं, तो वहीं उनके पति विजयपाल कुमावत ढूंढाड़ परिषद के कर्ताधर्ता भी हैं. जमीन से जुड़े कार्यकर्ता होने के साथ ही संगठन के नेताओं में भी उनकी अच्छी छवि है, जिसका फायदा उनकी धर्मपत्नी को मिल सकता है. ऐसे भी कुमावत समाज एक ऐसा समाज है, जिसकी सभी समाजों में स्वीकार्यता है.
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वहीं, नगर निगम जयपुर में राजकुमारी सेन, वंदना यादव, मधु कुमावत, सोनल जांगिड़, उर्वशी सैनी और बरखा सैनी आदि प्रत्याशियों को भी महापौर पद पर मौका मिल सकता है, बशर्ते इनकी जीत के साथ ही यहां बीजेपी का भी बोर्ड बने.
हाइब्रिड फॉर्मूला का किया जा सकता है इस्तेमाल
वार्ड नंबर 74 में बीजेपी के पास महिला ओबीसी प्रत्याशी है, लेकिन निर्दलीय बीजेपी समर्थित और पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के बीच मामला अटक कर रह गया. ऐसे में उनके नामों पर फिलहाल विचार नहीं किया जा रहा है. हालांकि, हेरिटेज नगर निगम जयपुर में ओबीसी महिला पद पर जो प्रत्याशी उतारी गई हैं, उनमें कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में यदि मौजूदा चेहरों में से किसी को मौका दिया गया तो बात अलग है वरना पार्टी हाइब्रिड फार्मूले का भी इस्तेमाल कर सकती है.
हालांकि, यह बात और है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से लेकर मुख्य प्रवक्ता रामलाल शर्मा तक यह कह चुके हैं कि जो पार्षद प्रत्याशी जीतेगी उनमें से ही महापौर बनाएंगे. लेकिन राजनीति में जो नियम बनाए जाते हैं वो अपवाद के नाम पर तोड़ भी दिए जाते हैं और टिकट वितरण के दौरान भाजपा में ऐसा हो चुका है. इसलिए इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी के बोर्ड बनने की स्थिति में पार्टी हाइब्रिड फार्मूले का इस्तेमाल ना करें.