जयपुर. राजस्थान में जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में आए नतीजो के बाद भले ही सत्ताधारी दल कांग्रेस यह क्यों ना कह दें कि उनको मिला वोट प्रतिशत भाजपा से ज्यादा है, लेकिन हकीकत यह है कि कांग्रेस की सरकार है ऐसे में जिस पार्टी की सरकार होती है उस पार्टी को चुनाव में फायदा मिलता है. ऐसे में सत्ताधारी दल कांग्रेस की हार पर सवाल खड़े होना लाजमी था.
शनिवार को राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इन चुनाव में मिली हार के कारणों को बताया. उन्होंने स्वीकार किया कि कांग्रेस संगठन की कार्यकारिणी का नहीं बना होना, सरपंचों के चुनाव, जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव से 1 साल पहले हो जाना और कोरोना संक्रमण के कारण मंत्रियों-विधायकों का ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय नहीं होना, कांग्रेस की हार का कारण बना है.
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डोटासरा ने कहा कि हम उम्मीद करते थे कि प्रदेश में हमारी सरकार है और अच्छा काम कर रही है और हमारे सरपंच भी बड़ी संख्या में कांग्रेस विचारधारा के जीते हैं, उसके बावजूद परिणाम हमारे अनुरूप नहीं रहा. हार के कारण गिनाते हुए उन्होंने कहा की हार के तीन प्रमुख कारण रहे. उनमें से एक कारण प्रदेश कांग्रेस संगठन का नहीं बनना.
गोविंद सिंह ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी नहीं बनी, जिससे संगठन के लोगों को इन चुनावों में ज्यादा उपयोग में नहीं लिया जा सका. इससे इन चुनाव में जो मैनेजमेंट जिले और पंचायत समिति में होना चाहिए था, उसकी कमी रही. दूसरा कारण डोटासरा ने बताते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण से जनता को बचाने के लिए सरकार मुस्तैदी से काम कर रही थी, जिसमें मंत्री और विधायक लगे हुए थे और उन्होंने सफलतापूर्वक कोरोना संक्रमण के समय बचाव के काम भी किए. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना का संक्रमण कम था, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को यह लगा कि इन छह-सात महीने में हमारे जनप्रतिनिधियों ने हमारी सुध नहीं ली.
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इसके साथ ही तीसरा कारण बताते हुए डोटासरा ने कहा कि पहली बार सरपंचों, जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों के साथ चुनाव नहीं हुए. इसमें 1 साल का गैप रहा. अगर चुनाव साथ होते हैं तो सरपंच जो कांग्रेस विचारधारा के बने थे, वह कांग्रेस प्रत्याशियों को खुलकर समर्थन करते हैं. लेकिन साथ चुनाव नहीं होने से वह सरपंच जो कांग्रेस विचारधारा के थे वह अपने मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहते थे, ऐसे में उन्होंने खुलकर सीधा कांग्रेस को समर्थन नहीं किया. यही कारण है कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही निर्दलीय भी बड़ी संख्या में जीते.