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Jaipur Special: आपके खरीदे हुए सोने-चांदी के आभूषण कितने शुद्ध हैं ? इन आसान तरीकों से करें पहचान - जयपुर न्यूज

सोने और चांदी के आभूषण खरीदते वक्त लोगों के मन एक सवाल जरूर आता है कि क्या खरीदा हुआ आभूषण शुद्ध है? आखिर इसकी परख कैसे करें?

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आप आसान तरीकों से आभूषण की शुद्धता को परख सकते हैं.
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Published : Nov 29, 2020, 2:49 PM IST

जयपुर. चाहे शादी विवाह हो या फिर दिवाली धनतेरस जैसे त्योहार, हर सीजन में सोने चांदी की मांग रहती है. यहां तक कि निवेश के लिए भी सोने को एक अच्छा ऑप्शन माना गया है. लेकिन, सोने चांदी के आभूषण खरीदते वक्त लोगों के मन एक सवाल जरूर आता है कि आखिर क्या खरीदा हुआ आभूषण शुद्ध है? आखिर इसकी परख कैसे करें? ईटीवी भारत के इस स्पेशल वीडियो के जरिए आप आसान तरीकों से आभूषण की शुद्धता को परख सकते हैं.

आभूषण की गुणवत्ता जांचने के लिए सरकार ने हॉलमार्किंग का सिस्टम शुरू किया है.

हॉलमार्किंग का सिस्टम

बता दें कि सोने और चांदी की गुणवत्ता जांचने के लिए सरकार ने हॉलमार्किंग का सिस्टम शुरू किया है. हॉलमार्किंग से यह पता लगाया जा सकता है कि आभूषण कितने कैरेट का है और कितना शुद्ध है. सर्राफा कारोबार से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि हॉलमार्किंग भी अलग-अलग प्रकार से की जाती है. मौजूदा समय की बात की जाए तो हॉलमार्किंग की प्रक्रिया पूरी तरह से मशीनी रूप ले चुकी है और अब एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी द्वारा हॉलमार्किंग आभूषणों पर की जाती है. हालांकि, इससे पहले हॉलमार्किंग की प्रक्रिया में कुछ रसायनों का उपयोग किया जाता था, जो मानव शरीर के अलावा प्रकृति के लिए भी हानिकारक था. अब इन रसायनों का प्रयोग पूरी तरह बंद हो चुका है और सिर्फ मशीन के जरिए ही हॉलमार्किंग की जाती है.

यह भी पढ़ें: स्पेशल: डेढ़ साल में बनने वाले फ्लाईओवर में तीन साल बाद भी काम पूरा नहीं, जनता परेशान

ग्राहकों का बढ़ा विश्वास

जयपुर सर्राफा ट्रेडर्स कमेटी के अध्यक्ष कैलाश मित्तल का कहना है कि हॉलमार्किंग काफी पहले समय से ही चालू हो चुकी थी, लेकिन अब हॉलमार्किंग का जो चलन है वह दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है. ग्राहक भी अब हॉलमार्किंग वाले ही ज्वैलरी खरीदते हैं और व्यापारी भी हॉलमार्किंग ज्वैलरी ही अपनी दुकान पर उपलब्ध कराते हैं. मित्तल ने बताया कि काफी अच्छी प्रतिशत के अंतर्गत जयपुर सर्राफा बाजार के लोगों ने हॉल मार्किंग के लाइसेंस भी ले लिए हैं. छोटे व्यापारियों ने भी इसकी शुरुआत कर दी है. सभी लोग अब हॉलमार्किंग की ज्वैलरी ही बेचते है. हॉलमार्किंग से अब ग्राहकों को सोने व चांदी के ऊपर विश्वास हो गया है. जिसके अंतर्गत जो आभूषण है, जिसमें 18 कैरेट और 24 कैरेट है. मित्तल ने बताया कि जो पूर्ण रूप से सोने के आभूषण होते हैं वह 22 कैरेट गोल्ड में बनाए जाते हैं.

क्या है हॉलमार्किंग?

इसके साथ ही 18 कैरेट और 24 कैरेट गोल्ड के अंतर्गत डायमंड की ज्वैलरी ज्यादातर उपयोग में आती है. उन्होंने बताया कि हॉलमार्किंग का चलन अब दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही ग्राहक को भी हॉलमार्किंग पर भरोसा है. वह हॉलमार्किंग देखकर ही अब जेवरात के सामान खरीदता है. हॉलमार्किंग मशीनों के द्वारा की जाती है. उन्होंने बताया कि इसके अंतर्गत एक एक्स-रे मशीन होती है. जिसके जरिए माल की टेस्टिंग की जाती है, साथ ही इसकी जो लेजर किरणे होती हैं वह माल के अंदर तक जाती हैं. इसकी क्वालिटी भी टेस्ट करती है. मित्तल ने बताया कि फिर लेजर मशीन के जरिए हॉल मार्किंग का निशान भी लगाया जाता है. इसमें भी कई तरह के निशान होते हैं. एक गवर्नमेंट का निशान होता है एक कंपनी का ब्रांड होता है. अभी भी कई व्यापारी ऐसे हैं जिनके पास हॉल मार्किंग का लाइसेंस नहीं है.

यह भी पढ़ें: Special: अद्भुत! नाक से बांसुरी बजाते हैं बीकानेर के बसंत ओझा, अनूठे हुनर के बाद भी अब तक नहीं मिली पहचान

पहले कैसे होती थी हॉलमार्किंग

हॉलमार्किंग अभी एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी द्वारा हॉल मार्किंग आभूषणों पर की जाती है, लेकिन पहले हाल मार्किंग रसायन और अन्य चीजों से किया गया था. जो कि मानव शरीर के साथ ही पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक था. अभी एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी से की जाती है. जो कि मानव शरीर और पर्यावण के लिए हानिकारक नही होती है.

जयपुर. चाहे शादी विवाह हो या फिर दिवाली धनतेरस जैसे त्योहार, हर सीजन में सोने चांदी की मांग रहती है. यहां तक कि निवेश के लिए भी सोने को एक अच्छा ऑप्शन माना गया है. लेकिन, सोने चांदी के आभूषण खरीदते वक्त लोगों के मन एक सवाल जरूर आता है कि आखिर क्या खरीदा हुआ आभूषण शुद्ध है? आखिर इसकी परख कैसे करें? ईटीवी भारत के इस स्पेशल वीडियो के जरिए आप आसान तरीकों से आभूषण की शुद्धता को परख सकते हैं.

आभूषण की गुणवत्ता जांचने के लिए सरकार ने हॉलमार्किंग का सिस्टम शुरू किया है.

हॉलमार्किंग का सिस्टम

बता दें कि सोने और चांदी की गुणवत्ता जांचने के लिए सरकार ने हॉलमार्किंग का सिस्टम शुरू किया है. हॉलमार्किंग से यह पता लगाया जा सकता है कि आभूषण कितने कैरेट का है और कितना शुद्ध है. सर्राफा कारोबार से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि हॉलमार्किंग भी अलग-अलग प्रकार से की जाती है. मौजूदा समय की बात की जाए तो हॉलमार्किंग की प्रक्रिया पूरी तरह से मशीनी रूप ले चुकी है और अब एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी द्वारा हॉलमार्किंग आभूषणों पर की जाती है. हालांकि, इससे पहले हॉलमार्किंग की प्रक्रिया में कुछ रसायनों का उपयोग किया जाता था, जो मानव शरीर के अलावा प्रकृति के लिए भी हानिकारक था. अब इन रसायनों का प्रयोग पूरी तरह बंद हो चुका है और सिर्फ मशीन के जरिए ही हॉलमार्किंग की जाती है.

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ग्राहकों का बढ़ा विश्वास

जयपुर सर्राफा ट्रेडर्स कमेटी के अध्यक्ष कैलाश मित्तल का कहना है कि हॉलमार्किंग काफी पहले समय से ही चालू हो चुकी थी, लेकिन अब हॉलमार्किंग का जो चलन है वह दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है. ग्राहक भी अब हॉलमार्किंग वाले ही ज्वैलरी खरीदते हैं और व्यापारी भी हॉलमार्किंग ज्वैलरी ही अपनी दुकान पर उपलब्ध कराते हैं. मित्तल ने बताया कि काफी अच्छी प्रतिशत के अंतर्गत जयपुर सर्राफा बाजार के लोगों ने हॉल मार्किंग के लाइसेंस भी ले लिए हैं. छोटे व्यापारियों ने भी इसकी शुरुआत कर दी है. सभी लोग अब हॉलमार्किंग की ज्वैलरी ही बेचते है. हॉलमार्किंग से अब ग्राहकों को सोने व चांदी के ऊपर विश्वास हो गया है. जिसके अंतर्गत जो आभूषण है, जिसमें 18 कैरेट और 24 कैरेट है. मित्तल ने बताया कि जो पूर्ण रूप से सोने के आभूषण होते हैं वह 22 कैरेट गोल्ड में बनाए जाते हैं.

क्या है हॉलमार्किंग?

इसके साथ ही 18 कैरेट और 24 कैरेट गोल्ड के अंतर्गत डायमंड की ज्वैलरी ज्यादातर उपयोग में आती है. उन्होंने बताया कि हॉलमार्किंग का चलन अब दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही ग्राहक को भी हॉलमार्किंग पर भरोसा है. वह हॉलमार्किंग देखकर ही अब जेवरात के सामान खरीदता है. हॉलमार्किंग मशीनों के द्वारा की जाती है. उन्होंने बताया कि इसके अंतर्गत एक एक्स-रे मशीन होती है. जिसके जरिए माल की टेस्टिंग की जाती है, साथ ही इसकी जो लेजर किरणे होती हैं वह माल के अंदर तक जाती हैं. इसकी क्वालिटी भी टेस्ट करती है. मित्तल ने बताया कि फिर लेजर मशीन के जरिए हॉल मार्किंग का निशान भी लगाया जाता है. इसमें भी कई तरह के निशान होते हैं. एक गवर्नमेंट का निशान होता है एक कंपनी का ब्रांड होता है. अभी भी कई व्यापारी ऐसे हैं जिनके पास हॉल मार्किंग का लाइसेंस नहीं है.

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पहले कैसे होती थी हॉलमार्किंग

हॉलमार्किंग अभी एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी द्वारा हॉल मार्किंग आभूषणों पर की जाती है, लेकिन पहले हाल मार्किंग रसायन और अन्य चीजों से किया गया था. जो कि मानव शरीर के साथ ही पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक था. अभी एक्स-रे और लेजर मशीन तकनीकी से की जाती है. जो कि मानव शरीर और पर्यावण के लिए हानिकारक नही होती है.

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