जयपुर. कभी डायन तो कभी नाता प्रथा, कभी आटा साटा तो कभी कुकड़ी प्रथा (Kukari ki Rasam ). राजस्थान की इन कुप्रथाओं से आज भी महिलाओं (women's) को ही अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है. पीड़ित होने के बावजूद भी महिला को ही दोषी करार दिया जाता है और कथित रूप से जातीय पंचायत( Caste Panchayat Of Rajasthan ) के पंच पटेल महिलाओं को दंडित करते हैं. भीलवाड़ा जिले में भी एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है. जिसमें जिस पीड़िता के साथ में दुष्कर्म हुआ, उसे ही कुकड़ी प्रथा ( virginity tests in Kukari Pratha ) के नाम पर दोषी मानकर जातीय पंचायत दंड देने की तैयारी में है.
भीलवाड़ा के सांसी समाज की एक यवती के साथ उसी के पड़ोस में रहने वाले एक युवक ने दुष्कर्म किया. उसे धमकाया कि वो घटना के बारे में किसी को बताएगी तो उसके भाई बहन को चाकू से मार दिया जाएगा. पीड़ित ने दबाव में आकर किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन घटना के कुछ दिन बाद उस युवती की हुई शादी के बाद समाज में प्रचलित कुकड़ी कुप्रथा के तहत युवती को दोषी पाया गया. जब पीड़ित परिजनों ने पूछा तब उसने अपने साथ हुई घटना के बारे में बताया. परिजनों ने आरोपी के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया है.
पीड़ित को ही जातीय पंचायत दोषी मान रही हैः बड़ी बात यह है कि जिस पीड़िता के साथ दुष्कर्म (Panchayat on kukari Pratha) हुआ, उसे ही समाज के लोग दोषी मानकर दंड सुनाने की तैयारी कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार सांसी समाज में कुकड़ी प्रथा के नाम पर शुक्रवार (27 मई 2022) को पीड़ित के ससुराल में पंच पटेलों की जातीय पंचायत होगी. उस जातीय पंचायत में समाज के पंच पटेल पीड़ित के परिवार पर आर्थिक दंड तय करेंगे.
कुकड़ी प्रथा क्या है ?: दरअसल राजस्थान में सांसी समाज के कुकड़ी प्रथा का चलन लंबे समय से चला आ रहा है .शादी के बाद पति और पत्नी में एक रस्म होती है जिसे कुकड़ी कहा जाता है . यह ऐसी कुप्रथा है जिसमें महिला को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है. महिला की शादी होने के साथ ही उसे अपनी पवित्रता यानी वर्जिनिटी का प्रमाण देना पड़ता है. सुहागरात के दिन पति अपनी पत्नी के पास एक सफेद चादर लेकर आता है और जब शारीरिक संबंध बनाता है तो उस चादर पर खून के निशान को अगले दिन समाज के लोगों को दिखाया जाता है. यदि खून के निशान आ गए तो उसकी पत्नी सही मानी जाती है.
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यानी उसकी पत्नी वर्जिन है और यदि उस चादर पर खून के निशान नहीं आए तो उसकी पत्नी का पहले किसी के साथ सहसंबंध रहा है. ऐसा करने के लिए उस लड़की को मजबूर किया जाता है. लड़की के वर्जिन नहीं होती है तो जातीय पंचायत के पंच पटेल (Panch Patel Of Caste Panchayat) की ओर से परिजनों पर अत्यधिक दबाव डालकर ज्यादा दहेज मांगा जाता. कई बार समाज से बहिष्कृत किया जाता है और समाज मे शामिल करने के लिए परिवार पर आर्थिक दंड लगाया जाता है.
परिजनों की बिक जाती है पुरखों की जमीनः सांसी समाज के इस कुकड़ी प्रथा के चलते कई बार गरीब परिवारों को बड़े सामाजिक और आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता है. किसी भी लड़की का कुकड़ी प्रथा में दोषी पाए जाने पर पहले तो जातीय पंचायत उस लड़की के परिवार पर आर्थिक जुर्माना लगाती है . इसमें कई बार यह रकम 5 से 10 लाख रुपए तक चली जाती है. अगर जुर्माने की राशि परिवार नही देता है तो उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. ऐसे में पीड़ित परिवार अपनी पुरखों की जमीन को बेच कर जातीय पंचायत को आर्थिक दंड जमा कराता है. इतना ही नहीं फिर उस लड़की को ससुराल वाले भी दहेज की मनचाही रकम मिलने के बाद ही ले जाने को तैयार होते हैं.
कानूनी रूप से अपराधः दलितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सुमन देवटिया कहती हैं कि किसी भी समाज में इस तरह की प्रथा का होना राजस्थान के लिए बड़ा कलंक है. किसी भी जातीय पंचायत को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी महिला का चरित्र किसी प्रथा के आधार पर तय करे. यह उस महिला के मानव अधिकारों का हनन है. हमारे कानून में किसी भी पंचायत या जातीय पंचों को मान्यता नहीं है और ना ही इस तरह की अंधविश्वास वाली प्रथा को कानूनी रूप से सही माना गया है. सुमन देवटिया कहती हैं कि बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी हमारे समाज में इस तरह की कुप्रथा चलन में है और सरकार इन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर पा रही है.