जयपुर. कोरोना संकट से अब थोड़ी राहत है. जन जीवन सामान्य होने लगा है. दिवाली का सबसे बड़ा त्योहार गुजर चुका है. कई बच्चे ऐसे हैं जिनकी यह दिवाली मायूसी में ही गुजरी. कोरोना ने इन बच्चों से उनके माता-पिता को छीन लिया था.
त्योहार पर बच्चों को नए कपड़ों और पटाखों की खरीद का शौक रहता है. लेकिन हेमिश और गगन जैसे सैकड़ों बच्चों की दिवाली इस बार मायूसी में गुजरी है. इन बच्चों के माता-पिता दोनों की मृत्यु कोरोना की दूसरी लहर में हो गई थी. राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने ऐसे बच्चों के लिए मुख्यमंत्री कोरोना सहायता का एलान किया था. यह आर्थिक सहायता तुरंत दी जानी थी. लेकिन अधिकारियों की संवेदनाएं इस कदर मर चुकी हैं कि उन्हें अनाथ बच्चों की तकलीफ भी दिखाई नहीं दे रही है.
हेमिश जैन के माता-पिता कोरोना की दूसरी लहर का शिकार हो गए थे. गगन ने भी अपने माता-पिता को खोया है. प्रदेश में ऐसे 678 बच्चे चिन्हित किए गए जिन्होंने अपने माता-पिता को कोरोना के दौरान खो दिया. ये अनाथ बच्चे अब किसी दूर के रिश्तेदार या पड़ोसी के पास रह रहे हैं. कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक संबल देने के लिए राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री कोरोना सहायता योजना शुरू की थी, लेकिन उसका लाभ जरूरतमंद बच्चों तक नहीं पहुंच रहा है.
मुख्यमंत्री की इस योजना के लिए लगभग 6500 आवेदन किए गए थे. इसमें से 678 नाबालिग बच्चों को चिन्हित किया गया. इनमें से भी कुछ बच्चों तक ही मदद पहुंच सकी है.
किस जिले में कितने बच्चों को मिली राहत
मुख्यमंत्री कोरोना आर्थिक सहायता का लाभ अब तक 145 बच्चों तक ही पहुंचा है. इनमें नागौर में 17 , कोटा में 15 , जोधपुर में 9 , पाली में 9, अजमेर में 9, भीलवाड़ा में 9, जयपुर में 9, भरतपुर में 4, धौलपुर में 2, करौली में 5, सवाई माधोपुर में 2, बीकानेर में 2, चूरू में 1, हनुमानगढ़ में 4, श्रीगंगानगर में 1, अलवर में 3, दौसा में 6, झुंझुनू में 6, सीकर में 3, बाड़मेर में 3, सिरोही में 3, बारां में 3, बूंदी में 2, झालावाड़ में 2, बांसवाड़ा में 3, चित्तौड़गढ़ में 2, डूंगरपुर में 5, प्रतापगढ़ में 4, उदयपुर में 2 बच्चों तक ही सरकारी राहत पहुंच पाई है.
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इसके अलावा कोटा, जैसलमेर, जालोर और राजसमंद ऐसे जिले हैं जिनमें एक भी बच्चे को आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि कोरोना काल के प्रभावित बच्चों और विधवा महिलाओं को इस योजना में जिस स्तर पर लाभ मिलना चाहिए था वह नहीं मिला है. योजना के लिए सरकार के पास 6500 आवेदन आए थे. जिसमें से 678 अनाथ बच्चों के आवेदन आए. 6500 में से 500 से कम जरूरतमंदों तक ही मदद पहुंची है. जबकि 6000 से ज्यादा के मामले अभी भी पेंडिंग हैं. वे कहते हैं कि योजना को लेकर अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रदेश में कितने बच्चे अनाथ हुए और कितने बच्चों तक राहत पहुंचाई गई है.
मुख्यमंत्री कोरोना बाल सहायता के तहत राहत पैकेज
मुख्यमंत्री कोरोना बाल सहायता की श्रेणी में अनाथ बच्चों के लिए आर्थिक सहायता के मापदंड व राशि तय की गई है. इसमें पात्र बच्चों के बैंक खाते में राशि हस्तांतरित करने की योजना है. प्रत्येक बच्चे को तुरंत एक-एक लाख रुपए एकमुश्त अनुदान और प्रत्येक बच्चे को 18 साल का होने तक ढाई हजार रुपए हर माह देने की योजना है. बच्चे के 18 साल का होने पर 5 लाख रुपये एकमुश्त देने के अलावा एकल महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई थी.
जानकारों का कहना है कि सरकार की नीयत अच्छी है. इसलिए सरकार ने तत्काल आर्थिक राहत का प्रावधान किया. लेकिन नौकरशाही की लापरवाही का खामियाजा मासूम पीड़ितों को उठाना पड़ रहा है. इस संकट की घड़ी में बच्चों का सहारा बने पड़ोसी और दूर के रिश्तेदार भी कहते है कि सरकार ने घोषणा की लेकिन उसे इम्प्लीमेंट करने वाले अधिकारी इस कदर लापरवाह हैं कि नन्हें बच्चों की आर्थिक स्थिति से कोई सरोकार नहीं रखते. अगर समय पर बच्चों को आर्थिक मदद मिले तो उनका कुछ भला हो सकता है.
सरकार से बड़े मददगार बने 'कुछ अपने'
हेमिश जैन के माता-पिता की मौत के बाद वह बिल्कुल अकेला हो गया था. सरकार ने अनाथ हुए बच्चों के लिए तुंरत आर्थिक मदद देने का एलान किया लेकिन हेमिश अभी तम मदद का इंतजार ही कर रहा है. ऐसे में उसके दूर के रिश्तेदार प्रणय हेमिश की देखभाल कर रहे हैं. इसी तरह गनन के माता-पिता की मौत के बाद वह बिल्कुल अकेला हो गया था. ऐसे में गगन के दोस्त ने मदद का हाथ बढ़ाया. गनन के दोस्त के पिता रामप्रकाश पिछले कुछ महीनों से गनन की देखभाल कर रहे हैं. वाकई, छीनने वाले से देने वाले के हाथ बड़े होते हैं. लोग तो संवेदनशील हैं, लेकिन सरकार को भी इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी होगी.