जयपुर. सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का उद्घाटन किया. जाहिर है कि इस कार्यक्रम के मायने पूरा देश सियासी नजरिए से देख रहा है. उत्तर प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से पूर्वी यूपी में पीएम मोदी के बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ने से भी ज्यादा अहम रणनीति का हिस्सा इस कार्यक्रम को समझा जा रहा है.
इस बीच कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी जयपुर की महारैली में महंगाई के जरिए (Congress Mehangai Hatao Rally) केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर देश को जब जागरूक करने के लिए पहुंचते हैं तो उनके भाषण में महज दो बार महंगाई के जिक्र के बीच इस बात के मायने खासा अहम हो जाते हैं कि उनकी नजर में यूपी का चुनाव (Strategy for UP Election) कितना जरूरी है. लिहाजा वे अपने भाषण में 35 बार हिंदू शब्द का इस्तेमाल करते हैं, 27 बार हिंदुत्ववादी बोलते हैं, 14 बार किसान का जिक्र आता है, 9 मर्तबा पीएम मोदी और चार बार कृषि कानून की बात होती है.
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यह आकलन इतना जरूर साफ कर देता है कि जयपुर की महारैली में महंगाई कांग्रेस के लिए कितना मायने रखती है और मजहबी सियासत के मौजूदा राजनीति के लिहाज से मायने क्या हो सकते हैं. अब सवाल हिंदू, हिंदुत्व और इससे परे जाकर हिंदुत्ववादी होने का है. हिंदुत्ववादी होने का जहां तक सवाल है, इस बारे में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने राहुल गांधी के देश में चर्चित भाषण के चंद घंटों बाद ही इस में छद्म शब्द जोड़कर तस्वीर को साफ और विवाद को हल्का करने की कोशिश की.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने (CM Ashok Gehlot) सोशल मीडिया के जरिए एक बयान जारी करते हुए राहुल गांधी के हिंदुत्ववादी वाले बयान (Rahul Gandhi Hindutva Statement) के आगे छद्म शब्द को जोड़ दिया. गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हिंदुत्व के नाम पर विष फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि यह छ्द्म हिन्दुत्ववाद है, तो क्या यह समझा जाए कि राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्व का नाम सीधे लेते हुए चूक कर दी, जिसे अशोक गहलोत ने सुधारने की कोशिश की. सवाल यह भी है कि यूपी के चुनाव में अगर राहुल गांधी इस बात को लेकर जाएंगे, तो हिंदुत्ववाद रूपी मुद्दे को क्या अपनी पार्टी की नई रणनीति के तौर पर वोटर्स तक समझाने में भी कामयाब हो पाएंगे ? एक तरफ प्रियंका गांधी मंदिर-दर-मंदिर जाकर सॉफ्ट इमेज यानी सधी हुई तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रही हैं और दूसरी तरफ आक्रामक राहुल गांधी सीधे निशाना साध रहे हैं.
रविवार को जयपुर में हुई महंगाई के खिलाफ महारैली को कांग्रेस के जानकार राहुल गांधी की री-लॉन्चिंग के रूप में पेश कर रहे थे. इसका मुजायरा जयपुर शहर में लगी होर्डिंग पर भी साफ नजर आया, जहां राहुल का कद प्रियंका और सोनिया गांधी की अपेक्षा हावी था. इतनी बड़ी रैली में सोनिया गांधी ने कुछ नहीं कहा, तो प्रियंका गांधी ने कहा कि इस जंग में वे अपने भाई राहुल गांधी के साथ हैं. मतलब यूपी के रण में नेतृत्व राहुल गांधी के हाथ में ही होगा. कुल मिलाकर सियासी गणित और बयानबाजी को लेकर विपक्ष के नजरिए से कुछ खास हासिल होता हुआ नजर नहीं आता है. राजस्थान में तो ट्वीट और खानापूर्ति इस मौके पर रस्म अदायगी का नमूना है.
कांग्रेस की महारैली के दौरान मंच पर बिना पद के होते हुए भी राहुल गांधी के उद्बोधन में सचिन पायलट को तवज्जो मिलना, अग्रिम पंक्ति में उन्हें जगह मिलना और पार्टी के महासचिवों से ऊपर पायलट को तरजीह मिलना राजस्थान की राजनीति में नए (Rajasthan New Political Equation) समीकरण का संदेश देता है. एक तरफ इशारा है कि आलाकमान की नजर में और खास तौर पर राहुल गांधी के नजरिए से पायलट (Sachin Pilot in Rajasthan Politics) आने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सियासत में अहम किरदार साबित होने वाले हैं. दूसरी तरफ राजस्थान के चेहरे को लेकर जो घमासान मचा था, उसमें कौन ऊपर है, फिलहाल इसका फैसला होना बाकी है. राहुल की री-लॉन्चिंग वाली इस रैली में कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राहत है, तो राजस्थान में बेचैनी अभी बाकी है.