जयपुर. राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के नेता किरोड़ी लाल मीणा ने बीते मंगलवार को नांगल प्यारीवास से पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यानी ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट को लेकर (Eastern Rajasthan Canal Project) आंदोलन का आगाज किया था. किरोड़ी लाल मीणा इस ERCP प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर जयपुर के लिए पैदल मार्च निकालते हुए बस्सी तक पहुंचे, जहां मंत्री विश्वेन्द्र सिंह के आश्वासन के बाद उन्होंने अपनी जल क्रांति यात्रा का समापन कर दिया.
किरोड़ी लाल मीणा का कहना है कि पूर्वी राजस्थान और आसपास के इलाके की 75 विधानसभाओं को इस जल परियोजना का फायदा मिलेगा और चंबल का पानी इन विधानसभाओं के लोगों की समस्याओं का समाधान कर देगा. जाहिर है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए (Kirodi Lal on ERCP) पेयजल और सिंचाई की समस्या के समाधान की राह को भी तलाश किया जा रहा है. एक ओर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस राज्य और केंद्र सरकार के बीच इस परियोजना को लेकर कई मौके पर बयानबाजी का दौर देखने को मिला है. ऐसे में भाजपा नेता के तौर पर किरोड़ी लाल मीणा इस परियोजना को लेकर अपनी जनक्रांति यात्रा में अकेले पड़ते हुए भी दिखे. आखिर इसके पीछे क्या वजह हो सकती है ? सियासत के जानकार इसे किरोड़ी लाल मीणा की हाशिये पर जाती राजनीति को एक बड़ी वजह मानते हैं.
बीते चुनाव में किरोड़ी कैंप को मिली थी हार : राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा की पूर्वी राजस्थान में दिग्गज मीणा नेता के रूप में पहचान रही है. एक दशक पहले वसुंधरा राजे से नाराज होकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी यानी NPP के बैनर तले किरोड़ी लाल मीणा ने राजस्थान में अपनी अलग से राजनीति की शुरुआत की थी. इस दौरान अपनी पत्नी गोलमा देवी के साथ उन्होंने सियासी सफर में चार विधायकों को विधानसभा तक पहुंचा दिया था. लेकिन 2018 के बीते चुनाव में टीम किरोड़ी मीणा को हार का सामना करना पड़ा और उनकी पत्नी और भतीजे समेत उनके समर्थक अलग-अलग सीटों से चुनाव हार गए. सियासी जानकारों के मुताबिक राजस्थान में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता किरोड़ी लाल मीणा ने 17 टिकट अपने चहेतों को दिलवाए थे, इन सभी को हार का सामना करना पड़ा था. इनमें उनकी पत्नी गोलमा देवी और भतीजे राजेंद्र मीणा भी शामिल थे.
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राजेंद्र मीणा को भाजपा नेता ओम प्रकाश हुड़ला का टिकट काटकर मौका दिया गया था. हुड़ला से किरोड़ी की पुरानी सियासी अदावत रही है, लेकिन हुड़ला जीतने में कामयाब रहे. गोलमा को सपोटरा से कांग्रेस के रमेश मीणा ने हराया. किरोड़ी ने भरतपुर, धौलपुर, करौली और दौसा जिले की करीब 17 सीटों पर अपनी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट दिलवाए थे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. जाहिर है कि किरोड़ी लाल मीणा हमेशा दावा करते हैं कि वे प्रदेश में आदिवासी समुदाय की नुमाइंदगी करते हैं. वे जिस एसटी वर्ग की बात करते हैं, उसकी कुल 13 फीसदी आबादी में से करीब साढ़े 6 प्रतिशत मीणा समाज से आते हैं. ऐसे में 2018 में बीजेपी में फिर से आने के बाद किरोड़ी लाल मीणा को राज्यसभा सांसद के तौर पर दिल्ली भेजा था. उनके भाजपा में शामिल होने से पार्टी राजस्थान में एसटी वर्ग के प्रभाव वाली करीब 45 सीटों पर अपना फायदा देख रही थी.
वसुंधरा राजे से नाराज होकर छोड़ी थी भाजपा : साल 2006 में राजस्थान में गुर्जर पहली बार आरक्षण की मांग को लेकर करौली जिले के हिंडौन शहर में सड़कों पर उतरे थे. तब गुर्जर ख़ुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग कर रहे थे. इस मांग के विरोध में पूर्वी राजस्थान में मीणाओं का आंदोलन उभरा, जिसका नेतृत्व किरोड़ी लाल मीणा ने किया. तत्कालीन राजस्थान सरकार में तब खाद्य मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने तब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात कर जनजातीय आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं करने की मांग की थी. तब राजे को मीणा का अंदाज रास नहीं आया. थोड़े वक्त बाद साल 2007 में गुर्जर आंदोलन हिंसक हुआ और पूरे राजस्थान में फैल गया. उसी दौरान किरोड़ी लाल मीणा का बंगला गुर्जर आंदोलन के विरोध का केंद्र बन गया.
गुर्जर समाज की आरक्षण की मांग के विरोध में लालसोट में गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. सरकार गुर्जर समाज से सुलह में जुटी थी, उसी दौरान किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और मीणा समाज के मसीहा के तौर पर उभर गए. किरोड़ी लाल मीणा के गुर्जर आंदोलन के दौरान ही वसुंधरा राजे से सियासी संबंध लगातार बिगड़ते गए और 2008 में किरोड़ी को भाजपा से निकाल दिया गया. इस लहर के बीच मीणा वोटों के समर्थन से किरोड़ी लाल ने साल 2008 के विधानसभा चुनाव में करौली जfले की टोडाभीम सीट से निर्दलीय चुनाव जीता और पत्नी गोलमा देवी को भी दौसा जिले की महुआ सीट से चुनाव जितवाकर कांग्रेस सरकार में मंत्री बनवा दिया. लेकिन दिल से भाजपाई किरोड़ी लाल मीणा कांग्रेस के साथ भी मन नहीं बिठा पाए. साल 2009 के आम चुनावों में दौसा सीट से किरोड़ी लाल मीणा निर्दलीय सांसद का चुनाव लड़े और जीत गए.
इसके बाद एक बार फिर किरोड़ी लाल मीणा को प्रदेश की राजनीति का मोह विधानसभा चुनाव के रण में ले आया, जहां वे साल 2013 में पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए. सियासत की मुख्य धारा का अंग रहे किरोड़ी लाल मीणा का साल 2008 से 2013 के बीच का सफर कुछ यूं था कि मीणा की राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई. इसके बाद मीणा ने 2013 में 200 में से 150 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन सिर्फ चार सीटें ही जीत पाए. साल 2018 में बीजेपी और संघ से जुड़े कुछ नेताओं के कारण वे फिर से बीजेपी के करीब आए, लेकिन चुनावों में उनका आधार नजर नहीं आया. 17 सीटों की हार के आरोप पर किरोड़ी लाल मीणा ने तब जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने भरतपुर और धौलपुर में सीटें हारने के पीछे नाराजगी को वजह बताया. करौली में पैराशूट उम्मीदवारों को पराजय की वजह बताया और गोलमा देवी को सपोटरा से लड़ाने के पीछे की रणनीति से खुद को बाहर रखा. इन सबके बीच नतीजों के आधार पर किरोड़ी लाल मीणा की सियासी जमीन का आंकलन भी हुआ, जिसमें उनकी जमीन सरकती हुई नजर आई.
सतीश पूनिया के खिलाफ, फिर समर्थन में किया प्रचार : भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया आमेर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. इसके पहले साल 2013 में भी सतीश पूनिया ने आमेर से चुनाव लड़ा था. तब किरोड़ी लाल मीणा के नेतृत्व में नवीन पिलानिया ने एनपीपी से यहां जीत हासिल की थी. 1 दिसंबर 2018 को एक जनसभा में सतीश पूनिया के समर्थन में प्रचार करते हुए किरोड़ी लाल मीणा ने कहा था कि पांच साल पहले मैंने एक पाप किया था. मैंने बीजेपी से अलग होकर पार्टी बनाई थी और पूनिया के खिलाफ प्रचार किया था, जिसे धोने के लिए मैं आया हूं. गौरतलब है कि 2018 के चुनाव से पहले बीजेपी ने किरोड़ी लाल मीणा को राज्यसभा सांसद बनाकर दिल्ली भेज दिया था.
हर मुद्दे को लेकर चर्चा में मीणा : किरोड़ी लाल मीणा को आमतौर पर कई मसलों पर धरना प्रदर्शन करते हुए आदिवासी क्षेत्रों के बीच देखा जा सकता है. इस सरकार में ERCP से पहले मीणा REET पेपर लीक को लेकर अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहे थे. किरोड़ी लाल मीणा ने कानून व्यवस्था और सांप्रदायिक हिंसा जैसे मामलों को लेकर भी जन आंदोलन के जरिए भीड़ जुटाकर खुद को मजबूत नेता के रूप में कायम रखने की कोशिश की है. पर माना यह जाता है कि 10 साल के दौरान बीजेपी से मीणा की दूरी ने समाज में वैकल्पिक नेतृत्व को मौका दे दिया और किरोड़ी लाल मीणा दौसा में नरेन्द्र मोदी की सभा करवाने के बावजूद अपनी पत्नी और भतीजे को जीत दिलाने में नाकामयाब रहे.
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इस दौरान 2013 के कार्यकाल के बीच वसुंधरा राजे सरकार में मीणा समाज से कोई मंत्री नहीं बना. ओमप्रकाश हुड़ला भी संसदीय सचिव बनकर रह गये और समाज बीजेपी से खफा हो गया. इसके बाद किरोड़ी लाल की बीजेपी में वापसी भी मीणा समाज को बीजेपी के नजदीक नहीं ला सकी. यह वजह रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गोलमा देवी की जगह दौसा से जसकौर मीणा को टिकट दिया. अब 2023 में फिर विधानसभा का मैदान है और इस बार किरोड़ी के सामने ERCP के जरिए खिसकती सियासी जमीन को मजबूत करने का मौका है, जिसमें वह जातिगत नेता की छवि से ऊपर खुद को पूर्वी राजस्थान में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मनीष गोधा किरोड़ी लाल मीणा की वर्तमान राजनीति को उनके वर्चस्व से जोड़कर देखते हैं. वे कहते हैं कि बीते कुछ चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा का जो प्रदर्शन रहा है, उसे बेहतर करने के नजरिए से (Rajasthan Mission 2023) किरोड़ी लाल मीणा ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के मसले पर आंदोलन को छेड़ा. वे मान रहे हैं कि उम्रदराज होने के साथ ही किरोड़ी लाल मीणा के लिए अब राजनीति के ग्राउंड पर चुनौतियां ज्यादा हैं. लिहाजा उन्हें अधिक सक्रिय होकर काम करने की जरूरत आप महसूस हो रही है.