जयपुर. मध्यप्रदेश, बिहार सहित देश के करीब 20 से 22 राज्य ऐसे हैं. जहां बाहरी राज्यों के युवाओं की अपेक्षा स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जा रही है. पिछले दिनों मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने तो साफ कर दिया कि सरकारी नौकरियों में बाहरी राज्यों को मौका ही नही देंगे. इसके अलावा अन्य राज्यों में स्थानीय भाषा की जानकारी प्राथमिता के साथ जोड़ी जा रही है. जिसके चलते वहां पर बाहरी राज्य के युवा सरकारी नौकरी में भाग नहीं ले सकते. अब इसी तर्ज पर राजस्थान में भी स्थानीय युवाओं को वरीयता देने की तैयारी की जा रही है. इसको लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कार्मिक प्रशासनिक सुधार और विधि विभाग के अधिकारियों को परीक्षण करने के निर्देश भी दे दिए हैं.
बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव बताते हैं कि पिछले 3 साल से उनके संगठन द्वारा बाहरी राज्यों के सरकारी नौकरियों में शामिल होने पर रोक लगाने की मांग की जा रही थी. लगातर महासंघ की ओर से मुख्यमंत्री को कई बार ज्ञापन भी दिया गया था. अब सरकार इस पर नियम बनाने जा रही है. जिससे प्रदेश के युवाओं को खास कर सामान्य वर्ग के युवाओं का बड़ा फायदा मिलेगा. वर्तमान में सभी भर्तियों में बाहरी राज्यों के युवाओं द्वारा अप्लाई करने पर स्थानीय बेरोजगारों को मौका नहीं मिल पा रहा था.
Etv भारत ने उठाई थी मांग
मध्य प्रदेश ने राजस्थान के छात्रों के भर्तियों में शामिल होने पर जब रोक लगाई थी, तब Etv भारत ने इस बात को प्रमुखता से उठाया था कि जब अन्य राज्य स्थानीय युवाओं को वरीयता दी सकते हैं, तो राजस्थान में क्यों नहीं? Etv भारत ने सवाल उठाया था कि आखिर कब तक राजस्थान के युवा बेरोजगारों का हिस्से बाहरी युवा छीनते रहेंगे.
60 से 70 फीसदी तक बाहरी राज्यों की दखल
उपेन यादव बताते हैं कि जेईएन 2018 की भर्ती में मुद्दा सामने आया था कि 108 पदों की भर्ती में 85 पदों पर बाहरी राज्य के युवाओं को नौकरी मिली. इसी तरह से शारीरिक शिक्षक और हाल ही में लेब टेक्नीशियन भर्ती में इसी तरहं से 60 से 70 फीसदी सामान्य पदों पर बाहरी युवाओं का कब्जा हो जाता है. जिससे प्रदेश के युवाओं को खासा निराशा हाथ लगती है.
अलग-अलग राज्यों में अलग नियम
जानकारों की मानें तो हर राज्य में भर्ती के अलग-अलग नियम है. मध्यप्रदेश, बिहार में बाहरी राज्यों पर पूरी तरह से रोक है, जबकि हरियाणा में सभी भर्तियों में स्थानीय को 10 फीसदी अंक का लाभ मिलता है. जिससे स्थानीय युवाओं की भागीदारी बढ़ जाती है. इसी तरह कई राज्यों में स्थानीय भाषा को अनिवार्य किया गया है, ताकि बाहरी राज्य का कोई भी युवा भाग नहीं ले सके. कई राज्यों में सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्थानीय राज्य से करना अनिवार्य किया हुआ है.
इन राज्यों में लगाई है पाबंदी
बिहार, झारखंड, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, असम, गोवा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने अलग-अलग नियमों के तहत बाहरी राज्यों के युवाओं को सरकारी नौकरियों पर रोक लगा रखी है.
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अलग-अलग राज्यों से मिले फीडबैक और आंकड़ों के आधार पर मुख्यमंत्री गहलोत ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वो इन सब का परीक्षण करके नियम बनाएं, ताकि राजस्थान के युवाओं को सरकारी नौकरियों में वरीयता मिले. ऐसे में जानकारों की मानें तो प्रदेश सरकार हरियाणा की तर्ज पर स्थानीय युवाओं को बोनस अंक का फार्मूला अपना सकती है या फिर सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी राजस्थान बोर्ड से पास होना अनिवार्य कर सकती है.