जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने विधानसभा स्पीकर की ओर से पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित 19 विधायकों को गत 14 जुलाई को दिए नोटिस की क्रियान्विति पर यथा-स्थिति के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही अदालत ने मामले में केन्द्र सरकार को भी पक्षकार बना लिया है. अदालत ने पक्षकारों को छूट दी है कि वे सभी पक्षों की बहस, दलीलें और लिखित बहस पेश होने के बाद केस की जल्द सुनवाई के लिए अर्जी दायर कर सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश सचिन पायलट और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान सचिन पायलट गुट की ओर से अदालत को कहा गया कि मामले में केन्द्र सरकार को पक्षकार बनाने की अर्जी दायर की है. इस पर स्पीकर की ओर से एजी एमएस सिंघवी ने कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन चीफ व्हिप महेश जोशी की ओर से अधिवक्ता देवदत्त कामत ने इसका विरोध करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार को पक्षकार बनाने वाला प्रार्थना पत्र फैसला होने से ठीक पहले दायर किया गया है. सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने केन्द्र सरकार को पक्षकार बना लिया.
पायलट गुट के इन बिन्दुओं पर कोर्ट सुनवाई करेगी
- संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने वाले पैरा 2(1)(अ) की संवैधानिक वैधता को शून्य घोषित किया जाए.
- विधानसभा स्पीकर की ओर से 14 जुलाई को दिए गए कारण बताओ नोटिस को निरस्त करने के आदेश दिया जाए.
- संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा को 2(1) (अ) को अवैध घोषित करने का आदेश दिया जाए.
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अदालत ने इन बिन्दुओं पर सुनवाई से किया इनकार
- याचिकाकर्ताओं को विधानसभा का सदस्य बनाए रखा जाए और उनकी इंडियन कांग्रेस दल की सदस्यता को भी बरकरार रखा जाए.
- अदालत यह भी निर्देश दे कि उन्हें दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया जाए.
कोर्ट ने तय किए 13 कानूनी बिन्दु
- क्या सुप्रीम कोर्ट ने किहोतो होलोहन केस के फैसले में दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(अ) की संवैधानिकता सिर्फ क्रासिंग ओवर या दलबदल के आधार पर तय किया था या फिर पार्टी के भीतर असहमति का प्रश्न पर था?
- क्या मौजूदा केस के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(अ) संविधान के मूल ढांचे का अतिक्रमण करता है। जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है.
- क्या किसी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ असंतोष रखना या उसके खिलाफ राय देना संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(अ) के दायरे में आने वाला आचरण हो सकता है?
- क्या इस मामले में विधानसभा स्पीकर की ओर से जारी किए गए नोटिस को असंवैधानिक व संविधान के तथ्यों के विपरीत माना जाए?
- क्या संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(अ) के तहत किसी भी विधायक के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का स्पीकर का क्षेत्राधिकार होना और क्षेत्राधिकार को प्रयोग में लाने की प्रक्रिया को अलग-अलग किया जा सकता है?
- क्या पार्टी व्हिप के जरिए विधायकों के अनुशासन को सदन के भीतर ही लागू किया जा सकता है और क्या बाहर की कार्रवाई इस दायरे में आती है?
- क्या विधानसभा स्पीकर संवैधानिकता पर सवाल करने वाले प्रश्नों को सुनने की अधिकारिता रखते हैं.
- क्या विधानसभा स्पीकर की ओर से जारी किए नोटिस लोकतंत्र का गला दबाने और सत्तारूढ़ व्यक्तियों के खिलाफ उठाई गई आवाज को दबाने जैसा तो नहीं है?
- क्या पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले याचिकाकर्ता विधायकों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई है और उनको धमकी दी जा रही है कि वे नेतृत्व के कामकाज पर अपना विरोध व्यक्त करने के अधिकार का त्याग कर दें. ऐसे में क्या स्पीकर कार्रवाई कर सकते हैं
- क्या एक विधायक की ओर से सदन के बाहर सीएम या पार्टी की राज्य इकाई के कामकाज की आलोचना करना भी दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(अ) में स्वेच्छा से राजनीतिक पार्टी से अपनी सदस्यता छोड़ने का अर्थ के दायरे में आता है.
- यदि उपरोक्त प्रश्न संख्या 10 का उत्तर हां है तो क्या पैरा 2(1) (अ) संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है, जिसमें अनुच्छेद 19(1) (अ) भी शामिल है.
- क्या विधानसभा स्पीकर की ओर से 14 जुलाई 2020 को नोटिस जारी करने की कार्रवाई जल्दबाजी, दुर्भावनापूर्ण, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन और शक्ति का दुरुपयोग तो नहीं है.
- क्या सुप्रीम कोर्ट का किहोतो होलोहन के निर्णय के कारण हाईकोर्ट को इन बिन्दुओं को सुनने की अधिकारिता है?