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हाईकोर्ट: एक की फांसी की सजा रद्द, दो अभियुक्तों की फांसी आजीवन कारावास में बदली

राजस्थान हाईकोर्ट ने अलवर में पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में अभियुक्त राजकुमार को मिली फांसी की सजा को रद्द कर उसे रिहा कर दिया गया है. इसके साथ ही कोटा में विवाहिता की हत्या कर उसकी नाबालिग बेटी के करने वाले दोनों अभियुक्तों की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल गई है.

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Published : Aug 1, 2020, 7:05 PM IST

jaipur news, जयपुर समाचार
राजस्थान हाईकोर्ट

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अलवर में 5 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या करने के मामले में फैसला सुनाया है. इस मामले में अभियुक्त राजकुमार को मिली फांसी की सजा को रद्द करते हुए उसे तत्काल रिहा करने को कहा है. इसके साथ ही अदालत ने कोटा में पुराने नौकर के अपने साथी के साथ मिलकर विवाहिता की हत्या और उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म कर हत्या कर दी गई थी.

इस मामले में अभियुक्त मस्तराम और लोकेश मीणा को मिली फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ ने यह आदेश दोनों मामलों में राज्य सरकार की ओर से पेश डेथ रेफरेंस को अस्वीकार कर अपीलार्थियों की अपील पर दिए है.

पढ़ें- राजस्थान की पहली महिला स्पीकर सुमित्रा सिंह कोरोना पॉजिटिव

मामले के अनुसार 1 फरवरी 2015 को अलवर के बहरोड़ थाना इलाके में 5 साल की बच्ची के अपहरण को लेकर उसके परिजनों ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट पर पुलिस ने राजकुमार को गिरफ्तार किया. लेकिन बाद में पुलिस को एक खंडहर में बच्ची की लाश मिली. जांच में उसके साथ दुष्कर्म होने की बात भी सामने आई थी. इस मामले में अलवर पॉक्सो कोर्ट ने 11 जून 2019 को राजकुमार को अभियुक्त मानते हुए फांसी की सजा सुनाई. इसके खिलाफ राजकुमार की ओर से अपील और राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस पेश किया गया.

दूसरी ओर, कोटा के भीमगंजमंडी थाना इलाके में 31 जनवरी 2019 की रात घर के पुराने नौकर मस्तराम ने अपने साथी लोकेश मीणा के साथ मिलकर विवाहिता की हत्या और उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी. इसके बाद अभियुक्तों ने घर में रखे 10 लाख रुपए और लाखों के जेवरात भी लूट लिए थे. इस मामले में गत 18 फरवरी को कोटा पॉक्सो कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई थी. इस बाबत फांसी को कंफर्म करने के लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में डेथ रेफरेंस पेश किया तो वहीं अभियुक्तों ने सजा को चुनौती देते हुए अपील पेश की थी.

प्रबोधकों को परिलाभ नहीं देने पर मांगा जवाब

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रबोधक भर्ती-2008 में नियुक्त प्रबोधकों को पुरानी सेवा जोड़कर परिलाभ नहीं देने पर प्रमुख शिक्षा सचिव और प्रारंभिक शिक्षा निदेशक सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. यह आदेश न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह ने धर्मचंद मीणा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिए.

इस याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता अक्टूबर 2008 में प्रबोधक नियुक्त होने से पहले शिक्षा सहयोगी के रुप में राजकीय सेवा में थे. विभाग ने 12 मार्च 2001 को शिक्षा सहयोगियों को सभी परिलाभ देने के आदेश जारी किए थे. वहीं, राज्य सरकार ने 1 अक्टूबर 2010 को प्रबोधक सेवा नियमों में संशोधन कर पुरानी सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के योग्य माना था, लेकिन अब याचिकाकर्ताओं को पेंशन के लिए पुरानी सेवा को जोड़कर परिलाभ नहीं दिए जा रहे हैं.

इसके अलावा समान भर्ती में लगे याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. याचिकाकर्ताओं को 11 हजार 170 रुपए का वेतन दिया जा रहा है. जबकि समान भर्ती में इसके बाद नियुक्त हुए अभ्यर्थियों को 12 हजार 900 रुपए का वेतन दिया जा रहा है, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

34 साल पुरानी एलडीसी भर्ती में नोशनल परिलाभ नहीं देने पर मांगा जवाब

राजस्थान हाइकोर्ट ने एलडीसी भर्ती-1986 से जुड़े मामले में अभ्यर्थी को नोशनल परिलाभ नहीं देने पर प्रमुख शिक्षा सचिव और शिक्षा निदेशक सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह की एकलपीठ ने अरविंद कुमार जैन की याचिका पर दिए.

पढ़ें- CM अशोक गहलोत ने BJP पर लगाए आरोप, कहा- गजेंद्र सिंह शेखावत को देना चाहिए इस्तीफा

इस याचिका में अधिवक्ता लक्ष्मीकांत मालपुरा ने अदालत को बताया कि वर्ष 1986 में आरपीएससी की ओर से एलडीसी भर्ती निकाली गई. यह भर्ती लंबे समय तक अदालतों में विवादित रही. जिसमें समय-समय पर अभ्यर्थियों को नियुक्तियां दी गई. इस भर्ती में याचिकाकर्ता को भी अदालती आदेश पर दिसंबर 2000 को नियुक्ति मिली.

याचिका में कहा गया कि समान भर्ती में याचिकाकर्ता से पहले नियुक्त हुए दूसरे कई अभ्यर्थियों को सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति दी जा चुकी है. जबकि याचिकाकर्ता फिलहाल यूडीसी के पद पर काम कर रहा है. समान भर्ती में नियुक्त अभ्यर्थियों को एक समान ही वरिष्ठता और परिलाभ मिलने चाहिए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अलवर में 5 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या करने के मामले में फैसला सुनाया है. इस मामले में अभियुक्त राजकुमार को मिली फांसी की सजा को रद्द करते हुए उसे तत्काल रिहा करने को कहा है. इसके साथ ही अदालत ने कोटा में पुराने नौकर के अपने साथी के साथ मिलकर विवाहिता की हत्या और उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म कर हत्या कर दी गई थी.

इस मामले में अभियुक्त मस्तराम और लोकेश मीणा को मिली फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ ने यह आदेश दोनों मामलों में राज्य सरकार की ओर से पेश डेथ रेफरेंस को अस्वीकार कर अपीलार्थियों की अपील पर दिए है.

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मामले के अनुसार 1 फरवरी 2015 को अलवर के बहरोड़ थाना इलाके में 5 साल की बच्ची के अपहरण को लेकर उसके परिजनों ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट पर पुलिस ने राजकुमार को गिरफ्तार किया. लेकिन बाद में पुलिस को एक खंडहर में बच्ची की लाश मिली. जांच में उसके साथ दुष्कर्म होने की बात भी सामने आई थी. इस मामले में अलवर पॉक्सो कोर्ट ने 11 जून 2019 को राजकुमार को अभियुक्त मानते हुए फांसी की सजा सुनाई. इसके खिलाफ राजकुमार की ओर से अपील और राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस पेश किया गया.

दूसरी ओर, कोटा के भीमगंजमंडी थाना इलाके में 31 जनवरी 2019 की रात घर के पुराने नौकर मस्तराम ने अपने साथी लोकेश मीणा के साथ मिलकर विवाहिता की हत्या और उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी. इसके बाद अभियुक्तों ने घर में रखे 10 लाख रुपए और लाखों के जेवरात भी लूट लिए थे. इस मामले में गत 18 फरवरी को कोटा पॉक्सो कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई थी. इस बाबत फांसी को कंफर्म करने के लिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में डेथ रेफरेंस पेश किया तो वहीं अभियुक्तों ने सजा को चुनौती देते हुए अपील पेश की थी.

प्रबोधकों को परिलाभ नहीं देने पर मांगा जवाब

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रबोधक भर्ती-2008 में नियुक्त प्रबोधकों को पुरानी सेवा जोड़कर परिलाभ नहीं देने पर प्रमुख शिक्षा सचिव और प्रारंभिक शिक्षा निदेशक सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. यह आदेश न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह ने धर्मचंद मीणा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिए.

इस याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता अक्टूबर 2008 में प्रबोधक नियुक्त होने से पहले शिक्षा सहयोगी के रुप में राजकीय सेवा में थे. विभाग ने 12 मार्च 2001 को शिक्षा सहयोगियों को सभी परिलाभ देने के आदेश जारी किए थे. वहीं, राज्य सरकार ने 1 अक्टूबर 2010 को प्रबोधक सेवा नियमों में संशोधन कर पुरानी सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के योग्य माना था, लेकिन अब याचिकाकर्ताओं को पेंशन के लिए पुरानी सेवा को जोड़कर परिलाभ नहीं दिए जा रहे हैं.

इसके अलावा समान भर्ती में लगे याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. याचिकाकर्ताओं को 11 हजार 170 रुपए का वेतन दिया जा रहा है. जबकि समान भर्ती में इसके बाद नियुक्त हुए अभ्यर्थियों को 12 हजार 900 रुपए का वेतन दिया जा रहा है, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

34 साल पुरानी एलडीसी भर्ती में नोशनल परिलाभ नहीं देने पर मांगा जवाब

राजस्थान हाइकोर्ट ने एलडीसी भर्ती-1986 से जुड़े मामले में अभ्यर्थी को नोशनल परिलाभ नहीं देने पर प्रमुख शिक्षा सचिव और शिक्षा निदेशक सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह की एकलपीठ ने अरविंद कुमार जैन की याचिका पर दिए.

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इस याचिका में अधिवक्ता लक्ष्मीकांत मालपुरा ने अदालत को बताया कि वर्ष 1986 में आरपीएससी की ओर से एलडीसी भर्ती निकाली गई. यह भर्ती लंबे समय तक अदालतों में विवादित रही. जिसमें समय-समय पर अभ्यर्थियों को नियुक्तियां दी गई. इस भर्ती में याचिकाकर्ता को भी अदालती आदेश पर दिसंबर 2000 को नियुक्ति मिली.

याचिका में कहा गया कि समान भर्ती में याचिकाकर्ता से पहले नियुक्त हुए दूसरे कई अभ्यर्थियों को सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति दी जा चुकी है. जबकि याचिकाकर्ता फिलहाल यूडीसी के पद पर काम कर रहा है. समान भर्ती में नियुक्त अभ्यर्थियों को एक समान ही वरिष्ठता और परिलाभ मिलने चाहिए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

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