जयपुर. वैसे तो राजस्थान अपनी कला, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्व के मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान रखता है. लेकिन पिछले कुछ साल में मानव तस्करी, बाल श्रम और बाल तस्करी को लेकर मरुधरा के आंचल में काला धब्बा लगा हुआ था. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में प्रदेश का स्थान पहले, दूसरे या तीसरे नंबर पर आने लगा था. लेकिन पिछले तीन साल के आंकड़ों से प्रदेश की इस धूमिल होती छवि में कुछ सुधार हुआ है.
मानव तस्करी की बात करें तो साल 2016 में पश्चिम बंगाल के बाद राजस्थान दूसरे स्थान पर पहुंच गया था. लेकिन साल 2017 में इसमें कुछ सुधार हुआ. ऐसे में झारखण्ड, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के बाद चौथे स्थान पहुंचने में कामयाब रहा. साल 2018 में राजस्थान नौंवे स्थान पर पहुंच इस काले धब्बे को कुछ साफ किया. हालांकि अभी साल 2019 के आंकड़े आना बाकी है.
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इसी तरह से बाल श्रम की बात करें तो साल 2016 में महाराष्ट्र, कर्नाटक के बाद राजस्थान बाल श्रम में तीसरे नंबर पर रहा. इसी तरह से साल 2017 महाराष्ट्र के बाद राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा. लेकिन साल 2018 में राजस्थान ने अपनी स्थति में सुधार किया और तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आसाम के बाद राजस्थान छठवें स्थान पर रहा. वहीं बात बाल तस्करी की बात करें तो इस मामले में साल 2016 से 2018 के आंकड़ों में राजस्थान हमेशा टॉप 10 से बाहर ही रहा.
मानव तस्करी के आंकड़ों पर एक नजर...
- साल 2016 में पश्चिम बंगाल में 3 हजार 579 मामले दर्ज किये गए, जबकि राजस्थान में 1 हजार 422 मामले दर्ज हुए
- साल 2017 में झारखण्ड में 373, पश्चिम बंगाल में 357, तेलंगाना में 329 और राजस्थान में 316 मामले दर्ज हुए
- साल 2018 में झारखण्ड में 273, महाराष्ट्र में 311, पश्चिम बंगाल में 272, आसाम में 262, आंध्र प्रदेश में 240, बिहार में 127, केरला में 105, दिल्ली में 98 और राजस्थान 86 में मामले दर्ज हुए
बाल श्रम के आंकड़े कुछ यूं रहे...
- साल 2016 में महाराष्ट्र में 93, कर्नाटक में 23 और राजस्थान में 21 मामले दर्ज हुए
- साल 2017 में महाराष्ट्र में 130 और राजस्थान में 99 मामले दर्ज हुए
- साल 2018 में तेलंगाना में 125, महाराष्ट्र में 90, कर्नाटक में 63, आसाम में 39, गुजरात में 35 और राजस्थान में 32 मामले दर्ज हुए
बाल तस्करी के मामले...
- राजस्थान पिछले तीन साल यानि 2016 से 2018 के एनसीआरबी के आंकड़ों में टॉप 10 से बाहर रहा
ये तो एनसीआरबी के आंकडे हैं, लेकिन खास बात ये है कि प्रदेश में यानि राजस्थान अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में अभी तक मानव तस्करी, बाल श्रम और बाल तस्करी को अलग से डिफाइन ही नहीं किया गया. मतलब जिस तरह से एनसीआरबी मानव तस्करी, बाल श्रम और बाल तस्करी का अलग से कॉलम रखकर आंकड़े जारी करता है. लेकिन आरसीआरबी के आंकड़ों में इन तीनों का अलग से कोई कॉलम नहीं बनाया गया, जिससे ये आंकड़े निकालना बड़ा मुश्किल होता है कि प्रदेश मानव तस्करी और बाल श्रम की क्या स्थति है.
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बहरहाल एनसीआरबी के साल 2016 से 2018 के आंकड़ों में राजस्थान ने अपनी छवि में सुधरा किया है. अब साल 2019 के आंकड़े आना बाकी है. लेकिन एक निजी सर्वे की बात करें तो प्रदेश में 10 हजार से अधिक बाल श्रम और इतने ही बाल तस्करी के मामले राजस्थान में हर साल होते हैं. वहीं एक हजार से अधिक मानव तस्करी, लेकिन प्रदेश में इन मामलों को अन्य मामले के कॉलम में जोड़ा जाता है, जिससे वास्तविक आंकड़े सामने नहीं आते.