ETV Bharat / city

Special: भगवान के सहारे राजनेता बिठाते हैं अपनी सियासी गणित, जानिए कैसे !

राजस्थान के बड़े मंदिरों में अब वोट बैंक की राजनीति से लेकर धर्म की राजनीति की नई परिभाषाएं गढ़ी जाती है. राजनेता अपने सियासी समीकरण बनाने के लिए भगवान का सहारा ले रहे हैं. राजनेता कैसे मंदिर के जरिए एंट्री करते हैं और फिर अपना एकाधिकार जताते हैं, यहां जानिए...

author img

By

Published : Aug 4, 2020, 9:49 PM IST

Rajasthan temple news,  Rajasthan politics
मंदिर से सियासी गणित

जयपुर. राजस्थान के बड़े मंदिर अब आस्था के साथ-साथ राजनीति का केंद्र भी बन रहे हैं. जहां वोट बैंक की राजनीति से लेकर धर्म की राजनीति की नई परिभाषाएं गढ़ी जाती हैं. एकल पीठ मंदिरों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर मंदिर इसकी जद में हैं, जहां राजनेता अपने सियासी समीकरण बनाने और दूसरों के समीकरण बिगाड़ने के लिए भगवान का सहारा लेते हैं. यहां धर्म की परिभाषा राजनीति की परिभाषा के समकक्ष चलती है.

बड़े मंदिरों के ट्रस्ट पर परंपरागत तौर पर राजनेताओं का दबदबा रहा है. सरकारी नियंत्रण के बावजूद मंदिर में कुप्रबंधन, परेशानी और व्यवसाय के संस्कार होते हैं. विडंबना यह है कि बिना किसी नियंत्रण के राजस्थान में मंदिरों को मुगल और अंग्रेज काल में भी कोई परेशानी नहीं आई. ऐसे में मंदिरों में आने वाले चढ़ावे और दान के तौर पर मिलने वाली पूरी रकम पर ट्रस्ट का नियंत्रण राजनेताओं के हाथों में रहता है. ऐसे में ईटीवी भारत ने आम जनता के बीच जाकर मंदिरों के ट्रस्ट में राजनेताओं के हस्तक्षेप को लेकर राय जानी, तो मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई.

मंदिर से सियासी गणित

मंदिर के भक्तों से राजनेताओं को सपोर्ट मिलता है...

शहरवासी नवीन श्रीवास्तव ने बताया कि मंदिरों के भक्तों से राजनीतिज्ञों को बहुत बड़ा सपोर्ट मिलता है. उन्होंने बताया कि यहां जो भक्त आते हैं, उन लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए जितने भी बड़े राजनेता हैं वो सब अपना कोई ना कोई वर्चस्व चाहते हैं. जितने बड़े मंदिर देखें जैसे कि पद्यनाम मंदिर हो या फिर जगन्नाथ पुरी मंदिर हो, वहां भी हमेशा टकराव रहा है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का एकमात्र मंदिर जहां पर है पारे का शिवलिंग, एक बार पूजा करने पर हो जाती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

श्रीवास्तव ने बताया कि जितने भी राजनीतिज्ञ हैं वे अपने सपोर्ट के जरिए वोट पाने के लिए मंदिरों के ट्रस्टी बनकर अपना वर्चस्व बनाते हैं. साथ ही मंदिर के महंत भी अपना कोई ना कोई पॉलिटिक्ल बिल्ड को पूरा करने के लिए या फिर अपने आप को मजबूत बनाने के लिए राजनेताओं से रिश्ते बनाते हैं. साथ ही साथ मंदिरों में चढ़ावे के रूप में बहुत पैसा आता है, उस पर भी अपना नियंत्रण बनाने के लिए राजनीतिज्ञ ट्रस्ट में शामिल होकर अपना हस्तक्षेप रखने लगते हैं.

Rajasthan temple news,  Rajasthan politics
हनुमानजी का मंदिर

राजनेता मंदिर में ऐसे करते हैं एंट्री...

वहीं, राजनेता कैसे मंदिर के जरिए एंट्री करते हैं और फिर अपना एकाधिकार जताते हैं, इसके बारे में बताते हुए अमित सक्सेना ने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति-विशेष मंदिर गया है तो कभी ना कभी अपनी इच्छाएं लेकर गया है, जिससे कि उसको कोई सहूलियत मिलेगी. जब उसको सहूलियत मिलेगी तो और बड़े लोग मंदिर का रुख करेंगे और जब संख्या बढ़ेगी तो समस्याएं भी बढ़ने लगेगी. ऐसे में मंदिर प्रांगण से निकलकर वो समस्या समुदाय में चली गई तो उस समुदाय में कोई ना कोई व्यक्ति ऐसा होगा जो उस समस्या का समाधान कर सकता हो.

पढ़ें- चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर : जहां पर चंद्रभागा नदी में स्नान के पश्चात पूजा करने पर होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

सक्सेना ने बताया कि अब उस समस्या का समाधान जब वो बड़ा नेता कर देता है तो जाहिर है कि ट्रस्ट बनते हैं. उन्होंने कहा कि उस समय मंदिर के पास इतना पैसा नहीं होता है, वो धीरे-धीरे भक्तों के दान से बढ़ता है. ऐसे में राजनेता लोग अपनी महत्वकांक्षाए के लिए मंदिर के ट्रस्ट में दखल देना शुरू कर देता है, जबकि मंदिर और राजनीति दोनों अलग चीज है.

Rajasthan temple news,  Rajasthan politics
मोती डूंगरी गणेशजी मंदिर

मंदिर में आ रही धनराशि का कोई ऑडिट नहीं...

मंदिर में जो धनराशि आती है उसका कोई ऑडिट नहीं हो रहा है. अगर उसका ऑडिट हो रहा है तो वो हर सप्ताह या फिर महीने में एक बार सार्वजनिक होना चाहिए, जिससे कि मंदिर में आने वाले भक्तों को भी जानकारी मिले. कहां कितना पैसा खर्च हुआ है और जो पैसा बचा है वो या तो राजकोष में जमा हो या फिर उसका उपयोग रजनात्मक काम में होना चाहिए.

मंदिर में आ रही धनराशि का सदुपयोग होना चाहिए...

हालांकि, कई मंदिरों में आने वाली धनराशि का उपयोग सही जगह हो रहा है, लेकिन अगर ये गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च, विधवाओं, बेरोजगारों को कोई ना कोई आर्थिक लाभ जैसे कार्य 100 फीसदी से 80 फीसदी भी हो जाएं तो अच्छा रहेगा. ऐसे में लोगों की आम राय को जोड़कर देखे तो कई लोगों का कहना है कि राजनीति नियंत्रण से हटके कुछ समाजसेवियों का और कुछ पब्लिक का भी नियंत्रण होना चाहिए. जितनी राशि मंदिर में आ रही है उसका सदुपयोग होना चाहिए. साथ ही आमजनता का पैसा मंदिर और बेसहारा गरीब निर्धन परिवारों के हित के लिए काम में लेना चाहिए.

आजादी के बाद भारत में कई राज्यों ने कानून पारित किए, जिन्होंने सार्वजनिक हिंदू मंदिरों को राज्य नौकरशाही की शाखाओं में बदल दिया. जो कि अनुष्ठानों और देवताओं के बजाय राजनेताओं के वोट बैंक के लिए बना दिया है. फिर भी दशकों से लोग इस बात को खोज रहे हैं कि इस तरह के मंदिर कुप्रबंधन, उत्पीड़न और व्यवसायिक अनुष्ठानों के स्थल बन गए हैं.

जयपुर. राजस्थान के बड़े मंदिर अब आस्था के साथ-साथ राजनीति का केंद्र भी बन रहे हैं. जहां वोट बैंक की राजनीति से लेकर धर्म की राजनीति की नई परिभाषाएं गढ़ी जाती हैं. एकल पीठ मंदिरों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर मंदिर इसकी जद में हैं, जहां राजनेता अपने सियासी समीकरण बनाने और दूसरों के समीकरण बिगाड़ने के लिए भगवान का सहारा लेते हैं. यहां धर्म की परिभाषा राजनीति की परिभाषा के समकक्ष चलती है.

बड़े मंदिरों के ट्रस्ट पर परंपरागत तौर पर राजनेताओं का दबदबा रहा है. सरकारी नियंत्रण के बावजूद मंदिर में कुप्रबंधन, परेशानी और व्यवसाय के संस्कार होते हैं. विडंबना यह है कि बिना किसी नियंत्रण के राजस्थान में मंदिरों को मुगल और अंग्रेज काल में भी कोई परेशानी नहीं आई. ऐसे में मंदिरों में आने वाले चढ़ावे और दान के तौर पर मिलने वाली पूरी रकम पर ट्रस्ट का नियंत्रण राजनेताओं के हाथों में रहता है. ऐसे में ईटीवी भारत ने आम जनता के बीच जाकर मंदिरों के ट्रस्ट में राजनेताओं के हस्तक्षेप को लेकर राय जानी, तो मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई.

मंदिर से सियासी गणित

मंदिर के भक्तों से राजनेताओं को सपोर्ट मिलता है...

शहरवासी नवीन श्रीवास्तव ने बताया कि मंदिरों के भक्तों से राजनीतिज्ञों को बहुत बड़ा सपोर्ट मिलता है. उन्होंने बताया कि यहां जो भक्त आते हैं, उन लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए जितने भी बड़े राजनेता हैं वो सब अपना कोई ना कोई वर्चस्व चाहते हैं. जितने बड़े मंदिर देखें जैसे कि पद्यनाम मंदिर हो या फिर जगन्नाथ पुरी मंदिर हो, वहां भी हमेशा टकराव रहा है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का एकमात्र मंदिर जहां पर है पारे का शिवलिंग, एक बार पूजा करने पर हो जाती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

श्रीवास्तव ने बताया कि जितने भी राजनीतिज्ञ हैं वे अपने सपोर्ट के जरिए वोट पाने के लिए मंदिरों के ट्रस्टी बनकर अपना वर्चस्व बनाते हैं. साथ ही मंदिर के महंत भी अपना कोई ना कोई पॉलिटिक्ल बिल्ड को पूरा करने के लिए या फिर अपने आप को मजबूत बनाने के लिए राजनेताओं से रिश्ते बनाते हैं. साथ ही साथ मंदिरों में चढ़ावे के रूप में बहुत पैसा आता है, उस पर भी अपना नियंत्रण बनाने के लिए राजनीतिज्ञ ट्रस्ट में शामिल होकर अपना हस्तक्षेप रखने लगते हैं.

Rajasthan temple news,  Rajasthan politics
हनुमानजी का मंदिर

राजनेता मंदिर में ऐसे करते हैं एंट्री...

वहीं, राजनेता कैसे मंदिर के जरिए एंट्री करते हैं और फिर अपना एकाधिकार जताते हैं, इसके बारे में बताते हुए अमित सक्सेना ने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति-विशेष मंदिर गया है तो कभी ना कभी अपनी इच्छाएं लेकर गया है, जिससे कि उसको कोई सहूलियत मिलेगी. जब उसको सहूलियत मिलेगी तो और बड़े लोग मंदिर का रुख करेंगे और जब संख्या बढ़ेगी तो समस्याएं भी बढ़ने लगेगी. ऐसे में मंदिर प्रांगण से निकलकर वो समस्या समुदाय में चली गई तो उस समुदाय में कोई ना कोई व्यक्ति ऐसा होगा जो उस समस्या का समाधान कर सकता हो.

पढ़ें- चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर : जहां पर चंद्रभागा नदी में स्नान के पश्चात पूजा करने पर होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

सक्सेना ने बताया कि अब उस समस्या का समाधान जब वो बड़ा नेता कर देता है तो जाहिर है कि ट्रस्ट बनते हैं. उन्होंने कहा कि उस समय मंदिर के पास इतना पैसा नहीं होता है, वो धीरे-धीरे भक्तों के दान से बढ़ता है. ऐसे में राजनेता लोग अपनी महत्वकांक्षाए के लिए मंदिर के ट्रस्ट में दखल देना शुरू कर देता है, जबकि मंदिर और राजनीति दोनों अलग चीज है.

Rajasthan temple news,  Rajasthan politics
मोती डूंगरी गणेशजी मंदिर

मंदिर में आ रही धनराशि का कोई ऑडिट नहीं...

मंदिर में जो धनराशि आती है उसका कोई ऑडिट नहीं हो रहा है. अगर उसका ऑडिट हो रहा है तो वो हर सप्ताह या फिर महीने में एक बार सार्वजनिक होना चाहिए, जिससे कि मंदिर में आने वाले भक्तों को भी जानकारी मिले. कहां कितना पैसा खर्च हुआ है और जो पैसा बचा है वो या तो राजकोष में जमा हो या फिर उसका उपयोग रजनात्मक काम में होना चाहिए.

मंदिर में आ रही धनराशि का सदुपयोग होना चाहिए...

हालांकि, कई मंदिरों में आने वाली धनराशि का उपयोग सही जगह हो रहा है, लेकिन अगर ये गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च, विधवाओं, बेरोजगारों को कोई ना कोई आर्थिक लाभ जैसे कार्य 100 फीसदी से 80 फीसदी भी हो जाएं तो अच्छा रहेगा. ऐसे में लोगों की आम राय को जोड़कर देखे तो कई लोगों का कहना है कि राजनीति नियंत्रण से हटके कुछ समाजसेवियों का और कुछ पब्लिक का भी नियंत्रण होना चाहिए. जितनी राशि मंदिर में आ रही है उसका सदुपयोग होना चाहिए. साथ ही आमजनता का पैसा मंदिर और बेसहारा गरीब निर्धन परिवारों के हित के लिए काम में लेना चाहिए.

आजादी के बाद भारत में कई राज्यों ने कानून पारित किए, जिन्होंने सार्वजनिक हिंदू मंदिरों को राज्य नौकरशाही की शाखाओं में बदल दिया. जो कि अनुष्ठानों और देवताओं के बजाय राजनेताओं के वोट बैंक के लिए बना दिया है. फिर भी दशकों से लोग इस बात को खोज रहे हैं कि इस तरह के मंदिर कुप्रबंधन, उत्पीड़न और व्यवसायिक अनुष्ठानों के स्थल बन गए हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.