जयपुर. संतान के जन्म के समय अस्पताल में लोगों की छोटी सी भूल उन्हें नगर निगम में चक्कर काटने पर मजबूर कर रही है. हर दिन 50 से 60 लोग नगर निगम में जन्म प्रमाण पत्र में लिखें माता-पिता के नाम और घर का पता में संशोधन करवाने पहुंचते हैं.
लेकिन, बच्चों के स्कूल में प्रवेश या अन्य दस्तावेज बनाते समय ये छोटी सी भूल भारी पड़ती है. इसके बाद संशोधन के लिए नगर निगम में चक्कर काटने पड़ते हैं. ईटीवी भारत जब नगर निगम के सहायता केंद्र पहुंचा तो, यहां ऐसे कई लोग मौजूद थे. इनमें भी अधिकतर जनाना और महिला अस्पताल में जन्मे बच्चों के मामले थे.
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हालांकि ये चक्कर निगम कर्मचारियों की गलती के चलते नहीं, बल्कि जन्म प्रमाण पत्र में नाम संशोधन के दौरान अपनाए जाने वाली प्रक्रिया और कागजी कार्रवाई के चलते लगाने पड़ते हैं. इस संबंध में जन्म मृत्यु पंजीयन रजिस्ट्रार प्रदीप पारीक ने बताया कि अस्पताल से जो सूचना आती है, उसी के अनुसार प्रमाण पत्र बनाए जाते हैं.
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जानकारी के अनुसार नगर निगम में जन्म प्रमाण पत्र में संशोधन के लिए हर महीने करीब ढाई हजार आवेदन आ रहे हैं. इसके लिए लोगों को आवेदन में बच्चे के जन्म के समय का पहचान पत्र या डिस्चार्ज टिकट लाना जरूरी होता है. इसके अलावा संशोधन के लिए शपथ पत्र देना होता है. ऐसे में इस प्रक्रिया में करीब 2 से 3 दिन लग जाते हैं. खास बात ये है कि ये संशोधन केवल एक बार ही कराया जा सकता है. ऐसे में अस्पताल में भर्ती लोगों की छोटी सी लापरवाही कई बार भारी पड़ती है.