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दिवाली स्पेशल : मंदी की मार ने बुझाई दीयों की रोशनी, बाजारों में चाइना मेड दीपकों की भरमार - मंदी की मार

दिवाली पर सजावटी लाइटों की चकाचौंध और चाईजीन मेड आर्टिफिशियल दिए से लोग हर बार दीवाली पर घर को रोशन कर रहे हैं. जिस कारण जयपुर के कुम्हारों की दिवाली हर बार फीकी रहती है, लेकिन इस बार मंदी ने भी उनकी दिवाली को काला कर दिया है.

जयपुर दिवाली स्पेशल खबर,Jaipur Diwali special news
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Published : Oct 22, 2019, 10:34 PM IST

जयपुर. दीपावली के त्यौहार को लेकर पिंकसिटी के बाजार सजे चुके है. रंगबिरंगी रोशनी से सजी गुलाबीनगरी का हर कोई दीदार करता नजर आ रहा है. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसके हुनर से दिवाली की रोशनी तो दुगुनी हो जाती है. लेकिन इस बार मंदी की मार के चलते दीपक की रोशनी बुझ सी गई है. तो वहीं चाइना मेड दीपकों की भरमार ने दिन रात महेनत कर हाथ से बनाएं गए रंगीन दिए कि चमक फीकी कर दी है.

जयपुर के कुम्हारों की दिवाली इस बार भी फीकी

आर्टिफिशियल दिए से कर रहे घर को रोशन
जब दिवाली पर कुम्हार चक्के पर मिट्टी के बर्तन पर रंगरोगन कर बनाए गए आकर्षक दीपकों से पूजा पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और संपूर्ण समर्पण के साथ किया करते थे, और दिवाली पर मिट्टी के दीपकों से घर को रोशन करते थे. लेकिन अब लोग चीनी मिट्टी और चाईजीन आर्टिफिशियल दियों का प्रयोग कर रहे हैं. यही वजह है कि जयपुर में दीपक बनाने का काम कम हो गया है.

पढ़ें- कोटा पहुंची 'हाउसफुल 4' टीम, एक्टर्स की झलक नहीं मिलने पर निराश हुए फैंस

रोजी-रोटी पर संकट
न्यू सांगानेर रोड के फुटपाथ पर थड़ी लगाकर कई पीढ़ियों से दीए बनाने का कार्य कर रहे कुम्हार हरिनारायण प्रजापत ने बताया, कि इस बार मंदी के असर के चलते न केवल कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार में असर पड़ रहा है. बल्कि उनकी रोजी-रोटी पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहीं दूसरी ओर लोग मिट्टी के दिए की जगह आर्टिफिशियल दीए और बिजली की झालरों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसकी वजह से कुम्हारों की रोजी-रोटी पर भी संकट बन पड़ा है.

पढ़ें- प्रमोशन के लिए जल संसाधन के कनिष्ठ अभियंताओं का धरना, कहा- यदि 'डीपीसी' नहीं की गई तो यही मनाएंगे दीवाली

दिवाली का रहता सालभर इंतजार
दिवाली पर जहां मिट्टी के हुनरबाजों को सालभर इंतजार रहता था और अपने घर की गाड़ी बेहतर तरीके से खींचने के लिए रात दिन चक्के पर मिट्टी के दिए और बर्तनों का आकार देने में बिताता था. पहले दीपावली में लोग घरों में घी के दिए जलाते थे, लेकिन धीरे-धीरे समय बदलने के साथ ही यह समय जाने वाला है. इस कला को पीढ़ियों से जिंदा कर आज भी चक्कर पर मिट्टी के दिए और बर्तनों को आकर दे देने वाले कुम्हार परिवारों के अनुसार ये कला उन्हें अपनी विरासत में मिली है, लेकिन अब वह इसे अपने परिवार को आगे नहीं देना चाहते हैं. जिसकी वजह है आम लोगों की मिट्टी दीपकों से बेरुखी और चाइनीज झालरों की ओर रुख.

जयपुर. दीपावली के त्यौहार को लेकर पिंकसिटी के बाजार सजे चुके है. रंगबिरंगी रोशनी से सजी गुलाबीनगरी का हर कोई दीदार करता नजर आ रहा है. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसके हुनर से दिवाली की रोशनी तो दुगुनी हो जाती है. लेकिन इस बार मंदी की मार के चलते दीपक की रोशनी बुझ सी गई है. तो वहीं चाइना मेड दीपकों की भरमार ने दिन रात महेनत कर हाथ से बनाएं गए रंगीन दिए कि चमक फीकी कर दी है.

जयपुर के कुम्हारों की दिवाली इस बार भी फीकी

आर्टिफिशियल दिए से कर रहे घर को रोशन
जब दिवाली पर कुम्हार चक्के पर मिट्टी के बर्तन पर रंगरोगन कर बनाए गए आकर्षक दीपकों से पूजा पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और संपूर्ण समर्पण के साथ किया करते थे, और दिवाली पर मिट्टी के दीपकों से घर को रोशन करते थे. लेकिन अब लोग चीनी मिट्टी और चाईजीन आर्टिफिशियल दियों का प्रयोग कर रहे हैं. यही वजह है कि जयपुर में दीपक बनाने का काम कम हो गया है.

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रोजी-रोटी पर संकट
न्यू सांगानेर रोड के फुटपाथ पर थड़ी लगाकर कई पीढ़ियों से दीए बनाने का कार्य कर रहे कुम्हार हरिनारायण प्रजापत ने बताया, कि इस बार मंदी के असर के चलते न केवल कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार में असर पड़ रहा है. बल्कि उनकी रोजी-रोटी पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहीं दूसरी ओर लोग मिट्टी के दिए की जगह आर्टिफिशियल दीए और बिजली की झालरों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसकी वजह से कुम्हारों की रोजी-रोटी पर भी संकट बन पड़ा है.

पढ़ें- प्रमोशन के लिए जल संसाधन के कनिष्ठ अभियंताओं का धरना, कहा- यदि 'डीपीसी' नहीं की गई तो यही मनाएंगे दीवाली

दिवाली का रहता सालभर इंतजार
दिवाली पर जहां मिट्टी के हुनरबाजों को सालभर इंतजार रहता था और अपने घर की गाड़ी बेहतर तरीके से खींचने के लिए रात दिन चक्के पर मिट्टी के दिए और बर्तनों का आकार देने में बिताता था. पहले दीपावली में लोग घरों में घी के दिए जलाते थे, लेकिन धीरे-धीरे समय बदलने के साथ ही यह समय जाने वाला है. इस कला को पीढ़ियों से जिंदा कर आज भी चक्कर पर मिट्टी के दिए और बर्तनों को आकर दे देने वाले कुम्हार परिवारों के अनुसार ये कला उन्हें अपनी विरासत में मिली है, लेकिन अब वह इसे अपने परिवार को आगे नहीं देना चाहते हैं. जिसकी वजह है आम लोगों की मिट्टी दीपकों से बेरुखी और चाइनीज झालरों की ओर रुख.

Intro:एंकर :
दीपावली के त्यौहार को लेकर पिंकसिटी के बाजार सजे चुके है. रंगबिरंगी रोशनी से सजी गुलाबीनगरी का हर कोई दीदार करता नजर आ रहा है. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसके हुनर से दिवाली की रोशनी तो दुगुनी हो जाती है. लेकिन इस बार मंदी की मार के चलते उसके परिवार में जलने वाले दीपक की रोशनी बुझ सी गई है. तो वही चाइना मेड दीपकों की भरमार ने उनके दिन रात महेनत कर हाथ से बनाएं गए रंगीन दिए कि चमक फीकी कर दी है.

वीओ 1- जब दिवाली पर कुम्हार चक्के पर मिट्टी के बर्तन पर रंगरोगन कर बनाए गए आकर्षक दीपको से पूजा पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और संपूर्ण समर्पण के साथ किया करते थे. लेकिन आज दिवाली पर सजावटी लाइटों की चकाचौंध और मिट्टी के दीपक में तेल डालकर घर को रोशन करने के बजाय अब लोग मोम, चीनी मिट्टी, चायना मेड के जगमग आर्टिफिशियल दिए से दीपावली अपने घर को रोशन करते नजर आते हैं. यही वजह है कि जयपुर में दीपक बनाने का काम कम हो गया है और दीपक बना भी रहे वो भगवान से दुआ कर रहे हैं, कि उनके दिए बिक जाए तो घर का चूल्हा जल सके.

बाइट 1- पुष्पा देवी, दीपक विक्रता

वीओ 2- जयपुर के न्यू सांगानेर रोड़ पर फुटपाथ पर थड़ी लगाकर कई पीढ़ियों से दीए बनाने का कार्य करने वाले हरिनारायण प्रजापत ने बताया, कि इस बार मंदी के असर के चलते न केवल कुम्हारों के पुश्तैनी कारोबार में असर पड़ रहा है. बल्कि उनकी रोजी-रोटी पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है. जिस दीपक को कुम्हार चक्के पर अपने हाथों से मिट्टी का आकार देता था वह पूरे साल की एक मुश्त कमाई होती थी. लेकिन उसकी जगह चाइना, चीनी मिट्टी और बिजली की झालरों ने ले ली है. जिसकी वजह से उनकी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गए हैं. कुम्हारों की अपील है, की दिवाली पर मिट्टी के दिए जरूर जलाएं जिससे उनके घर के दीपक की रोशनी भी झगमग हो सके.

बाइट 2- हरिनारायण, कुम्हार

वीओ 3- दिवाली महापर्व पर जहां मिट्टी के हुनरबाजों को सालभर इंतज़ार रहता था और अपने घर की गाड़ी बेहतर तरीके से खींचने के लिए रात दिन चक्के पर मिट्टी के दिए और बर्तनों का आकार देने में बिताता था. पहले दीपावली में लोग घरों में घी के दिए जलाते थे धीरे-धीरे समय बदलने के साथ अब यह समय भी जाने वाला है. इस कला को पीढ़ियों से जिंदा कर आज भी चक्कर पर मिट्टी के दिए और बर्तनों को आकर दे देने वाले कुम्हार परिवारों के अनुसार ये कला उन्हें अपनी विरासत मिली है. लेकिन अब वह इसे अपने परिवार को आगे नहीं देना चाहते हैं. जिसकी वजह है आमलोगों की मिट्टी दीपको से बेरुखी और चाइनीज झालरों की तरफ रुख.

बाइट 3- हरिनारायण, कुम्हार

फाइनल- ईटीवी भारत सभी दर्शकों से अपील करता है कि इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीपक जरूर जलाएं ताकि कुम्हार समुदाय के चूल्हे की रोशनी उनके भूखे पेट तक पहुंच जाएं. दिवाली पर आपका द्वारा जलाया गया एक मिट्टी का दीपक कुम्हार को होंशला भी देगा और हर दिवाली यूं ही सबके घर में दिवाली की रोशनी नजर आएगा......

विशाल शर्मा,ईटीवी भारत,जयपुर


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