जयपुर. अक्षय-तृतीया यानि आखातीज और पीपल पूर्णिमा पर होने वाले बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार ने सख्त निर्देश जारी किए हैं. गृह विभाग ने प्रदेश के सभी जिला कलेक्टर-एसपी को ग्रामीण क्षेत्रों में आखातीज, पीपल पूर्णिमा पर बाल विवाह रोकने के आदेश दिए हैं.
आदेश के अनुसार बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अनुसार बाल विवाह अपराध है. इस वर्ष अक्षय-तृतीया (आखातीज) का पर्व 14 मई को है और इसके उपरान्त पीपल पूर्णिमा 26 मई का पर्व भी आने वाला है, इन दिनों अबूझ सावों पर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाहों के आयोजन की संभावनाएं रहती हैं. ऐसे में गत वर्षों की भांति बाल विवाह के प्रभावी रोकथाम के लिए ग्राम और तहसील स्तर पर पदस्थापित विभिन्न विभागों के कर्मचारियों/अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों (तृत्ताधिकारियों, थानाधिकारियों, पटवारियों भू-अभिलेख निरीक्षकों, ग्राम पंचायत सदस्यों, ग्रामसेवकों, कृषि पयवेक्षकों, महिला एवं बाल विकास के परियोजना अधिकारियों, पर्यवेक्षकों, आगंनबाडी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, नगर निकाय के कर्मचारियों, जिला परिषद एवं पंचायत समिति सदस्यों, सरपंचों तथा वाई पंचों) के माध्यम से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार कर आमजन को जानकारी कराते हुए जन जागृति उत्पन्न कर बाल विवाह रोके जाने के लिए कार्रवाई की जाए. बाल विवाह रोकने के लिए समाज की मानसिकता और सोच में सकारात्मक परिवर्तन लाना आवश्यक है. इस संदर्भ में बाल विवाह की रोकथाम के लिए जनसहभागिता और चेतना जागृत करने हेतु कार्य योजना बनाकर कार्य किया जाना आवश्यक है.
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प्रभावी कार्य योजना ने लिए यह दिए निर्देश
- जिला और ब्लॉक स्तर पर गठित विभिन्न सहायता समूह, महिला समूह, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, साथिन सहयोगिनी को सक्रिय किया जाए.
- ऐसे व्ययित व समुदाय जो विवाह सम्पन्न कराने में सहयोगी होते हैं जैसे हलवाई, बैण्डवाजा, पंडित, बाराती, टेंट वाले, ट्रांसपोर्टर इत्यादि से बाल विवाह में सहयोग न करने का आश्वासन लेना और उन्हें कानून की जानकारी देना.
- जनप्रतिनिधियों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ चेतना बैठकों का आयोजन करवाना.
- ग्राम सभाओं में सामूहिक रूप से बालविवाह के दुष्प्रभावों की चर्चा करना व रोकथाम की कार्यवाही करना.
- बाल विवाह रोकथाम हेतु किशोरियों, महिला समूहों, स्वयं सहायता समूहों व विभिन्न विभागों के कार्यकर्ता जैसे-स्वास्थ्य, वन, कृषि, समाजकल्याण, शिक्षा विभाग इत्यादि के साथ समन्यय बैठक आयोजित की जाए और इनके कार्मिकों को बाल विवाह होने पर निकट के पुलिस स्टेशन में सूचना देने हेतु पाबन्द किया जाए.
- विवाह हेतु छपने वाले निमंत्रण पत्र में वर-वधु के आयु का प्रमाण प्रिन्टिग प्रेस वालों के पास रहे और निमंत्रण पत्र पर वर-वधु की जन्म तारीख प्रिन्ट किये जाने हेतु बल दिया जाए.
- इस हेतु जिला एवं उपखण्ड कार्यालयों में नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जाए जो 24 घण्टे क्रियाशील रहेंगे और नियंत्रण कक्ष का दूरभाष नं. सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा किया जाए.
- विद्यालयों में बाल-विवाह के दुष्परिणामों व इससे संबंधित विधिक प्रावधानों की जानकारी दिए जाने हेतु सभी स्कूलों को निर्देशित किया जाए.
- सामूहिक चर्चा से मिली जानकारी के आधार पर गांव/मोहल्लों के उन परिवारों में जहां बाल विवाह होने की आशंका हो, समन्वित रूप से समझाया जाए. अगर आवश्यक हो तो कानून द्वारा बाल विवाह को रोका जाए.
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गृह विभाग की ओर से जारी निर्देश में समस्त जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया जाता है कि वे बाल विवाहों की रोकथाम के संबंध में अपने-अपने क्षेत्रों में समुचित कार्यवाही सुनिश्चित करें और सूचना प्राप्त होने पर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत कानूनी कार्रवाई करें.
बाल विवाहों के आयोजन किए जाने की स्थिति में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा-6 की उप धारा 16 के तहत नियुक्त 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारियों' (उप खण्ड मजिस्ट्रेट) की जवाबदेही नियत की जाए और जिनके क्षेत्रों में बाल विवाह सम्पन्न होने की घटना होती है, उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.
बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति को रोकने के लिए इसे सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करें और की गयी कार्रवाई महिला एवं बाल विकास विभाग को रिपोर्ट भेजी जाए. बता दें अक्षय तृतीया और पूर्णिमा के अभुझ सावा होने की वजह से बड़ी संख्या में खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में शादी होती है और इसमें देखा जाता है कि नाबालिक बच्चों की शादी भी की जाती है. बाल विवाह नहीं हो इसको लेकर गृह विभाग ने निर्देश जारी किए हैं.