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बारिश के बाद घातक बीमारी खुरपका-मुंहपका से कैसे बचाएं पशुओं को, बचाव और उपचार

पशुओं में मुंहपका-खुरपका रोग विभक्त खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित रोग होता है जो कि गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सुअर जैसे पालतू पशुओं में ज्यादा तादाम अपना शिकार बनाना है.

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Published : Jul 29, 2019, 2:31 PM IST

Updated : Jul 29, 2019, 2:44 PM IST

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जयपुर. प्रदेश भर में बारिश का दौर जारी है. वहीं लंबे समय से आसमान की तरफ टकटकी लगाए धरती पुत्रों के चेहरों पर मुस्कान है, लेकिन अब बारिश के बाद पशुओं में फैलने वाली बिमारियों को लेकर भी किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें देखी जा सकती हैं. पशुओं में मुंहपका-खुरपका रोग विभक्त खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित रोग होता है जो कि गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सुअर जैसे पालतू पशुओं में ज्यादा तादाम अपना शिकार बनाना है. इसके लिए चिकित्सा विभाग की तरफ से टीकाकरण अभियान भी चलाया जाता है, फिर भी इस घातक बिमारी का शिकार हजारों पशु हर साल हो जाते हैं.

बारिश के बाद घातक बीमारी खुरपका-मुंहपका से कैसे बचाएं पशुओं को, बचाव और उपचार

मुंहपका और खुरपका के शुरूआती लक्षण:
इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है. बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं. समय पाकर यह छाले फैल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है. पशु सुस्त पड़ जाते हैं. कुछ भी नहीं खाता-पीता है. खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है. पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है पशु लंगड़ाने लगता है. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है. संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन जाता है. बिमारी से पशु स्वस्थ होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहते हैं.

ये भी पढ़ें: 65 साल की महिला 8 साल से ला रही है कांवड़...बोली- जब तक म्हारा छोरा वापस नहीं आता तब तक यूं ही चलेगा सिलसिला

छोटी आंख वाला कीड़ा इस तरह फैलाता है वायरस:
यह रोग पशुओं को एक बहुत ही छोटे आंख से न दिख पाने वाले कीड़े द्वारा होता है. जिसे विषाणु या फिर वायरस भी कहते हैं. मुंहपका-खुरपका रोग किसी भी उम्र के पशुओं और उनके बच्चों में हो सकता है. इस रोग का क्योंकि कोई इलाज नहीं होता है इसलिए रोग होने से पहले ही टीका लगवा लेना चाहिए.

इस बिमारी से निपटने के लिए करें ये उपाय:
पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार दवा दें. रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बनाकर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए.
प्रभावित पैरों को फिनाइलयुक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खियों को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए.
मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिली लीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए. इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं जल्दी पचने वाला भोजन देना चाहिए.

जरूरू बरतें ये सावधानियां:
प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर दूसरे स्वस्थ पशुओं से दूर रखें. पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ करके दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए. प्रभावित पशु के मुंह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संपर्क में आने वाली पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए. इस बीमारी से बचाव के लिए पशुओं को पोलीवेंट वैक्सीन के वर्ष में दो बार टीके अवश्य लगवाने चाहिए. बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए बीमार पशुओं के आवागमन पर रोक लगा देना चाहिए. पशुशाला को साफ-सुथरा रखें. इस बीमारी से मरने वाले पशुओं के खुला नहीं छोड़ना चाहिए बल्की मिट्टी में गाड़ देना चाहिए.

जयपुर. प्रदेश भर में बारिश का दौर जारी है. वहीं लंबे समय से आसमान की तरफ टकटकी लगाए धरती पुत्रों के चेहरों पर मुस्कान है, लेकिन अब बारिश के बाद पशुओं में फैलने वाली बिमारियों को लेकर भी किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें देखी जा सकती हैं. पशुओं में मुंहपका-खुरपका रोग विभक्त खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित रोग होता है जो कि गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सुअर जैसे पालतू पशुओं में ज्यादा तादाम अपना शिकार बनाना है. इसके लिए चिकित्सा विभाग की तरफ से टीकाकरण अभियान भी चलाया जाता है, फिर भी इस घातक बिमारी का शिकार हजारों पशु हर साल हो जाते हैं.

बारिश के बाद घातक बीमारी खुरपका-मुंहपका से कैसे बचाएं पशुओं को, बचाव और उपचार

मुंहपका और खुरपका के शुरूआती लक्षण:
इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है. बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं. समय पाकर यह छाले फैल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है. पशु सुस्त पड़ जाते हैं. कुछ भी नहीं खाता-पीता है. खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है. पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है पशु लंगड़ाने लगता है. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है. संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन जाता है. बिमारी से पशु स्वस्थ होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहते हैं.

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छोटी आंख वाला कीड़ा इस तरह फैलाता है वायरस:
यह रोग पशुओं को एक बहुत ही छोटे आंख से न दिख पाने वाले कीड़े द्वारा होता है. जिसे विषाणु या फिर वायरस भी कहते हैं. मुंहपका-खुरपका रोग किसी भी उम्र के पशुओं और उनके बच्चों में हो सकता है. इस रोग का क्योंकि कोई इलाज नहीं होता है इसलिए रोग होने से पहले ही टीका लगवा लेना चाहिए.

इस बिमारी से निपटने के लिए करें ये उपाय:
पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार दवा दें. रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बनाकर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए.
प्रभावित पैरों को फिनाइलयुक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खियों को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए.
मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिली लीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए. इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं जल्दी पचने वाला भोजन देना चाहिए.

जरूरू बरतें ये सावधानियां:
प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर दूसरे स्वस्थ पशुओं से दूर रखें. पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ करके दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए. प्रभावित पशु के मुंह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संपर्क में आने वाली पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए. इस बीमारी से बचाव के लिए पशुओं को पोलीवेंट वैक्सीन के वर्ष में दो बार टीके अवश्य लगवाने चाहिए. बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए बीमार पशुओं के आवागमन पर रोक लगा देना चाहिए. पशुशाला को साफ-सुथरा रखें. इस बीमारी से मरने वाले पशुओं के खुला नहीं छोड़ना चाहिए बल्की मिट्टी में गाड़ देना चाहिए.

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Last Updated : Jul 29, 2019, 2:44 PM IST
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