जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अधिकारी नहीं होने के बावजूद भी ग्राम विकास अधिकारी का निलंबन करने पर प्रमुख पंचायती राज सचिव और भरतपुर जिला परिषद के सीईओ सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. इसके साथ ही अदालत ने निलंबन आदेश की क्रियान्विति पर भी रोक लगा दी (court stays on suspension of Bharatpur VDO) है. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश रमेश चंद की याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता विजय पाठक ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता भरतपुर में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत है. उसकी नियुक्ति जिला परिषद की स्थापना समिति की सिफारिश के बाद की गई थी. वहीं गत 6 अप्रैल को जिला परिषद के सीईओ ने अधिकार नहीं होने के बावजूद उसे निलंबित कर दिया. याचिका में कहा गया कि उसकी नियुक्ति अधिकारी स्थापना समिति है, लेकिन निलंबन सीईओ ने किया है. इसके अलावा निलंबन आदेश जारी करने से पूर्व न तो याचिकाकर्ता को नोटिस दिया गया और ना ही उसे सुनवाई का मौका मिला.
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याचिका में कहा गया कि सीसीए नियम 13 के तहत जांच लंबित रहने या जांच प्रस्तावित होने पर ही निलंबन किया जा सकता है. जबकि निलंबन आदेश में इसका कोई हवाला नहीं किया गया है. इसके अलावा निलंबन काल में याचिकाकर्ता को दूसरी पंचायत समिति में उपस्थिति देने को कहा गया है, जिससे साबित है कि उसे केवल परेशान करने की नीयत से और राजनीतिक द्वेषता के चलते निलंबित किया गया है.
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याचिका में कहा गया कि किसी भी कर्मचारी को निलंबित करने से पूर्व नियुक्ति अधिकारी को ये देखना होता है कि ऐसी कौन सी परिस्थिति पैदा हो गई है कि निलंबन जरूरी है. याचिकाकर्ता के मामले में मशीनी अंदाज से निलंबन आदेश जारी किया गया है. ऐसे में उसके निलंबन आदेश को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी जवाब तलब किया है.