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Rajasthan High Court : आपराधिक रिकॉर्ड हर स्तर पर व्यवस्थित रखने के लिए कोर्ट ने गठित की कमेटी... - Rajasthan High Court

राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर के एक मामले में याचिकाकर्ता के मुकदमों की गलत जानकारी देने पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है. कमेटी से कहा गया है कि आपराधिक रिकॉर्ड हर स्तर पर व्यवस्थित रहें, इस बारे में जानकारी (Committee for arranging criminal records) दें. कोर्ट का कहना है कि जमानत याचिका के साथ ही केस डायरी और आपराधिक ब्यौरा मिल जाए, जिससे पहली तारीख पर ही न्याय मिल सके.

Rajasthan High Court constitutes committee for arranging criminal records
आपराधिक रिकॉर्ड हर स्तर पर व्यवस्थित रखने के लिए कोर्ट ने गठित की कमेटी, पहली तारीख पर न्याय दिलाने के लिए हों ये काम
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Published : Aug 5, 2022, 11:01 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालत से निस्तारित होने वाले मुकदमों की जानकारी संबंधित थाने को नहीं होने के मामले में गृह सचिव की अध्यक्षता में एएजी जीएस राठौड़ और न्यायमित्र जसवंत सिंह को अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ शामिल करते हुए एक कमेटी का गठन किया है. अदालत ने कहा कि कमेटी 25 अगस्त तक रिपोर्ट पेश कर बताए कि आपराधिक रिकॉर्ड को हर स्टेज पर किस तरह व्यवस्थित रखा जा सकता है और अदालत में किस तरह सही जानकारी पेश की जा सकती (Committee for arranging criminal records) है. इसके अलावा अदालत ने केस डायरी पेश करने के संबंध में भी कमेटी से जानकारी मांगी है. जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश लूसी की ओर से दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान गृह सचिव श्रवण कुमार, एडीजी रविप्रकाश मेहरडा और आईजी एससीआरबी शरद कविराज सहित अन्य पुलिस अधिकारी पेश हुए. वहीं एएजी जीएस राठौड़ ने प्रार्थना पत्र पेश कर कहा कि अदालती आदेश की पालना में डीजीपी पेश नहीं हुए हैं. डीजीपी के हर्निया का ऑपरेशन होने के कारण वे वर्दी पहनने में असमर्थ हैं. इस पर न्यायमित्र ने अखबार पेश कर कहा कि डीजीपी सिविल ड्रेस में सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं.

पढ़ें: हाईकोर्ट सुनवाई : निलंबित IPS मनीष अग्रवाल का आपराधिक रिकॉर्ड तलब

इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि बड़े अधिकारियों का ऐसा रवैया है कि वे आदेश के बावजूद कोर्ट में नहीं आ रहे हैं, लेकिन समारोह में जा रहे हैं. अदालत ने कहा कि कोर्ट में जमानत याचिका पेश होने के बाद दो-तीन दिन में लिस्ट होती है. उसके बाद कोर्ट केस डायरी मंगाती है. ऐसे में आरोपी चाहे निर्दोष ही क्यों ना हो, उसे 15 दिन जेल में रहना पड़ता है. इसलिए ऐसी व्यवस्था हो कि आपराधिक रिकॉर्ड कोर्ट, पुलिस और अभियोजन पक्ष के बीच तत्काल मौजूद रहे. ताकि पहली तारीख पर ही न्याय मिल सके.

पढ़ें: हाईकोर्ट ने प्रदेश में आपराधिक रिकॉर्ड का डेटा राजस्थान पुलिस ने मांगा

अदालत ने कहा कि पुलिस तथ्यात्मक रिपोर्ट भी गलत पेश करती है. हम छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई के बजाए सिस्टम में सुधार चाहते हैं. कोर्ट में यंग जनरेशन है तो आपका सिस्टम भी यंग होना चाहिए. वहीं एएजी ने बताया कि कोर्ट के आदेश की कॉपी आरोपी पक्ष को तत्काल मिल जाती है, लेकिन सरकारी पक्ष को कई दिनों में मिलती है और उसके बाद प्रक्रिया में करीब 5 से 6 माह लगने के बाद पुलिस को जानकारी मिल पाती है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में आईसीजेएस सॉफ्टवेयर पर काम चल रहा है. इससे आसानी से आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी मिल जाएगी.

पढ़ें: उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड जनता से साझा करना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

गौरतलब है कि एनडीपीएस प्रकरण की अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अजमेर के दरगाह थाना पुलिस की ओर याचिकाकर्ता के मुकदमों की गलत जानकारी देने पर अदालत ने डीजीपी और गृह सचिव को पेश होकर स्पष्टीकरण देने को कहा था.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालत से निस्तारित होने वाले मुकदमों की जानकारी संबंधित थाने को नहीं होने के मामले में गृह सचिव की अध्यक्षता में एएजी जीएस राठौड़ और न्यायमित्र जसवंत सिंह को अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ शामिल करते हुए एक कमेटी का गठन किया है. अदालत ने कहा कि कमेटी 25 अगस्त तक रिपोर्ट पेश कर बताए कि आपराधिक रिकॉर्ड को हर स्टेज पर किस तरह व्यवस्थित रखा जा सकता है और अदालत में किस तरह सही जानकारी पेश की जा सकती (Committee for arranging criminal records) है. इसके अलावा अदालत ने केस डायरी पेश करने के संबंध में भी कमेटी से जानकारी मांगी है. जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश लूसी की ओर से दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

सुनवाई के दौरान गृह सचिव श्रवण कुमार, एडीजी रविप्रकाश मेहरडा और आईजी एससीआरबी शरद कविराज सहित अन्य पुलिस अधिकारी पेश हुए. वहीं एएजी जीएस राठौड़ ने प्रार्थना पत्र पेश कर कहा कि अदालती आदेश की पालना में डीजीपी पेश नहीं हुए हैं. डीजीपी के हर्निया का ऑपरेशन होने के कारण वे वर्दी पहनने में असमर्थ हैं. इस पर न्यायमित्र ने अखबार पेश कर कहा कि डीजीपी सिविल ड्रेस में सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं.

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इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि बड़े अधिकारियों का ऐसा रवैया है कि वे आदेश के बावजूद कोर्ट में नहीं आ रहे हैं, लेकिन समारोह में जा रहे हैं. अदालत ने कहा कि कोर्ट में जमानत याचिका पेश होने के बाद दो-तीन दिन में लिस्ट होती है. उसके बाद कोर्ट केस डायरी मंगाती है. ऐसे में आरोपी चाहे निर्दोष ही क्यों ना हो, उसे 15 दिन जेल में रहना पड़ता है. इसलिए ऐसी व्यवस्था हो कि आपराधिक रिकॉर्ड कोर्ट, पुलिस और अभियोजन पक्ष के बीच तत्काल मौजूद रहे. ताकि पहली तारीख पर ही न्याय मिल सके.

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अदालत ने कहा कि पुलिस तथ्यात्मक रिपोर्ट भी गलत पेश करती है. हम छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई के बजाए सिस्टम में सुधार चाहते हैं. कोर्ट में यंग जनरेशन है तो आपका सिस्टम भी यंग होना चाहिए. वहीं एएजी ने बताया कि कोर्ट के आदेश की कॉपी आरोपी पक्ष को तत्काल मिल जाती है, लेकिन सरकारी पक्ष को कई दिनों में मिलती है और उसके बाद प्रक्रिया में करीब 5 से 6 माह लगने के बाद पुलिस को जानकारी मिल पाती है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में आईसीजेएस सॉफ्टवेयर पर काम चल रहा है. इससे आसानी से आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी मिल जाएगी.

पढ़ें: उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड जनता से साझा करना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

गौरतलब है कि एनडीपीएस प्रकरण की अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अजमेर के दरगाह थाना पुलिस की ओर याचिकाकर्ता के मुकदमों की गलत जानकारी देने पर अदालत ने डीजीपी और गृह सचिव को पेश होकर स्पष्टीकरण देने को कहा था.

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