जयपुर. जन्माष्टमी का मौका है और भगवान कृष्ण की आराधना के लिए सभी भक्त तैयारी कर रहे है. ऐसे में जन्माष्टमी की पूजा में भगवान का श्रृंगार भी अहम हो जाता है. माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जितना श्रृंगार कर पूजा की जाए तो उतने ही वह प्रसन्न होते हैं और सभी की मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर अब कुछ ही घंटे बचे है. ऐसे में बाजार भी सज चुके है और भक्तों में इसका उत्साह भी देखा जा रहा है. हालांकि, कोरोना का खौफ लोगों के मन में जरूर है, लेकिन फिर भी लोग श्रीकृष्ण से जुड़े साज-सामान की खरीददारी कर रहे हैं. क्योंकि, कोविड-19 के चलते बड़े मंदिर के कपाट बंद है. इसके चलते भक्त अपने घर पर ही श्रीकृष्ण की आराधना करेंगे, जिसको लेकर श्रद्धालु अपने आराध्य की उपासना के लिए अंगवस्त्र से लेकर बांसुरी और मोरपंख तक की जमकर खरीदारी कर रहे हैं.
माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जितना श्रृंगार कर पूजा की जाए उतना ही फलदाई होता है. भगवान कृष्ण बांसुरी और मोर पंख के बिना अधूरे लगते हैं. इसी को देखते हुए छोटीकाशी जयपुर के बाजारों में इन दिनों बांसुरी और मोर पंख की बिक्री खूब देखने को मिल रही है. वहीं, दुकानदारों का कहना है कि जन्माष्टमी के मौके पर बांसुरी और मोर पंखों की डिमांड बढ़ जाती है. साथ ही कृष्ण भक्तों का कहना है कि जन्माष्टमी के दिन मोर पंख और बांसुरी की पूजा करने से घर में सुख शांति मिलती है.
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मोर पंख और बांसुरी का महत्व
भगवान श्री कृष्ण का नाम आते ही हमारे मन में उनकी बाल्य और युवावस्था की सुंदर छवि आ जाती है. श्री कृष्ण के मस्तक पर मोर पंख और बांसुरी हमेशा ही भक्तों को आकर्षित करते हैं. बताया जाता है कि एक दिन भगवान कृष्ण ने मोर के गिरे हुए पंख को राधा रानी के प्रेम की निशानी के तौर पर उठाकर अपने मस्तक में लगा लिया. तभी से मोर पंख राधा रानी और श्री कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है.
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ऐसी मानना है कि द्वापर युग के समय भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया. तब सभी देवी देवता श्री कृष्ण से मिलने के लिए भेष बदलकर धरती पर आने लगे. भगवान शिव को भी श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने श्रीकृष्ण को उपहार देने के सुरीली बांसुरी को चुना. तभी से श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखने लगे और बांसुरी की धुन पर गोपियों से रास रचाते थे.