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विशेष: राजस्थान में पुरानी है सत्ता के लिए संघर्ष की कहानी...सुनें- इतिहासकार की जुबानी...

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Published : Jul 29, 2020, 5:51 PM IST

वर्तमान में राजस्थान में चल रहे सियासी संग्राम के बारे में देश की पूरी जनता वाकिफ है. बता दें कि सत्ता की लड़ाई आज से नहीं बल्कि सदियों पुरानी है. राजा महाराजाओं के वक्त भी सत्ता के लिए हुए युद्ध आज भी प्रसिद्ध है. सत्ता की यही लड़ाई वर्तमान में प्रदेश की राजनीति का केंद्र बनी हुई है. जनता ने कांग्रेस सरकार को चुना, लेकिन कांग्रेस के बीच राजा की गद्दी को लेकर आपसी खींचतान चल रही है.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
इतिहासकार देवेंद्र कुमार

जयपुर. राजस्थान में राजनीतिक घमासान कोई नई बात नहीं है. यहां प्रजातंत्र में सत्ता संग्राम हो या आजादी से पहले राजतंत्र में राजगद्दी को लेकर संग्राम होता रहा है. इन दिनों कांग्रेस सरकार में सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट एक ही पार्टी के होने के बावजूद शह-मात का खेल खेल रहे हैं.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार का साक्षात्कार

राजतंत्र के दौरान रियासत की गद्दी पर काबिज होने के लिए सवाई जयसिंह द्वितीय के बाद से लगातार राजवंश में भी टकराव की स्थिति बनी रही थी. फिर चाहे ईश्वरी सिंह और माधो सिंह की पीढ़ी का मसला हो, या फिर पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह का. राजस्थान की दूसरी रियासत जोधपुर और उदयपुर में भी यही हालात रहे हैं. लोकतंत्र की भावना हमारे देश की मूल संस्कृति का हिस्सा है.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार का साक्षात्कार

राजा भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम है, उन्होंने अपने बेटों में से किसी को राजा ना बनाकर, जनता में से भूमन्यु नामक एक व्यक्ति को राजा बनाया. जिसका विद्रोह उस जमाने में राजा भरत की माता, पत्नी और मंत्रियों ने भी किया, लेकिन उनका मानना था कि जनता का राजा बनने का मतलब ये है कि जनता के प्रति हमारी सकारात्मक सोच हो. उन्हें लगता था कि उनके पुत्रों में ये सोच नहीं है. इसलिए उन्होंने जनता में से एक व्यक्ति को चुना. लोकतंत्र की पहली आधारशिला वहीं से है. इसका सीधा सा आशय ये है कि राजतंत्र के दौरान भी देश में लोकतंत्र हुआ करता था. प्रजा को ही सर्वोपरि माना जाता था.

पढ़ेंः Special: कोरोना काल में आत्मनिर्भर हुई बहनें, भाई की कलाई पर बांधेंगी खुद की बनाई राखी

वर्तमान में यही विषय प्रदेश की राजनीति का केंद्र बना हुआ है. जहां जनता ने कांग्रेस सरकार को चुना, लेकिन कांग्रेस के बीच राजा की गद्दी को लेकर आपसी खींचतान चल रही है. हालांकि राजस्थान के लिए ये कोई नई बात नहीं है. राजतंत्र के दौरान यानी कि स्टेट पीरियड में भी प्रदेश में यही हालात बने हुए थे. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर रियासत में राजगद्दी के लिए कई तरह के षड्यंत्र हुए हैं.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
राजा माधो सिंह

सवाई जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच भी राजगद्दी को लेकर इस तरह का विवाद चला. इस विवाद में ईश्वरी सिंह को अपने प्राण खोने पड़े और माधो सिंह जयपुर के राजा बने. दरअसल, ईश्वरी सिंह सवाई जय सिंह के बड़े पुत्र थे. जबकि उदयपुर की राजकुमारी उनकी दूसरी पत्नी थी, जिनके बेटे को राजा बनाने का सवाई जयसिंह ने वचन दिया था.

ऐसे में उदयपुर रियासत ने माधो सिंह को राजा बनाने के लिए कई बार युद्ध किया, आखिर में ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली. जिसके बाद माधो सिंह राजगद्दी पर बैठे. माधो सिंह के बाद भी इसी तरह का विवाद उनके पुत्रों पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह के बीच रहा. चूंकि पृथ्वी सिंह छोटी रानी के बेटे थे, लेकिन बड़े होने के चलते उन्हें राजगद्दी पर बिठाया गया, लेकिन उस वक्त रानियों में मेरा बेटा राजा बने, उसके हाथ में सत्ता हो, राजनीति शक्तियां रहे, जिससे वो राजतंत्र चला सके इस तरह की भावना राज परिवार के सदस्यों में पाई जाती थी. बताया जाता है कि प्रताप सिंह को राजगद्दी दिलाने के लिए पृथ्वी सिंह को भी मरवा दिया गया था.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
महाराणा प्रताप सिंह

पढ़ेंः SPECIAL: लॉकडाउन में बूंदी पुलिस की सख्ती, 4 महीने में बनाए 20 हजार वाहनों के चालान

इसके बाद प्रताप सिंह गद्दी पर बैठे. उनके बाद उनके पुत्र जगत सिंह ने राजगद्दी संभाली. हालांकि जगत सिंह के कोई पुत्र नहीं था. उस वक्त जयपुर में जनानी ड्योढ़ी यानी महिलाओं का राज चला. जिसके कारण जय सिंह तृतीय को राजगद्दी मिली. उन्हें भी मरना पड़ा, और उनके बाद सवाई राम सिंह को गद्दी मिली. राम सिंह के भी कोई पुत्र नहीं होने की वजह से उन्होंने ईसरदा ठिकाने से कायम सिंह, जिन्हें माधो सिंह द्वितीय के नाम से जाना जाता है उन्हें गोद लिया और राज गद्दी पर बैठाया. फिर राजा की गद्दी पर अपने-अपने ठिकानों से उत्तराधिकारी बैठे ये प्रचलन शुरू हुआ. घूसखोरी, कैबिनेट सदस्यों को मैनेज करना, उस दौर में शुरू हुआ. उसके बाद मानसिंह द्वितीय को भी ईसरदा से लाया गया. जिनका चौमूं डिग्गी के सरदारों ने विद्रोह किया.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
सवाई जयसिंह द्वितीय

आमतौर पर मानें तो जयपुर का जनमानस दिवंगत महाराजा की नीतियों के अनुसार चला करते थे, और जनता का ही आधार सर्वोपरि माना जाता था. प्रदेश में जयपुर रियासत के अलावा भी जोधपुर और उदयपुर बड़ी रियासत रही है. जहां भी इसी तरह का सत्ता संग्राम देखने को मिला था. इस संबंध में देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जोधपुर रियासत में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के दौरान उनके कोई पुत्र नहीं था. हालांकि रानी गर्भवती थी. इस बात का फायदा मुगल शासक औरंगजेब ने उठाया और जसवंत सिंह की रियासत को हड़प लिया. बाद में अजीत सिंह पैदा हुए और वीर दुर्गादास ने उन्हें राज दिलाया.

पढ़ेंः SPECIAL: पाली में बना प्रदेश का पहला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

इसी तरह का इतिहास उदयपुर यानी मेवाड़ रियासत से जुड़ा हुआ है. जहां महाराणा प्रताप उदय सिंह के बड़े पुत्र जरूर थे, लेकिन राज परिवार के किसी व्यक्ति की सोच उन्हें राजा बनाने के प्रति नहीं थी. उदय सिंह की छोटी रानी के बेटे जगमाल को राजा बनाना चाहते थे, लेकिन मेवाड़ की जनता और विश्वसनीय सरदार राणा प्रताप के साथ थे, उन्होंने राणा प्रताप को महाराणा बनाया.

कहा जा सकता है कि उस वक्त राजतंत्र में भी जनतंत्र चला और आज भी वही जनतंत्र अपना राजा यानी अपनी सरकार चुनती है. स्टेट पीरियड के बाद जब जनता ने सरकार चुनना शुरू किया, उस वक्त भी कुछ विरोधाभास वाली स्थिति आई. हीरालाल शास्त्री को प्रदेश का सीएम जरूर बनाया गया, लेकिन वो जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थे. यही वजह रही कि बाद में जयनारायण व्यास को सीएम बनाया गया. फिर मोहनलाल सुखाड़िया आए.

पढ़ेंः Special: पेयजल योजना से वंचित इलाकों में बीसलपुर बांध से पानी पहुंचाने का कार्य कर रहा जयपुर जलदाय विभाग

इससे ये स्पष्ट है कि जो जनता के बीच लोकप्रिय होगा, वही राजा या मुख्यमंत्री बनेगा. ये राजस्थान प्रदेश के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इस जनतंत्र ने जिस सरकार को चुना वो आपसी मतभेद के चलते अस्थिर बनी हुई है और इसी पर फिलहाल प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है.

जयपुर. राजस्थान में राजनीतिक घमासान कोई नई बात नहीं है. यहां प्रजातंत्र में सत्ता संग्राम हो या आजादी से पहले राजतंत्र में राजगद्दी को लेकर संग्राम होता रहा है. इन दिनों कांग्रेस सरकार में सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट एक ही पार्टी के होने के बावजूद शह-मात का खेल खेल रहे हैं.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार का साक्षात्कार

राजतंत्र के दौरान रियासत की गद्दी पर काबिज होने के लिए सवाई जयसिंह द्वितीय के बाद से लगातार राजवंश में भी टकराव की स्थिति बनी रही थी. फिर चाहे ईश्वरी सिंह और माधो सिंह की पीढ़ी का मसला हो, या फिर पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह का. राजस्थान की दूसरी रियासत जोधपुर और उदयपुर में भी यही हालात रहे हैं. लोकतंत्र की भावना हमारे देश की मूल संस्कृति का हिस्सा है.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार का साक्षात्कार

राजा भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम है, उन्होंने अपने बेटों में से किसी को राजा ना बनाकर, जनता में से भूमन्यु नामक एक व्यक्ति को राजा बनाया. जिसका विद्रोह उस जमाने में राजा भरत की माता, पत्नी और मंत्रियों ने भी किया, लेकिन उनका मानना था कि जनता का राजा बनने का मतलब ये है कि जनता के प्रति हमारी सकारात्मक सोच हो. उन्हें लगता था कि उनके पुत्रों में ये सोच नहीं है. इसलिए उन्होंने जनता में से एक व्यक्ति को चुना. लोकतंत्र की पहली आधारशिला वहीं से है. इसका सीधा सा आशय ये है कि राजतंत्र के दौरान भी देश में लोकतंत्र हुआ करता था. प्रजा को ही सर्वोपरि माना जाता था.

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वर्तमान में यही विषय प्रदेश की राजनीति का केंद्र बना हुआ है. जहां जनता ने कांग्रेस सरकार को चुना, लेकिन कांग्रेस के बीच राजा की गद्दी को लेकर आपसी खींचतान चल रही है. हालांकि राजस्थान के लिए ये कोई नई बात नहीं है. राजतंत्र के दौरान यानी कि स्टेट पीरियड में भी प्रदेश में यही हालात बने हुए थे. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर रियासत में राजगद्दी के लिए कई तरह के षड्यंत्र हुए हैं.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
राजा माधो सिंह

सवाई जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच भी राजगद्दी को लेकर इस तरह का विवाद चला. इस विवाद में ईश्वरी सिंह को अपने प्राण खोने पड़े और माधो सिंह जयपुर के राजा बने. दरअसल, ईश्वरी सिंह सवाई जय सिंह के बड़े पुत्र थे. जबकि उदयपुर की राजकुमारी उनकी दूसरी पत्नी थी, जिनके बेटे को राजा बनाने का सवाई जयसिंह ने वचन दिया था.

ऐसे में उदयपुर रियासत ने माधो सिंह को राजा बनाने के लिए कई बार युद्ध किया, आखिर में ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली. जिसके बाद माधो सिंह राजगद्दी पर बैठे. माधो सिंह के बाद भी इसी तरह का विवाद उनके पुत्रों पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह के बीच रहा. चूंकि पृथ्वी सिंह छोटी रानी के बेटे थे, लेकिन बड़े होने के चलते उन्हें राजगद्दी पर बिठाया गया, लेकिन उस वक्त रानियों में मेरा बेटा राजा बने, उसके हाथ में सत्ता हो, राजनीति शक्तियां रहे, जिससे वो राजतंत्र चला सके इस तरह की भावना राज परिवार के सदस्यों में पाई जाती थी. बताया जाता है कि प्रताप सिंह को राजगद्दी दिलाने के लिए पृथ्वी सिंह को भी मरवा दिया गया था.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
महाराणा प्रताप सिंह

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इसके बाद प्रताप सिंह गद्दी पर बैठे. उनके बाद उनके पुत्र जगत सिंह ने राजगद्दी संभाली. हालांकि जगत सिंह के कोई पुत्र नहीं था. उस वक्त जयपुर में जनानी ड्योढ़ी यानी महिलाओं का राज चला. जिसके कारण जय सिंह तृतीय को राजगद्दी मिली. उन्हें भी मरना पड़ा, और उनके बाद सवाई राम सिंह को गद्दी मिली. राम सिंह के भी कोई पुत्र नहीं होने की वजह से उन्होंने ईसरदा ठिकाने से कायम सिंह, जिन्हें माधो सिंह द्वितीय के नाम से जाना जाता है उन्हें गोद लिया और राज गद्दी पर बैठाया. फिर राजा की गद्दी पर अपने-अपने ठिकानों से उत्तराधिकारी बैठे ये प्रचलन शुरू हुआ. घूसखोरी, कैबिनेट सदस्यों को मैनेज करना, उस दौर में शुरू हुआ. उसके बाद मानसिंह द्वितीय को भी ईसरदा से लाया गया. जिनका चौमूं डिग्गी के सरदारों ने विद्रोह किया.

राजस्थान के राजा महाराजा, King of rajasthan
सवाई जयसिंह द्वितीय

आमतौर पर मानें तो जयपुर का जनमानस दिवंगत महाराजा की नीतियों के अनुसार चला करते थे, और जनता का ही आधार सर्वोपरि माना जाता था. प्रदेश में जयपुर रियासत के अलावा भी जोधपुर और उदयपुर बड़ी रियासत रही है. जहां भी इसी तरह का सत्ता संग्राम देखने को मिला था. इस संबंध में देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जोधपुर रियासत में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के दौरान उनके कोई पुत्र नहीं था. हालांकि रानी गर्भवती थी. इस बात का फायदा मुगल शासक औरंगजेब ने उठाया और जसवंत सिंह की रियासत को हड़प लिया. बाद में अजीत सिंह पैदा हुए और वीर दुर्गादास ने उन्हें राज दिलाया.

पढ़ेंः SPECIAL: पाली में बना प्रदेश का पहला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

इसी तरह का इतिहास उदयपुर यानी मेवाड़ रियासत से जुड़ा हुआ है. जहां महाराणा प्रताप उदय सिंह के बड़े पुत्र जरूर थे, लेकिन राज परिवार के किसी व्यक्ति की सोच उन्हें राजा बनाने के प्रति नहीं थी. उदय सिंह की छोटी रानी के बेटे जगमाल को राजा बनाना चाहते थे, लेकिन मेवाड़ की जनता और विश्वसनीय सरदार राणा प्रताप के साथ थे, उन्होंने राणा प्रताप को महाराणा बनाया.

कहा जा सकता है कि उस वक्त राजतंत्र में भी जनतंत्र चला और आज भी वही जनतंत्र अपना राजा यानी अपनी सरकार चुनती है. स्टेट पीरियड के बाद जब जनता ने सरकार चुनना शुरू किया, उस वक्त भी कुछ विरोधाभास वाली स्थिति आई. हीरालाल शास्त्री को प्रदेश का सीएम जरूर बनाया गया, लेकिन वो जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थे. यही वजह रही कि बाद में जयनारायण व्यास को सीएम बनाया गया. फिर मोहनलाल सुखाड़िया आए.

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इससे ये स्पष्ट है कि जो जनता के बीच लोकप्रिय होगा, वही राजा या मुख्यमंत्री बनेगा. ये राजस्थान प्रदेश के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इस जनतंत्र ने जिस सरकार को चुना वो आपसी मतभेद के चलते अस्थिर बनी हुई है और इसी पर फिलहाल प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है.

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