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विशेषः आज बाबा साहब होते तो कृषि कानूनों को लेकर किसानों की समस्या पर क्या बोलते?

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Published : Apr 14, 2021, 7:54 PM IST

भारतीय संविधान के जनक, समाज सुधारक, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर जहां पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है, वहीं ईटीवी भारत ने डॉ. अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के महासचिव अनिल गोठवाल से बात की और जाना कि अगर आज बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर होते, तो भारत कैसा होता और कृषि कानूनों को लेकर उनकी क्या राय होती.

अनिल गोठवाल, Bhimrao Ambedkar Jayanti
डॉ. अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के महासचिव अनिल गोठवाल

जयपुर. लोकसभा में तीन कृषि कानून हालही में पास हुए, जिस पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है. आज बाबा साहब की जयंती है ऐसे में डॉ. बाबास साहब अंबेडकर ने कृषि पर भी काफी जोर दिया था. ऐसे में अनिल गोठवाल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने सामूहिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कहा था. टुकड़ों में जो खेती होती है, वो वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो सकती और उससे जुड़े किसानों को आगे बढ़ने में भी समय लगेगा. खेती सहायक जीविकोपार्जन का साधन होना चाहिए, ना कि सिर्फ खेती के ऊपर ही निर्भर हों.

अनिल गोठवाल से विशेष बातचीत

अनिल गोठवाल कहा कि आजादी से पहले की जो परिस्थितियां थीं उसमें डॉ. अम्बेडकर ने संघर्ष किया, लेकिन वो जिस पथ पर चले वो आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि जो सामाजिक बुराइयां हैं, वो अभी भी दूर नहीं हो पाई हैं. उन्होंने हर जाति, वर्ग, समाज के लिए काम किया, लेकिन विडंबना ये है कि उन्हें अब केवल एक वंचित वर्ग से जोड़कर देखा जा रहा है.

यह भी पढ़ेंः SPECIAL : बाबा साहेब ने वंचितों और पीड़ितों को हक दिलवाया....महिला कानूनों की नींव डॉ अंबेडकर ने रखी

उन्होंने कहा कि विश्व में जब प्रजातंत्र की शुरुआत हुई, तो अमेरिका जैसे देश में महिलाओं को 144 साल बाद वोट का अधिकार मिला, जिस इंग्लैंड ने देश पर सैकड़ों साल तक राज किया वहां भी करीब 112 साल बाद महिलाओं को वोट देने के लिए आगे लाया गया, जबकि भारत में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान बनाने के दूसरे दिन से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाया. उन्होंने आम महिलाओं की बात की, उनके अधिकार और कानून की बात की.

उस दौर में भी उन्होंने बाल विवाह रोकने के लिए महिला-पुरुष की बालिग आयु निर्धारित की. उन्होंने किसानों, मजदूरों, महिलाओं और वंचित वर्ग के लिए कानून बनाए. यही नहीं देश में समानता लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था शुरू की. उन्होंने देश के प्रति दूरदर्शिता रखते हुए ये विचार किया कि यहां भेदभाव दूर कर, टुकड़ों में नहीं बंटकर एक साथ मिलकर देश के उत्थान में कार्य करने की प्रेरणा दी थी.

यह भी पढ़ेंः नाथी का बाड़ा और बवाल, पूरे रियासत में मदद के लिए जानी जाती थी 'नाथी मां'...जानिये पूरी कहानी

वहीं, आरक्षण पर गोठवाल ने एक उदाहरण देकर समझाया कि एक गरीब परिवार की महिला अपने दो बच्चों को एक एक गिलास दूध पिलाती है, इनमें से अगर किसी एक की तबीयत खराब हो जाए, तो वो एक बच्चे का दूध बंद कर दूसरी को बढ़ाने का प्रयत्न करती है. कुछ समय बाद जब बच्चा ठीक हो जाएगा, तो दोबारा एक-एक गिलास दूध की व्यवस्था शुरू कर दी जाएगी. कुछ यही व्यवस्था डॉ. भीमराव अंबेडकर ने पिछड़े हुए लोगों के लिए की थी. उन्हें उन लोगों को आरक्षण नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व देने की पहल की थी.

जयपुर. लोकसभा में तीन कृषि कानून हालही में पास हुए, जिस पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है. आज बाबा साहब की जयंती है ऐसे में डॉ. बाबास साहब अंबेडकर ने कृषि पर भी काफी जोर दिया था. ऐसे में अनिल गोठवाल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने सामूहिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कहा था. टुकड़ों में जो खेती होती है, वो वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो सकती और उससे जुड़े किसानों को आगे बढ़ने में भी समय लगेगा. खेती सहायक जीविकोपार्जन का साधन होना चाहिए, ना कि सिर्फ खेती के ऊपर ही निर्भर हों.

अनिल गोठवाल से विशेष बातचीत

अनिल गोठवाल कहा कि आजादी से पहले की जो परिस्थितियां थीं उसमें डॉ. अम्बेडकर ने संघर्ष किया, लेकिन वो जिस पथ पर चले वो आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि जो सामाजिक बुराइयां हैं, वो अभी भी दूर नहीं हो पाई हैं. उन्होंने हर जाति, वर्ग, समाज के लिए काम किया, लेकिन विडंबना ये है कि उन्हें अब केवल एक वंचित वर्ग से जोड़कर देखा जा रहा है.

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उन्होंने कहा कि विश्व में जब प्रजातंत्र की शुरुआत हुई, तो अमेरिका जैसे देश में महिलाओं को 144 साल बाद वोट का अधिकार मिला, जिस इंग्लैंड ने देश पर सैकड़ों साल तक राज किया वहां भी करीब 112 साल बाद महिलाओं को वोट देने के लिए आगे लाया गया, जबकि भारत में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान बनाने के दूसरे दिन से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाया. उन्होंने आम महिलाओं की बात की, उनके अधिकार और कानून की बात की.

उस दौर में भी उन्होंने बाल विवाह रोकने के लिए महिला-पुरुष की बालिग आयु निर्धारित की. उन्होंने किसानों, मजदूरों, महिलाओं और वंचित वर्ग के लिए कानून बनाए. यही नहीं देश में समानता लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था शुरू की. उन्होंने देश के प्रति दूरदर्शिता रखते हुए ये विचार किया कि यहां भेदभाव दूर कर, टुकड़ों में नहीं बंटकर एक साथ मिलकर देश के उत्थान में कार्य करने की प्रेरणा दी थी.

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वहीं, आरक्षण पर गोठवाल ने एक उदाहरण देकर समझाया कि एक गरीब परिवार की महिला अपने दो बच्चों को एक एक गिलास दूध पिलाती है, इनमें से अगर किसी एक की तबीयत खराब हो जाए, तो वो एक बच्चे का दूध बंद कर दूसरी को बढ़ाने का प्रयत्न करती है. कुछ समय बाद जब बच्चा ठीक हो जाएगा, तो दोबारा एक-एक गिलास दूध की व्यवस्था शुरू कर दी जाएगी. कुछ यही व्यवस्था डॉ. भीमराव अंबेडकर ने पिछड़े हुए लोगों के लिए की थी. उन्हें उन लोगों को आरक्षण नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व देने की पहल की थी.

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