जयपुर. श्राद्ध पक्ष में पितरों के नाम से जल और अन्न का दान किया जाता है. उनके निमित्त एक ऐसे पक्षी को अन्न-जल (Pitru Paksha 2022) दिया जाता है, जिसकी कर्कश आवाज लोग सुनना भी पसंद नहीं करते. उसकी श्राद्ध पक्ष में आवभगत की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कौवे ने अगर भोजन कर लिया, तो वो भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है. ऐसे में लोग कौवे खोजने के लिए छतों से लेकर दूर-दराज जल महल और रामनिवास बाग तक पहुंच रहे हैं.
दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए श्राद्ध पक्ष शुरू हो गया है. पितरों को प्रसन्न करने, तर्पण, हवन और दान के लिहाज से इन दिवसों को खास माना जाता है. पितरों को खुश करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. इसके साथ ही पंचबलि यानी गाय, देवता, चींटियां, कुत्ते और कौवे को भोग लगाया जाता है. इसमें कौवों का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इंसान मौत के बाद सबसे पहले कौवे के रूप में जन्म लेता है.
कौवे को परोसते हैं भोजन: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कौवों ने अगर भोजन कर लिया, तो वो भोजन सीधे पितरों (Crow is feeded during Pitru Paksha) तक पहुंच जाता है. पहले जहां लोग दिवंगत पितृजनों को भोग लगाने के लिए छत पर भोजन रख दिया करते थे. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब आमतौर पर कौवे देखने को नहीं मिलते. इसलिए लोग कौवों की राह ताकते हुए जल महल और रामनिवास बाग जैसे क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं. यहां विशेष स्थान पर ये मिल भी जाते हैं. लोग इन्हें पितरों का प्रतिनिधि मानते हुए घर में बने स्वादिष्ट व्यंजन परोसते हैं.
ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार गरुड़ पुराण में कौवा को यम का प्रतीक मानते हैं. वहीं श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिए जल और अन्न का दान किया जाता है. श्राद्ध पक्ष में कौवा दिए हुए भोजन को ग्रहण कर लेता है तो माना जाता है कि पितरों ने उस भोजन को स्वीकार कर लिया. इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है. माना जाता है कि कौवे हमारा संदेश पितरों तक पहुंचाते हैं.
संरक्षण की आवश्यकता: बहरहाल, श्राद्ध के समय ही लोगों को कौवे की याद आती है. मगर ये आसानी से नहीं मिल पाते हैं. इसके लिए लोगों को भटकना पड़ता है. बहुत से लोग छत पर भोजन रखते हैं तो वो ऐसे ही रखा रह जाता है. पुराने मोहल्लों और सोसायटियों में तो कौवे दिखाई ही नहीं देते हैं. इसका कारण बिगड़ता पर्यावरण और बढ़ते शहरीकरण को भी बताया जाता है. ऐसे जरूरत है इनके संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएं. अन्यथा भविष्य में श्राद्ध पक्ष का अनुष्ठान पूरा नहीं हो पाएगा.