जयपुर: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी व्रत रखा जाता है. आज 14 सितंबर को राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2021) मनाई जा रही है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा रानी की पूजा के बिना भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी है. कृष्ण जन्माष्टमी(Shree Krishna Janamashtami) की तरह ही राधा अष्टमी की भी धूम रहती है.
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राधा अष्टमी 2021 शुभ मुहूर्त (Radha Ashtami Shubh Muhurat)
13 सितंबर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शुरू हुई तिथि 14 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है.
राधा अष्टमी महत्व (Significance Of Sri Radha Ashtami)
जन्माष्टमी की तरह ही राधा अष्टमी का विशेष महत्व (Significance Of Sri Radha Ashtami) है. कहते हैं कि राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2021) का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है. इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग राधा जी को प्रसन्न कर देते हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं. कहते हैं राधा अष्टमी के दिन राधे रानी की उपासना करने वाले का घर धन संपदा से सदा भरा रहता है. माना जाता है कि राधा अष्टमी का व्रत करने वालों को मां लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
क्या है मान्यता?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान कृष्ण के जन्म के पूरे 15 दिन बाद ब्रज के रावल गांव में राधाजी का जन्म हुआ. सो भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी व्रत (Radha Ashtami 2021) रखा जाता है. पुराणों में कृष्ण प्रिया राधा और श्री कृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मिणी को एक ही माना जाता है.
राधाजी के जन्म की कथा (Janam Katha of Radhaji)
एक दिन वृषभानु जी को तालाब में कमल के फूल पर एक नन्ही कन्या लेटी हुई मिली. वो उस कन्या को अपने घर ले आए. राधा जी को वो घर तो ले आये लेकिन वो आँखें नहीं खोल रही थी. राधा जी के आंखें न खोलने के पीछे मान्यता है कि वो जन्म के बाद सबसे पहले कृष्ण जी को देखना चाहती थी इसलिए दूसरों के लाख कोशिशों के बावजूद भी उन्होनें तब तक अपनी आँखें नहीं खोली जब तक उनकी मुलाकात कृष्ण जी से नहीं हुई. पद्म पुराण के अनुसार एक बार वृष भानु जी यज्ञ के लिए भूमि साफ़ कर रहे थे उसी दौरान धरती की कोख से उन्हें राधा रानी प्राप्त हुईं. कहते हैं कि राधा जी जिस दिन वृषभानु जी को मिली थी उस दिन अष्टमी तिथि थी इसलिए इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है.
राधा अष्टमी व्रत की पूजन विधि (Pujan Vidhi Of Radha Ashtami)
प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें. कलश पर तांबे का पात्र रखें.अब इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधाजी की सोने (संभव हो तो) की मूर्ति स्थापित करें.तत्पश्चात राधाजी का षोडशोपचार से पूजन करें. ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए. पूजन पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें. दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें.