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बड़ी चौपड़ पर सियासत का अनूठा नजारा, सत्तापक्ष पूर्वमुखी तो विपक्ष दक्षिणमुखी होकर फहराते हैं तिरंगा

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Published : Aug 14, 2022, 5:19 PM IST

जयपुर में सियासत की अनूठी रिवायत देखने को मिलती है. यहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर सीएम से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक जनता के बीच सड़क पर तिरंगे को सलामी देते नजर आते हैं. ये परंपरा सालों से निभाई जा रही है. यहां सत्तापक्ष पूर्वमुखी तो विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करते हैं.

flag hoisting at badi chaupar
बड़ी चौपड़ पर सियासत का अनूठा नजारा

जयपुर. स्वतंत्रता दिवस हो या फिर गणतंत्र दिवस हर सरकारी जलसा आमतौर पर विधान सभा सचिवालय और बड़ी गवर्नमेंट बिल्डिंग के इर्द-गिर्द ही नजर आता है. लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं होता है. हर खास मौके पर मुख्यमंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक जनता के बीच सड़क पर तिरंगे झंडे को सलामी (flag hoisting at badi chaupar) देते हैं. यहां पर ना तो विधानसभा की ऊंची दिवारें होती हैं और ना ही सचिवालय की कड़ी सुरक्षा.

जयपुर की बड़ी चौपड़ पर साल 1947 के बाद से ही इस परंपरा (unique tradition of flag hoisting) को निभाया जा रहा है. जब देश आजाद हुआ था तो उसकी शाम को बड़ी चौपड़ पर तत्कालीन राज्य प्रमुख टीकाराम पालीवाल ने तिरंगा झंडा फहराया था. इस दौरान पूरे राज परिवार के सदस्य भी मौजूद रहे थे. कांग्रेस नेता गोकुलभाई भट्ट ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया और फिर सालों से यह रवायत जयपुर की तहजीब का हिस्सा (Best of Bharat) बन चुकी है. जयपुर की बड़ी चौपड़ पर 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी सत्ता पक्ष की तरफ से पहले मुख्यमंत्री झंडे को फहराते हैं. उसके बाद विपरीत दिशा में नेता प्रतिपक्ष भी तिरंगा लहराने पहुंचते हैं. जयपुर शहर की चारदीवारी में बड़ी चौपड़ पर जनता के बीच जनप्रतिनिधियों का मौजूद होना और देश के प्रमुख राष्ट्रीय पर्व पर शिरकत करना यह जाहिर करता है कि इस रवायत को बेस्ट ऑफ भारत का हिस्सा माना जा सकता है.

बड़ी चौपड़ पर सियासत का अनूठा नजारा

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झंडारोहण में निभाते हैं यह परंपराः स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) और गणतंत्र दिवस पर बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करने की परंपरा बरसों से चली आ रही है. यहां सत्तारूढ़ पार्टी पूर्वमुखी होकर झंडारोहण करती है. वहीं विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करता है. यहां 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सबसे पहले आजाद मोर्चा (आजाद मंडल) या यूं कहें जयपुर के युवाओं ने झंडारोहण किया था.

स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी जयपुर का हृदय स्थल कहे जाने वाली बड़ी चौपड़ अनूठी सियासत का साक्षी बनता है. यहां सत्ताधारी और विपक्षी दल परंपरानुसार झंडारोहण करते हैं. करीब 70 सालों से ये परंपरा (unique tradition of flag hoisting) चली आ रही है. पहले झंडारोहण सत्तापक्ष की ओर से होता है और ठीक उसके बाद विपक्षी दल के नेता राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं. इस आयोजन की खास बात यह है कि बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण सत्तारूढ़ पार्टी पूर्वमुखी होकर जबकि विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करता आया है. सबसे पहले टीकाराम पालीवाल ने बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करके ये परंपरा शुरू की थी. माना जाता है कि पूर्व में जिस तरह सूर्य उदय होता है उसी तरह सत्तारूढ़ पार्टी का सूर्य उदयमान रहे इसलिए पूर्वमुखी होकर ध्वजारोहण किया जाता है.

पढ़ें- जब जमनालाल बजाज ने गांधीजी के सामने रखा ये प्रस्ताव, फिर

ये राजनीति का केंद्र बिंदु रहा हैः इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि बड़ी चौपड़ जिसे माणक चौक चौपड़ भी कहते हैं, वो राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. स्टेट पीरियड में राजाओं के खिलाफ जयपुर प्रजामंडल के जितने भी आंदोलन होते थे, उसका मुख्य बिंदु माणक चौक चौपड़ ही रहा. यहीं जयपुर प्रजामंडल की बैठकें हुआ करती थी. राजतंत्र से आजाद होने के बाद जब राजस्थान का निर्माण हुआ, उस दौरान भी जनसमूह यहीं आकर एकत्रित हुआ करता था. चूंकि उस दौरान सवाई मानसिंह टाउन हॉल में विधानसभा हुआ करती थी, तो हर धरना-प्रदर्शन बड़ी चौपड़ पर ही हुआ करता था.

भगत ने बताया कि आजादी के समारोह में पक्ष और विपक्ष यहीं झंडारोहण भी करते है. सत्ता पक्ष का पूर्व मुखी और विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करते थे. दोनों एक दूसरे को मिठाइयां भी खिलाया करते थे. मोहनलाल सुखाड़िया के समय का एक प्रचलित किस्सा है जब उन्होंने यहां झंडारोहण किया. उस वक्त सामने से विपक्ष के नेता कुंभाराम आ रहे थे. कुंभाराम ने झंडारोहण किया और दोनों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई.

पढ़ें- राजस्थान में बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा, दौसा के लिए गर्व की बात

ये किस्सा भी है मशहूरः 1968 से पहले यहां अल्पमत की सरकार आ गई थी. विद्रोह भी हुआ था. राष्ट्रपति शासन भी लगा था. उस वक्त ज्योतिषाचार्यों के कहने पर सत्तारूढ़ पार्टी ने पूर्व मुखी होकर झंडारोहण किया था. जवाब में दक्षिण मुखी होकर विपक्ष ने झंडारोहण किया. वो सत्तारूढ़ पार्टी को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं. इसके बाद बदलाव भी हुआ मोहनलाल सुखाड़िया को 1971 में पद छोड़ना पड़ा और बरकतुल्लाह खान सरकार बनी.

जब 2001 में विधानसभा सवाई मानसिंह टाउन हॉल से शिफ्ट होकर लाल कोठी चली गई. उसके बाद यहां धरने प्रदर्शन होना भी लगभग बंद हो गए. शुरुआत में छात्रों का एक बड़ा समूह बकायदा यहां रैली के रूप में आता था. बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करता था. 1942 से भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान युवाओं ने (आजाद मंडल या आजाद मोर्चा) यहां झंडारोहण करना शुरू किया था. हालांकि उस जमाने में झंडा तिरंगा नहीं हुआ करता था. इसमें महाराजा कॉलेज की बड़ी भूमिका रहा करती थी.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

बहरहाल, बड़ी चौपड़ पर स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) के मौके पर एक बार फिर झंडारोहण किया जाएगा. यहां सियासी मंचों से एक बार फिर पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर शब्द बाण चलाएंगे. लेकिन छोटी काशी के दिल में बसे बड़ी चौपड़ पर लहराता तिरंगा कौमी एकता का संदेश देता आया है.

जयपुर. स्वतंत्रता दिवस हो या फिर गणतंत्र दिवस हर सरकारी जलसा आमतौर पर विधान सभा सचिवालय और बड़ी गवर्नमेंट बिल्डिंग के इर्द-गिर्द ही नजर आता है. लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं होता है. हर खास मौके पर मुख्यमंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक जनता के बीच सड़क पर तिरंगे झंडे को सलामी (flag hoisting at badi chaupar) देते हैं. यहां पर ना तो विधानसभा की ऊंची दिवारें होती हैं और ना ही सचिवालय की कड़ी सुरक्षा.

जयपुर की बड़ी चौपड़ पर साल 1947 के बाद से ही इस परंपरा (unique tradition of flag hoisting) को निभाया जा रहा है. जब देश आजाद हुआ था तो उसकी शाम को बड़ी चौपड़ पर तत्कालीन राज्य प्रमुख टीकाराम पालीवाल ने तिरंगा झंडा फहराया था. इस दौरान पूरे राज परिवार के सदस्य भी मौजूद रहे थे. कांग्रेस नेता गोकुलभाई भट्ट ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया और फिर सालों से यह रवायत जयपुर की तहजीब का हिस्सा (Best of Bharat) बन चुकी है. जयपुर की बड़ी चौपड़ पर 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी सत्ता पक्ष की तरफ से पहले मुख्यमंत्री झंडे को फहराते हैं. उसके बाद विपरीत दिशा में नेता प्रतिपक्ष भी तिरंगा लहराने पहुंचते हैं. जयपुर शहर की चारदीवारी में बड़ी चौपड़ पर जनता के बीच जनप्रतिनिधियों का मौजूद होना और देश के प्रमुख राष्ट्रीय पर्व पर शिरकत करना यह जाहिर करता है कि इस रवायत को बेस्ट ऑफ भारत का हिस्सा माना जा सकता है.

बड़ी चौपड़ पर सियासत का अनूठा नजारा

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो, संत गोविंद गुरु ने भक्ति मार्ग पर चलकर जगाई थी आजादी की अलख

झंडारोहण में निभाते हैं यह परंपराः स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) और गणतंत्र दिवस पर बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करने की परंपरा बरसों से चली आ रही है. यहां सत्तारूढ़ पार्टी पूर्वमुखी होकर झंडारोहण करती है. वहीं विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करता है. यहां 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सबसे पहले आजाद मोर्चा (आजाद मंडल) या यूं कहें जयपुर के युवाओं ने झंडारोहण किया था.

स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी जयपुर का हृदय स्थल कहे जाने वाली बड़ी चौपड़ अनूठी सियासत का साक्षी बनता है. यहां सत्ताधारी और विपक्षी दल परंपरानुसार झंडारोहण करते हैं. करीब 70 सालों से ये परंपरा (unique tradition of flag hoisting) चली आ रही है. पहले झंडारोहण सत्तापक्ष की ओर से होता है और ठीक उसके बाद विपक्षी दल के नेता राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं. इस आयोजन की खास बात यह है कि बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण सत्तारूढ़ पार्टी पूर्वमुखी होकर जबकि विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करता आया है. सबसे पहले टीकाराम पालीवाल ने बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करके ये परंपरा शुरू की थी. माना जाता है कि पूर्व में जिस तरह सूर्य उदय होता है उसी तरह सत्तारूढ़ पार्टी का सूर्य उदयमान रहे इसलिए पूर्वमुखी होकर ध्वजारोहण किया जाता है.

पढ़ें- जब जमनालाल बजाज ने गांधीजी के सामने रखा ये प्रस्ताव, फिर

ये राजनीति का केंद्र बिंदु रहा हैः इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि बड़ी चौपड़ जिसे माणक चौक चौपड़ भी कहते हैं, वो राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. स्टेट पीरियड में राजाओं के खिलाफ जयपुर प्रजामंडल के जितने भी आंदोलन होते थे, उसका मुख्य बिंदु माणक चौक चौपड़ ही रहा. यहीं जयपुर प्रजामंडल की बैठकें हुआ करती थी. राजतंत्र से आजाद होने के बाद जब राजस्थान का निर्माण हुआ, उस दौरान भी जनसमूह यहीं आकर एकत्रित हुआ करता था. चूंकि उस दौरान सवाई मानसिंह टाउन हॉल में विधानसभा हुआ करती थी, तो हर धरना-प्रदर्शन बड़ी चौपड़ पर ही हुआ करता था.

भगत ने बताया कि आजादी के समारोह में पक्ष और विपक्ष यहीं झंडारोहण भी करते है. सत्ता पक्ष का पूर्व मुखी और विपक्ष दक्षिणमुखी होकर झंडारोहण करते थे. दोनों एक दूसरे को मिठाइयां भी खिलाया करते थे. मोहनलाल सुखाड़िया के समय का एक प्रचलित किस्सा है जब उन्होंने यहां झंडारोहण किया. उस वक्त सामने से विपक्ष के नेता कुंभाराम आ रहे थे. कुंभाराम ने झंडारोहण किया और दोनों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई.

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ये किस्सा भी है मशहूरः 1968 से पहले यहां अल्पमत की सरकार आ गई थी. विद्रोह भी हुआ था. राष्ट्रपति शासन भी लगा था. उस वक्त ज्योतिषाचार्यों के कहने पर सत्तारूढ़ पार्टी ने पूर्व मुखी होकर झंडारोहण किया था. जवाब में दक्षिण मुखी होकर विपक्ष ने झंडारोहण किया. वो सत्तारूढ़ पार्टी को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं. इसके बाद बदलाव भी हुआ मोहनलाल सुखाड़िया को 1971 में पद छोड़ना पड़ा और बरकतुल्लाह खान सरकार बनी.

जब 2001 में विधानसभा सवाई मानसिंह टाउन हॉल से शिफ्ट होकर लाल कोठी चली गई. उसके बाद यहां धरने प्रदर्शन होना भी लगभग बंद हो गए. शुरुआत में छात्रों का एक बड़ा समूह बकायदा यहां रैली के रूप में आता था. बड़ी चौपड़ पर झंडारोहण करता था. 1942 से भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान युवाओं ने (आजाद मंडल या आजाद मोर्चा) यहां झंडारोहण करना शुरू किया था. हालांकि उस जमाने में झंडा तिरंगा नहीं हुआ करता था. इसमें महाराजा कॉलेज की बड़ी भूमिका रहा करती थी.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

बहरहाल, बड़ी चौपड़ पर स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) के मौके पर एक बार फिर झंडारोहण किया जाएगा. यहां सियासी मंचों से एक बार फिर पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर शब्द बाण चलाएंगे. लेकिन छोटी काशी के दिल में बसे बड़ी चौपड़ पर लहराता तिरंगा कौमी एकता का संदेश देता आया है.

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