जयपुर. लाल डूंगरी क्षेत्र में 14 अगस्त को बारिश के साथ बहकर आई मिट्टी 5 दिन बीत जाने के बाद भी हटाई नहीं जा सकी है. क्षेत्रीय लोगों के रोजगार के साधन ऑटो और ई-रिक्शे नेस्तनाबूद हो गए. बरसों से पाई-पाई जोड़ कर बसाया घरौंदा उजड़ गया. लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और निगम प्रशासन राहत पहुंचाने के बजाय यहां बहकर आई मिट्टी के खरीदार ढूंढने में व्यस्त है.
जयपुर की एक पूरी बस्ती मिट्टी का टीला नजर आ रही है. गलता की पहाड़ियों की तराई में बसे लाल डूंगरी क्षेत्र पर 14 अगस्त को बारिश का कहर बरपा था. इस इलाके में तीन कॉलोनी जलमग्न होने के साथ ही मिट्टी में दब गई. इस इलाके में बहुत से दूसरे राज्यों के लोग बसे हुए हैं जो छोटा-मोटा काम करते हैं. रिक्शा चलाते हैं, ऑटो के जरिए रोजमर्रा की जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं. लेकिन अब ये बस्ती इनके रिक्शा और ऑटो वाहनों की कब्रगाह सी नजर आती है.
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बस्ती में जब ईटीवी भारत पहुंचा तो यहां सिविल डिफेंस के लोग जेसीबी के जरिए आम रास्ते की मिट्टी हटाने में जुटे दिखे. रास्ते पर दो से तीन फीट मिट्टी अब भी जमा है और पानी का नाला अब भी बह रहा है. करीब 300 घर ऐसे हैं, जिनमें मिट्टी ने तांडव मचाया. यहां लोगों का सारा सामान अब भी जमींदोज है. वहीं, आस्था का केंद्र गंगेश्वर महादेव मंदिर भी 8 फीट मिट्टी में दब गया.
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यहां सैकड़ों वाहनों पर मिट्टी चढ़ी है और घर तबाह हो गए हैं. लोगों का सामान अब किसी काम का नहीं रहा. क्षेत्रीय लोगों में से एक ने अपनी किस्मत को कोसते हुए बताया कि अभी फरवरी में ही नया ऑटो लिया, उसी से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पा रहा था. लेकिन पहले कोरोना वायरस से सब थम गया और अब उस ऑटो को भी मिट्टी लील गई. बस्ती के मनोज यादव और उनका 8 साल का बेटा अभी तक परात भर-भर के अपने घर से मिट्टी निकाल रहे हैं.
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मिट्टी में लथपथ परिवार बिहार के गया जिले से यहां आया है. मनोज ऑटो चलाता था जो अब मोहनजोदड़ो के पुरातत्व खोज जैसा नजर आता है. उन्होंने बताया कि रोजगार का ऑटो ही एकमात्र साधन था, अब आगे राम ही रखवाला है. ऐसे ही कई परिवार अब तक सकते में हैं. हालांकि, कुछ सामाजिक संगठन 14 तारीख से ही पीड़ितों के लिए यहां भोजन और कपड़ों की व्यवस्था कर रहे हैं.
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बहरहाल, नगर निगम प्रशासन इस मामले में उदासीनता की चादर ओढ़े हुए है. पहाड़ से बहकर आई मिट्टी को बेचने के लिए टेंडर निकाला गया है. लोगों के घरौंदे मिट्टी हो गए और निगम इसी मिट्टी से कमाई करने पर आमादा है. यहां गरीब, मजदूर, कामगारों की जिंदगी दांव पर है. मकान तो कब्र से निकाल दिए जाएंगे, लेकिन रोजगार के साधनों का जो हश्र हुआ है, उस पर चढ़ी मिट्टी अब आसुओं से धोई जा रही है.
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