जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में फसल बीमा से जुड़े मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि बीमा कंपनियों ने सिर्फ दिखावे के लिए नाममात्र का मुआवजा दिया है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह पूर्व में दिए आदेश की पालना में 26 अगस्त तक सर्वे रिपोर्ट पेश करें.
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट और न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश रामपाल जाट की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि फसल की नुकसान का आंकलन करने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाना चाहिए और वास्तविक खराबे का आंकलन कर किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए. इस पर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि प्रभावित किसानों को मुआवजा दिया गया है.
राज्य सरकार के जवाब से असंतुष्ठ होते हुए अदालत ने पूछा कि क्या इसके लिए उचित सर्वे कराया गया? इसके साथ ही अदालत ने मामले में सर्वे रिपोर्ट तलब की है. याचिका में फसल बीमा का उचित मुआवजा नहीं देने और इसकी गणना करने में खामियां रखने का मुद्दा उठाया गया है.
नीट में आर्थिक कमजोर वर्ग को पूरा आरक्षण नहीं देने पर मांगा जवाब
वहीं राजस्थान हाईकोर्ट ने नीट यूजी-2019 में आर्थिक कमजोर वर्ग को तय दस फीसदी आरक्षण का पूरा लाभ नहीं देने पर केन्द्र सरकार के साथ ही राज्य के मुख्य सचिव, सामाजिक न्याय विभाग, एमसीआई और नीट यूजी एडमिशन बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. न्यायाधीश आलोक शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश समता आंदोलन समिति और अन्य की ओर से दायर याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.
क्या है याचिका में
याचिका में अधिवक्ता शोभित तिवाड़ी ने अदालत को बताया कि नीट यूजी में आर्थिक रूप से पिछड़ों को उचित आरक्षण देने के लिए एमसीआई ने कुल 450 सीटें बढ़ाई थी. इसके तहत सरकारी कॉलेजों में कुल 218 सीट और निजी कॉलेजों में 130 सीटे ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए आरक्षित होनी चाहिए. इसके बावजूद इनमें से सिर्फ 135 सीटें ही इस वर्ग के लिए आरक्षित रखी गई. वहीं इन सीटों में से 41 सीटों पर पैमेंट सीटों के तौर पर प्रवेश दिया गया है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.
75 साल से बड़े कैदियों को पैरोल और खुली जेलों में शिफ्ट करने पर विचार करे सरकार
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि प्रदेश की जेलों में बंद 75 साल की उम्र से बड़े कैदियों को पैरोल देने और उन्हें खुली जेलों में शिफ्ट करने पर विचार किया जाए. इसके साथ ही अदालत ने जेल में महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों की सुविधाओं को लेकर सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है. मुख्य न्यायाधीश एस रविन्द्र भट्ट और न्यायाधीश एसपी शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
क्या है याचिका में
याचिका में कहा गया कि प्रदेश की जेलों में विभिन्न अपराधों की सजा भुगत रहे 65 साल की उम्र से बड़े कैदियों को मेडिकल ग्राउंड पर पैरोल का लाभ नहीं मिल रहा है. इसके साथ ही उनके स्वास्थ्य पर भी उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वहीं प्रदेश में कुल 97 कारागृह है. इन जेलों की कुल क्षमता बीस हजार पांच सौ 35 कैदियों की है. जेलों में 65 साल की उम्र से बड़े 360 कैदी हैं. इनमें से 237 कैदियों तो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होने के चलते जेल में बंद हैं.
याचिका में कहा गया कि इस उम्र से बड़े विचाराधीन कैदियों के मुकदमों का निस्तारण जल्दी किया जाए. वहीं जेल में बंद गर्भवती महिलाओं के लिए पैरोल नियमों को सरल किया जाए. इसके साथ ही महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों के लिए क्रेच सहित अन्य प्रावधान किए जाएं. जिस पर सुनवाई करते हुए खंड़पीठ ने 75 साल से बड़े कैदियों को पैरोल देने और खुली जेल में शिफ्ट करने पर विचार करने को कहा है.