जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एकलपीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी है. जिसमें एकलपीठ ने सीबीएसई को निर्देश दिए थे कि वह छात्रा की 12वीं कक्षा की अंकतालिका में उसकी मां का नाम बदले. इसके साथ ही कोर्ट ने संबंधित छात्रा को जवाब पेश करने को कहा है. न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश सीबीएसई के क्षेत्रीय अधिकारी की ओर से दायर अपील पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.
अपील में वकील एमएस राघव ने कोर्ट को बताया कि एकलपीठ ने गत 22 मई को आदेश जारी कर अपीलार्थी को निर्देश दिए थे कि वह एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता छात्रा की 12वीं की अंकतालिका में उसकी मां का नाम सीमा माणक के स्थान पर संयोगिता माणक करे. अपील में कहा गया कि एकलपीठ ने एग्जामिनेशन बायलॉज को लेकर 1 फरवरी 2018 को जारी अधिसूचना को ध्यान में रखे बिना ही आदेश जारी कर दिया था. ऐसे में एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाई जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने आदेश पर रोक लगाते हुए छात्रा को जवाब पेश करने को कहा है.
ऋण वसूली के संबंध में दायर याचिका खारिज
वहीं हाईकोर्ट ने बैंकों के ऋण वसूली के संबंध में ऋण वसूली अधिकरण में पेश किए जाने वाले प्रकरणों में न्यूनतम राशि 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायाधीश मोहम्मद रफ़ीक और न्यायाधीश नरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश कीर्ति कपूर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में कहा गया कि बैंकों की ओर से दिए गए ऋण की वसूली के लिए ऋण वसूली अधिकरण में दावे पेश किए जाते हैं. पूर्व में दावा राशि की न्यूनतम सीमा लाख थी. केंद्र सरकार ने गत वर्ष 6 सितंबर को अधिसूचना जारी कर इस राशि को बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दिया. याचिका में कहा गया कि सरकार सिर्फ कानून में संशोधन के जरिए ही इस तरह की कार्रवाई कर सकती थी.
याचिका के विरोध में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि 10 लाख रुपए की सीमा 1993 में की गई थी. वर्तमान में बैंकों की ऋण राशि भी कई गुना बढ़ गई है. ऋण वसूली अधिनियम में भी न्यूनतम राशि बढ़ाने के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है. कानून में केवल राशि न्यूनतम 1 लाख रुपए से कम करने पर प्रतिबंध लगा हुआ है. ऐसे में न्यूनतम राशि को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपए करना न्याय संगत है. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया है.