जयपुर. सावन मास की शुक्ल पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू धर्म में नागों की पूजा के इस पावन पर्व का बहुत महत्व है. इस दिन भगवान शिव के आभूषण नाग देवता की पूजा की जाती है. इस बार नागपंचमी का त्योहार 2 अगस्त मंगलवार के दिन मनाया जा रहा है. इस साल नाग पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 02 अगस्त को सुबह 5 बजकर 14 मिनट से लेकर 8 बजकर 24 मिनट तक ही रहेगा. यानी नागपंचमी पर पूजा के लिए आपको सिर्फ 2 घंटे 42 मिनट का ही समय मिल पाएगा.
नागपंचमी से जुड़ी कुछ कथाएं व मान्यताएं
- हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियां थी. मान्यता यह है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, परन्तु उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, जिनका ताल्लुक नाग वंश से था, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया.
- पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं - दिव्य और भौम. दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं. इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है. वे अगर कुपित हो जाएं तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं. इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है. परन्तु जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है.
- अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक - इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है. इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं. अनन्त और कुलिक- ब्राह्मण, वासुकि और शंखपाल- क्षत्रिय, तक्षक और महापदम- वैश्य व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है.
- पौराणिक कथानुसार जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे, उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया, क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी. नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था. जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया. मान्यता है कि यहीं से नागपंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई.
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नागपंचमी की पूजा-विधि- नागपंचमी के दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है. पूजा में हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करें. कच्चे दूध में घी और चीनी मिलाकर नाग देवता को अर्पित करें. इसके बाद नाग देवता की आरती उतारें और मन में नाग देवता का ध्यान करें. अंत में नागपंचमी की कथा अवश्य सुनें. यदि किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो ऐसे में नागपंचमी के दिन नाग देवता को दूध पिलाना चाहिए, क्योंकि शनि सर्प के कारक माने जाते हैं और भगवान शिव ने सांप अपने गले में धारण किया हुआ है. इसलिए नागपंचमी के दिन धातु से बने सर्प शिवलिंग पर अर्पित करने से शनि साढ़े साती का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.
अगर शनि की महादशा के कारण धन संबंधी या पारिवारिक दिक्कतें आ रही हैं, तो शिवलिंग पर लोहे से बने सर्प को शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए और ऐसा करने के बाद जल में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक भी करना चाहिए.