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न्यायिक जगत से जुड़े लोगों को फ्रंटलाइन वर्कर्स नहीं मानने पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

राजस्थान हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों, वकीलों और कोर्ट स्टाफ सहित न्यायिक जगत से जुड़े दूसरे लोगों को फ्रंटलाइन वर्कर नहीं मानने पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

राजस्थान हाईकोर्ट, Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट
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Published : May 21, 2021, 7:59 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों, वकीलों और कोर्ट स्टाफ सहित न्यायिक जगत से जुड़े दूसरे लोगों को फ्रंटलाइन वर्कर नहीं मानने पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांति और न्यायाधीश सतीश शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश डॉ. महेश शर्मा की जनहित याचिका पर दिए.

याचिका में कहा गया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी आपदा में काम करने वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स की जान जाने की स्थिति में उनके आश्रितों को राहत देने का प्रावधान करे.

याचिका में कहा गया कि एक तरफ तो राज्य सरकार ने राशन डीलर्स, संविदाकर्मी और अधिस्वीकृत पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर्स माना है. वहीं, दूसरी तरफ लॉकडाउन में आमजन को न्याय पहुंचाने में लगे न्यायाधीश, वकील, कोर्ट स्टाफ और मुंशी को इसमें शामिल नहीं किया है, जबकि ये लोग विषम परिस्थितियों में काम रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः इस्तीफे के बाद MLA हेमाराम चौधरी ने की पहली मांग, CM गहलोत को लिखा पत्र

कोविड से न्यायिक जगत से जुड़े करीब 300 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है और हजारों बीमार होकर संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में इन्हें भी फ्रंटलाइन वर्कर की श्रेणी में शामिल किया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों, वकीलों और कोर्ट स्टाफ सहित न्यायिक जगत से जुड़े दूसरे लोगों को फ्रंटलाइन वर्कर नहीं मानने पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांति और न्यायाधीश सतीश शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश डॉ. महेश शर्मा की जनहित याचिका पर दिए.

याचिका में कहा गया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी आपदा में काम करने वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स की जान जाने की स्थिति में उनके आश्रितों को राहत देने का प्रावधान करे.

याचिका में कहा गया कि एक तरफ तो राज्य सरकार ने राशन डीलर्स, संविदाकर्मी और अधिस्वीकृत पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर्स माना है. वहीं, दूसरी तरफ लॉकडाउन में आमजन को न्याय पहुंचाने में लगे न्यायाधीश, वकील, कोर्ट स्टाफ और मुंशी को इसमें शामिल नहीं किया है, जबकि ये लोग विषम परिस्थितियों में काम रहे हैं.

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कोविड से न्यायिक जगत से जुड़े करीब 300 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है और हजारों बीमार होकर संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में इन्हें भी फ्रंटलाइन वर्कर की श्रेणी में शामिल किया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

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