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राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण ने डीजीपी के पुलिस निरीक्षक को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का आदेश किया रद्द

अधिकरण ने कहा कि कोई भी फैसला देने से पहले उच्चतम रिव्यू कमेटी की ओर से संबंधित कर्मचारी की पूरी सेवा के रिकार्ड का आंकलन करना जरूरी है. कमेटी के फैसले भी विभागीय पक्ष को दोहराए बिना तर्कसंगत व उचित कारणों पर आधारित होने चाहिए.

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पुलिस निरीक्षक को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का आदेश किया रद्द
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Published : Mar 8, 2021, 10:55 PM IST

जयपुर. राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण ने डीजीपी के गत 9 जुलाई के उस आदेश को अवैध और मनमाना मानकर रद्द कर दिया है, जिसमें तहत पुलिस निरीक्षक देवेन्द्र वर्मा को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया था.

पुलिस निरीक्षक को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का आदेश किया रद्द

अधिकरण ने कहा कि कोई भी फैसला देने से पहले उच्चतम रिव्यू कमेटी की ओर से संबंधित कर्मचारी की पूरी सेवा के रिकार्ड का आंकलन करना जरूरी है. कमेटी के फैसले भी विभागीय पक्ष को दोहराए बिना तर्कसंगत व उचित कारणों पर आधारित होने चाहिए. लेकिन इस मामले में कमेटी ने अपीलार्थी का रिकॉर्ड नहीं देखा और सेवाकाल में अर्जित किए 78 इनामों की भी अनदेखी की है. वहीं अधिकरण ने अपीलार्थी की सेवा बहाली का आदेश देते हुए उसकी गैर हाजिर अवधि को भी सेवाकाल मेें मानकर सभी सेवा परिलाभ देने के निर्देश दिए हैं.

पढ़ें- विश्व महिला दिवस: अजमेर डिस्कॉम ने दिया तोहफा, मदार कार्यालय संभालेंगी महिलाएं

अपील में अधिवक्ता मनीष परिहार ने बताया कि अपीलार्थी वर्ष 1995 में एसआई नियुक्त हुआ और बाद में पुलिस इंस्पेक्टर पद पर पदोन्नत किया गया. जुलाई 2020 में झुंझुनू के बुहाना में पदस्थापन के दौरान डीजीपी ने उच्चतम रिव्यू कमेटी की सिफारिशों पर अपीलार्थी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी.

इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि कमेटी के समक्ष अपीलार्थी की 25 साल की सेवा में से 13 साल का रिकार्ड ही पेश नहीं किया और न ही उसके 78 इनामों का ही रिकार्ड में हवाला है. वहीं डीजीपी के आदेश में 1996 के नियम 53 (1) के प्रावधानों का पालन भी नहीं हुआ है. इसलिए अपीलार्थी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने वाला आदेश रद्द किया जाए.

जयपुर. राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण ने डीजीपी के गत 9 जुलाई के उस आदेश को अवैध और मनमाना मानकर रद्द कर दिया है, जिसमें तहत पुलिस निरीक्षक देवेन्द्र वर्मा को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया था.

पुलिस निरीक्षक को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का आदेश किया रद्द

अधिकरण ने कहा कि कोई भी फैसला देने से पहले उच्चतम रिव्यू कमेटी की ओर से संबंधित कर्मचारी की पूरी सेवा के रिकार्ड का आंकलन करना जरूरी है. कमेटी के फैसले भी विभागीय पक्ष को दोहराए बिना तर्कसंगत व उचित कारणों पर आधारित होने चाहिए. लेकिन इस मामले में कमेटी ने अपीलार्थी का रिकॉर्ड नहीं देखा और सेवाकाल में अर्जित किए 78 इनामों की भी अनदेखी की है. वहीं अधिकरण ने अपीलार्थी की सेवा बहाली का आदेश देते हुए उसकी गैर हाजिर अवधि को भी सेवाकाल मेें मानकर सभी सेवा परिलाभ देने के निर्देश दिए हैं.

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अपील में अधिवक्ता मनीष परिहार ने बताया कि अपीलार्थी वर्ष 1995 में एसआई नियुक्त हुआ और बाद में पुलिस इंस्पेक्टर पद पर पदोन्नत किया गया. जुलाई 2020 में झुंझुनू के बुहाना में पदस्थापन के दौरान डीजीपी ने उच्चतम रिव्यू कमेटी की सिफारिशों पर अपीलार्थी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी.

इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि कमेटी के समक्ष अपीलार्थी की 25 साल की सेवा में से 13 साल का रिकार्ड ही पेश नहीं किया और न ही उसके 78 इनामों का ही रिकार्ड में हवाला है. वहीं डीजीपी के आदेश में 1996 के नियम 53 (1) के प्रावधानों का पालन भी नहीं हुआ है. इसलिए अपीलार्थी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने वाला आदेश रद्द किया जाए.

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