जयपुर. दीपावली के त्यौहार को लेकर पिंकसिटी के बाजार सजे चुके है. रंगबिरंगी रोशनी से सजी गुलाबीनगरी का हर कोई दीदार करता नजर आ रहा है. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसके हुनर से दिवाली की रोशनी तो दुगुनी हो जाती है. लेकिन इस बार मंदी की मार के चलते दीपक की रोशनी बुझ सी गई है. तो वहीं चाइना मेड दीपकों की भरमार ने दिन रात महेनत कर हाथ से बनाएं गए रंगीन दिए कि चमक फीकी कर दी है.
आर्टिफिशियल दिए से कर रहे घर को रोशन
जब दिवाली पर कुम्हार चक्के पर मिट्टी के बर्तन पर रंगरोगन कर बनाए गए आकर्षक दीपकों से पूजा पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और संपूर्ण समर्पण के साथ किया करते थे, और दिवाली पर मिट्टी के दीपकों से घर को रोशन करते थे. लेकिन अब लोग चीनी मिट्टी और चाईजीन आर्टिफिशियल दियों का प्रयोग कर रहे हैं. यही वजह है कि जयपुर में दीपक बनाने का काम कम हो गया है.
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रोजी-रोटी पर संकट
न्यू सांगानेर रोड के फुटपाथ पर थड़ी लगाकर कई पीढ़ियों से दीए बनाने का कार्य कर रहे कुम्हार हरिनारायण प्रजापत ने बताया, कि इस बार मंदी के असर के चलते न केवल कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार में असर पड़ रहा है. बल्कि उनकी रोजी-रोटी पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहीं दूसरी ओर लोग मिट्टी के दिए की जगह आर्टिफिशियल दीए और बिजली की झालरों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसकी वजह से कुम्हारों की रोजी-रोटी पर भी संकट बन पड़ा है.
दिवाली का रहता सालभर इंतजार
दिवाली पर जहां मिट्टी के हुनरबाजों को सालभर इंतजार रहता था और अपने घर की गाड़ी बेहतर तरीके से खींचने के लिए रात दिन चक्के पर मिट्टी के दिए और बर्तनों का आकार देने में बिताता था. पहले दीपावली में लोग घरों में घी के दिए जलाते थे, लेकिन धीरे-धीरे समय बदलने के साथ ही यह समय जाने वाला है. इस कला को पीढ़ियों से जिंदा कर आज भी चक्कर पर मिट्टी के दिए और बर्तनों को आकर दे देने वाले कुम्हार परिवारों के अनुसार ये कला उन्हें अपनी विरासत में मिली है, लेकिन अब वह इसे अपने परिवार को आगे नहीं देना चाहते हैं. जिसकी वजह है आम लोगों की मिट्टी दीपकों से बेरुखी और चाइनीज झालरों की ओर रुख.