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प्रियंका गांधी UP में बुलंद कर रही महिलाओं की आवाज..राजस्थान में 5 लाख महिलाएं मनाएंगी काली दिवाली - आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बेरोजगार

अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर प्रियंका गांधी महिलाओं पर फोकस कर रही हैं. आधी आबादी के हक की आवाजें बुलंद की जा रही हैं. लेकिन कांग्रेसनीत राजस्थान सरकार ने कोरोना का हवाला देकर 55 हजार स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं से रोजगार छीन लिया. इतना ही नहीं, करीब 5 लाख महिलाओं का बकाया 400 करोड़ रुपया भी डकार गई. बेरोजगार हुई महिलाएं सीएम आवास के बाहर काली दिवाली मनाने की तैयारी कर रही हैं.

काली न हो दिवाली
काली न हो दिवाली
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Published : Oct 27, 2021, 6:18 PM IST

Updated : Oct 27, 2021, 8:13 PM IST

जयपुर. आमजन की तकलीफ भी चुनाव की तारीखों की मोहताज हो गई है. अगर चुनाव हैं तो तकलीफें सुनी जाएंगी, जख्म सहलाए जाएंगे, दिलासा और तसल्ली दी जाएगी, कानून तोड़कर पीड़ितों से मिलने की होड़ की जाएगी और आधी आबादी को आगे बढ़ाने के लिए हुंकार की जाएगी. यह सब हो रहा है राजस्थान के नजदीकी राज्य उत्तर प्रदेश में. क्योंकि वहां तीन-चार महीने बाद चुनाव है.

यूपी चुनाव की साध में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी महिलाओं के लिए बड़े एलान कर रही हैं. आधी आबादी को आधा आरक्षण देने की बात की गई है, रोजगार से लेकर शिक्षा, हर क्षेत्र में सुनहरी सपने दिखाए गए हैं, इन्हें पूरा करने के दावे बुलंद आवाज में किये जा रहा हैं, लेकिन लगता है कि राजस्थान की 5 लाख महिलाओं की सिसकियां इस चुनावी शोर में प्रियंका गांधी के कानों तक नहीं पहुंच रही हैं.

राजधानी जयपुर में एकत्रित हो कर महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रही हैं. ये महिलाएं महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए रोजगार कर रही थीं. कोरोना काल में इनका रोजगार छिन गया.

राजस्थान में 55 हजार समूहों की 5 लाख से ज्यादा ऐसी महिलाएं गहलोत सरकार के नाराज हैं. गहलोत सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के बड़े बड़े दावे किये थे. लेकिन इन महिलाओं से पोषाहार का काम भी छीन लिया गया. महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया गया था. एक स्वयं सहायता समूह में कम से कम 10 महिलाएं शामिल होती थीं. एक समूह से दस घरों के चूल्हे जलते थे. महिलाएं आत्मनिर्भर होने लगी थीं.

सरकार ने रोजगार छीना, बकाया भी नहीं दिया

महिला समूहों का 400 करोड़ बकाया

लेकिन कोरोना के दौर में सरकार ने कई योजनाओं को बंद कर दिया. इनमें पोषाहार भी एक थी. अब हालात ये हैं कि महिला समूहों ने जो काम किया था उसका भुगतान तक सरकार नहीं कर सकी है. 55 हजार समूहों का करीब 400 करोड़ रुपया बकाया चल रहा है.

महिलाओं से छीनकर नेफेड को दी व्यवस्था

दरअसल महिला एवं बाल विकास विभाग ने कोरोना काल के वक्त लॉकडाउन के दौरान इन समूहों की जगह नेफेड से चने की दाल राशन डीलरों के माध्यम से आंगनबाड़ी में लाभार्थियों तक पहुंचाने की व्यवस्था की. इस योजना के तहत प्रदेश की 40 लाख महिला और बच्चों तक सूखा राशन पहुंचाया गया. विभाग ने इस व्यस्था को ही नियमित कर दिया. इससे स्वयं सहायता समूहों का काम छिन गया.

पढ़ें- सीएम गहलोत का हमला, कहा- पेगासस जांच के बाद मोदी सरकार की अलोकतांत्रिक गतिविधियां उजागर होंगी

सरकार की नीयत का संकट

सहायता समूह के लिए काम कर रहे छोटे लाल बुनकर कहते हैं कि प्रदेश की 5 लाख महिलाओं पर कोरोना संकट नहीं बल्कि सरकार की नीयत का संकट आया है, जिसने उनके आत्मनिर्भर होने के सपने को चूर-चूर कर दिया है. पोषाहार फिर से चालू करने और बकाया भुगतान की मांग को लेकर स्वयं सहायता समूहों ने इस बार काली दिवाली मनाने का निर्णय किया है. दिवाली के बाद प्रदेश की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं मुख्यमंत्री निवास पर भी धरना देने की रणनीति बना रही हैं. राजस्थान की 5 लाख महिलाओं के सामने अब आजीविका का संकट खड़ा है.

क्या हैं महिला स्वयं सहायता समूह

राजस्थान में अलग-अलग तरह के महिला स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं. इनमें से कुछ केंद्र सरकार के साथ आजीविका मिशन के तहत तो कुछ राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ कार्यरत हैं. प्रदेश के 55 हजार महिला स्वयं सहायता समूह पिछले कई साल से विभाग के साथ मिल कर आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषाहार तैयार करने का काम कर रहे थे.

काली न हो दिवाली
महिला समूह कर रहे आंदोलन

साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश दिये कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार वितरण का काम सिर्फ स्वयं सहायता समूहों से करवाया जाए. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पोषाहार में आवश्यक पोषक तत्व होने के निर्देश दिए थे, जैसे- कैलोरी, प्रोटीन, ऊर्जा आदि निर्धारित मात्रा में होने चाहिएं. महिला समूहों का आरोप है कि वर्तमान में पोषाहार में निर्धारित मात्रा में पोषक तत्व नहीं हैं.

जयपुर. आमजन की तकलीफ भी चुनाव की तारीखों की मोहताज हो गई है. अगर चुनाव हैं तो तकलीफें सुनी जाएंगी, जख्म सहलाए जाएंगे, दिलासा और तसल्ली दी जाएगी, कानून तोड़कर पीड़ितों से मिलने की होड़ की जाएगी और आधी आबादी को आगे बढ़ाने के लिए हुंकार की जाएगी. यह सब हो रहा है राजस्थान के नजदीकी राज्य उत्तर प्रदेश में. क्योंकि वहां तीन-चार महीने बाद चुनाव है.

यूपी चुनाव की साध में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी महिलाओं के लिए बड़े एलान कर रही हैं. आधी आबादी को आधा आरक्षण देने की बात की गई है, रोजगार से लेकर शिक्षा, हर क्षेत्र में सुनहरी सपने दिखाए गए हैं, इन्हें पूरा करने के दावे बुलंद आवाज में किये जा रहा हैं, लेकिन लगता है कि राजस्थान की 5 लाख महिलाओं की सिसकियां इस चुनावी शोर में प्रियंका गांधी के कानों तक नहीं पहुंच रही हैं.

राजधानी जयपुर में एकत्रित हो कर महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रही हैं. ये महिलाएं महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए रोजगार कर रही थीं. कोरोना काल में इनका रोजगार छिन गया.

राजस्थान में 55 हजार समूहों की 5 लाख से ज्यादा ऐसी महिलाएं गहलोत सरकार के नाराज हैं. गहलोत सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के बड़े बड़े दावे किये थे. लेकिन इन महिलाओं से पोषाहार का काम भी छीन लिया गया. महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से छोटे-छोटे महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया गया था. एक स्वयं सहायता समूह में कम से कम 10 महिलाएं शामिल होती थीं. एक समूह से दस घरों के चूल्हे जलते थे. महिलाएं आत्मनिर्भर होने लगी थीं.

सरकार ने रोजगार छीना, बकाया भी नहीं दिया

महिला समूहों का 400 करोड़ बकाया

लेकिन कोरोना के दौर में सरकार ने कई योजनाओं को बंद कर दिया. इनमें पोषाहार भी एक थी. अब हालात ये हैं कि महिला समूहों ने जो काम किया था उसका भुगतान तक सरकार नहीं कर सकी है. 55 हजार समूहों का करीब 400 करोड़ रुपया बकाया चल रहा है.

महिलाओं से छीनकर नेफेड को दी व्यवस्था

दरअसल महिला एवं बाल विकास विभाग ने कोरोना काल के वक्त लॉकडाउन के दौरान इन समूहों की जगह नेफेड से चने की दाल राशन डीलरों के माध्यम से आंगनबाड़ी में लाभार्थियों तक पहुंचाने की व्यवस्था की. इस योजना के तहत प्रदेश की 40 लाख महिला और बच्चों तक सूखा राशन पहुंचाया गया. विभाग ने इस व्यस्था को ही नियमित कर दिया. इससे स्वयं सहायता समूहों का काम छिन गया.

पढ़ें- सीएम गहलोत का हमला, कहा- पेगासस जांच के बाद मोदी सरकार की अलोकतांत्रिक गतिविधियां उजागर होंगी

सरकार की नीयत का संकट

सहायता समूह के लिए काम कर रहे छोटे लाल बुनकर कहते हैं कि प्रदेश की 5 लाख महिलाओं पर कोरोना संकट नहीं बल्कि सरकार की नीयत का संकट आया है, जिसने उनके आत्मनिर्भर होने के सपने को चूर-चूर कर दिया है. पोषाहार फिर से चालू करने और बकाया भुगतान की मांग को लेकर स्वयं सहायता समूहों ने इस बार काली दिवाली मनाने का निर्णय किया है. दिवाली के बाद प्रदेश की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं मुख्यमंत्री निवास पर भी धरना देने की रणनीति बना रही हैं. राजस्थान की 5 लाख महिलाओं के सामने अब आजीविका का संकट खड़ा है.

क्या हैं महिला स्वयं सहायता समूह

राजस्थान में अलग-अलग तरह के महिला स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं. इनमें से कुछ केंद्र सरकार के साथ आजीविका मिशन के तहत तो कुछ राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ कार्यरत हैं. प्रदेश के 55 हजार महिला स्वयं सहायता समूह पिछले कई साल से विभाग के साथ मिल कर आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषाहार तैयार करने का काम कर रहे थे.

काली न हो दिवाली
महिला समूह कर रहे आंदोलन

साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश दिये कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार वितरण का काम सिर्फ स्वयं सहायता समूहों से करवाया जाए. दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पोषाहार में आवश्यक पोषक तत्व होने के निर्देश दिए थे, जैसे- कैलोरी, प्रोटीन, ऊर्जा आदि निर्धारित मात्रा में होने चाहिएं. महिला समूहों का आरोप है कि वर्तमान में पोषाहार में निर्धारित मात्रा में पोषक तत्व नहीं हैं.

Last Updated : Oct 27, 2021, 8:13 PM IST
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