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लोकतंत्र में टकराव ठीक नहीं, केवल Revenue के लिए विरोध कर रही गहलोत सरकार : कटारिया

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Published : Nov 2, 2020, 9:14 PM IST

राजस्थान विधानसभा में भी पंजाब की तर्ज पर केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ विधेयक सोमवार को पारित किया. जिसके विरोध में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने केंद्रीय कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताया और प्रदेश सरकार की तरफ से लाए गए विधयकों को किसानों का अहित करने वाला करार दिया.

Rajasthan assembly,  jaipur news
गुलाबचंद कटारिया ने केंद्रीय कृषि बिलों के विरोध में विधेयक लाना लोकतंत्र के लिए घातक बताया

जयपुर. राजस्थान विधानसभा में भी पंजाब की तर्ज पर केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ विधेयक सोमवार को पारित किया गया. इससे पहले सदन के भीतर इन विधेयकों पर चर्चा हुई. जिसमें नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने केंद्रीय कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताया और प्रदेश सरकार की तरफ से लाए गए विधयकों को किसानों के अहित में करार दिया. कटारिया ने इस दौरान यह भी कहा कि यदि केंद्र के क्षेत्राधिकार में लाए गए कानूनों पर राज्य सरकार इस तरह के विधेयकों के जरिए दखल देगी तो ये टकराव लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.

पढे़ं: उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कृषि कानूनों के विरोध में संशोधन बिल लाए जाने को बताया असंवैधानिक

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर यूपीए ने क्यों नहीं किया अमल...

विधेयक पर चर्चा के दौरान बोलते हुए गुलाब चंद कटारिया ने पिछली यूपीए सरकार के दौरान किसानों के लिए किए गए कार्यों की तुलना केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में किए गए कामों से की. साथ ही यह भी कहा कि किसानों के लिए आज हर कोई कह रहा है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें पूरी तरह लागू करें लेकिन स्वामीनाथन आयोग का गठन जब हुआ तब केंद्र में मनमोहन सरकार थी और जब इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंपी तब भी केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी. लेकिन इतने साल शासन करने के बावजूद कभी भी कांग्रेस ने इस आयोग की सिफारिशों पर अमल नहीं किया और जब मोदी सरकार ने इस पर काम करना शुरू किया और कानून लेकर आए तो अब इसे सियासत का हिस्सा बनाकर इसका विरोध किया जा रहा है.

राजस्थान सरकार का विधेयक किसानों के खिलाफ है

मनमोहन सिंह ने बताई थी एक बाजार की जरूरत...

कटारिया ने यह भी कहा कि जिन विषयों पर विरोध हो रहा है, उसका कोई तार्किक जवाब कांग्रेस के नेताओं के पास नहीं है. खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कृषि मीट में यह कह चुके हैं कि पूरे देश को किसानों के लिए एक बाजार के रूप में विकसित करना जरूरी है और यह ऑन रिकॉर्ड भी है लेकिन आज जब केंद्र के मोदी सरकार इसी प्रावधान को शामिल करते हुए बिल लेकर आई तो कांग्रेस शासित राज्य इसका विरोध कर रहे हैं.

पढे़ं: कृषि मंत्री लालचंद कटारिया का भारत सरकार से निवेदन, कहा- कृषि कानून को वापस ले लो

विरोध का कारण प्रदेश सरकार का घटता रेवेन्यू है...

कटारिया ने अपने संबोधन में कहा कि कांग्रेस सरकार केंद्र के इन कानूनों का विरोध इसलिए कर रही है क्योंकि प्रदेश में करीब 5% तक मंडी शुल्क लगता है. मतलब हर बोरी पर किसान को 100 रुपए के करीब प्रदेश सरकार को टैक्स भरना पड़ता है और केंद्र सरकार ने किसान को अपने कानून के जरिए छूट दे दी कि वो अपना माल कहीं पर भी बेचने के लिए स्वतंत्र है.

प्रदेश सरकार अपने रेवेन्यू का रोना रो रही है

ऐसे में प्रदेश सरकार अपने रेवेन्यू का रोना रो रही है. कटारिया ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने कृषि कानूनों के जरिए मंडी में व्यापार को खत्म करने की कोई बात नहीं लिखी बल्कि किसानों को छूट दी है कि वह अपना माल कहीं पर भी बेच सकता है. यदि प्रदेश सरकार किसानों के हित में हैं तो अपना थोड़ा रेवेन्यू छोड़ भी सकती है. जो 5% मंडी शुल्क लग रहा है, यदि प्रदेश सरकार उसको थोड़ा कम करेगी तो निश्चित तौर पर किसान भी मंडियों में अपना माल बेचेगा.

पढे़ं: लोढ़ा का केंद्र सरकार पर जुबानी हमला, कहा- अब किसान का खेत बेचने पर भी आमादा हो गए...

केंद्र के पास है अंतर राज्य व्यापार से जुड़ा अधिकार...

गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि केंद्र के पास संविधान के द्वारा दिया गया अधिकार है. क्योंकि संविधान में अंतर राज्य व्यापार केंद्र के विषय में शामिल किया गया है. लेकिन अब प्रदेश सरकार इस में हस्तक्षेप कर इसके विरोध में कानून बना रही है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है. यदि इस तरह के विधेयक लाए जाएंगे तो यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है और ना ही से ठीक ढंग से लोकतंत्र चल पाएगा. प्रदेश सरकार अपने विधयेक के जरिए दो जींस पर एमएसपी से कम पर ना बेचने के लिए पाबंद किया जा रहा है लेकिन किसान की और भी कई जींस होती हैं, उस बारे में प्रदेश सरकार क्यों नहीं सोचती.

यूपीए की तुलना में मोदी सरकार ने कई गुना बढ़ाया कृषि बजट...

इस दौरान कटारिया ने नरेंद्र मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल के बारे में बताते हुए कहा कि पहले वर्ष में किसानों के लिए 130485 करोड़ का बजट रखा. वहीं दूसरे साल में 134399 करोड़ का बजट रखा. यूपीए सरकार की तुलना में मौजूदा किसानों पर खर्च किए जाने वाला बजट कई गुना अधिक है. मौजूदा केंद्रीय कृषि कानून में एमएसपी को लेकर कोई विवाद नहीं है क्योंकि एमएसपी पर केंद्र सरकार ही खरीद करती है. यदि राज्य सरकार किसानों का हित चाहती हैं तो वह क्यों नहीं खुद एमएसपी पर अपने स्तर पर किसानों का माल खरीद लेती.

जयपुर. राजस्थान विधानसभा में भी पंजाब की तर्ज पर केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ विधेयक सोमवार को पारित किया गया. इससे पहले सदन के भीतर इन विधेयकों पर चर्चा हुई. जिसमें नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने केंद्रीय कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताया और प्रदेश सरकार की तरफ से लाए गए विधयकों को किसानों के अहित में करार दिया. कटारिया ने इस दौरान यह भी कहा कि यदि केंद्र के क्षेत्राधिकार में लाए गए कानूनों पर राज्य सरकार इस तरह के विधेयकों के जरिए दखल देगी तो ये टकराव लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.

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स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर यूपीए ने क्यों नहीं किया अमल...

विधेयक पर चर्चा के दौरान बोलते हुए गुलाब चंद कटारिया ने पिछली यूपीए सरकार के दौरान किसानों के लिए किए गए कार्यों की तुलना केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में किए गए कामों से की. साथ ही यह भी कहा कि किसानों के लिए आज हर कोई कह रहा है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें पूरी तरह लागू करें लेकिन स्वामीनाथन आयोग का गठन जब हुआ तब केंद्र में मनमोहन सरकार थी और जब इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंपी तब भी केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी. लेकिन इतने साल शासन करने के बावजूद कभी भी कांग्रेस ने इस आयोग की सिफारिशों पर अमल नहीं किया और जब मोदी सरकार ने इस पर काम करना शुरू किया और कानून लेकर आए तो अब इसे सियासत का हिस्सा बनाकर इसका विरोध किया जा रहा है.

राजस्थान सरकार का विधेयक किसानों के खिलाफ है

मनमोहन सिंह ने बताई थी एक बाजार की जरूरत...

कटारिया ने यह भी कहा कि जिन विषयों पर विरोध हो रहा है, उसका कोई तार्किक जवाब कांग्रेस के नेताओं के पास नहीं है. खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कृषि मीट में यह कह चुके हैं कि पूरे देश को किसानों के लिए एक बाजार के रूप में विकसित करना जरूरी है और यह ऑन रिकॉर्ड भी है लेकिन आज जब केंद्र के मोदी सरकार इसी प्रावधान को शामिल करते हुए बिल लेकर आई तो कांग्रेस शासित राज्य इसका विरोध कर रहे हैं.

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विरोध का कारण प्रदेश सरकार का घटता रेवेन्यू है...

कटारिया ने अपने संबोधन में कहा कि कांग्रेस सरकार केंद्र के इन कानूनों का विरोध इसलिए कर रही है क्योंकि प्रदेश में करीब 5% तक मंडी शुल्क लगता है. मतलब हर बोरी पर किसान को 100 रुपए के करीब प्रदेश सरकार को टैक्स भरना पड़ता है और केंद्र सरकार ने किसान को अपने कानून के जरिए छूट दे दी कि वो अपना माल कहीं पर भी बेचने के लिए स्वतंत्र है.

प्रदेश सरकार अपने रेवेन्यू का रोना रो रही है

ऐसे में प्रदेश सरकार अपने रेवेन्यू का रोना रो रही है. कटारिया ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने कृषि कानूनों के जरिए मंडी में व्यापार को खत्म करने की कोई बात नहीं लिखी बल्कि किसानों को छूट दी है कि वह अपना माल कहीं पर भी बेच सकता है. यदि प्रदेश सरकार किसानों के हित में हैं तो अपना थोड़ा रेवेन्यू छोड़ भी सकती है. जो 5% मंडी शुल्क लग रहा है, यदि प्रदेश सरकार उसको थोड़ा कम करेगी तो निश्चित तौर पर किसान भी मंडियों में अपना माल बेचेगा.

पढे़ं: लोढ़ा का केंद्र सरकार पर जुबानी हमला, कहा- अब किसान का खेत बेचने पर भी आमादा हो गए...

केंद्र के पास है अंतर राज्य व्यापार से जुड़ा अधिकार...

गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि केंद्र के पास संविधान के द्वारा दिया गया अधिकार है. क्योंकि संविधान में अंतर राज्य व्यापार केंद्र के विषय में शामिल किया गया है. लेकिन अब प्रदेश सरकार इस में हस्तक्षेप कर इसके विरोध में कानून बना रही है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है. यदि इस तरह के विधेयक लाए जाएंगे तो यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है और ना ही से ठीक ढंग से लोकतंत्र चल पाएगा. प्रदेश सरकार अपने विधयेक के जरिए दो जींस पर एमएसपी से कम पर ना बेचने के लिए पाबंद किया जा रहा है लेकिन किसान की और भी कई जींस होती हैं, उस बारे में प्रदेश सरकार क्यों नहीं सोचती.

यूपीए की तुलना में मोदी सरकार ने कई गुना बढ़ाया कृषि बजट...

इस दौरान कटारिया ने नरेंद्र मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल के बारे में बताते हुए कहा कि पहले वर्ष में किसानों के लिए 130485 करोड़ का बजट रखा. वहीं दूसरे साल में 134399 करोड़ का बजट रखा. यूपीए सरकार की तुलना में मौजूदा किसानों पर खर्च किए जाने वाला बजट कई गुना अधिक है. मौजूदा केंद्रीय कृषि कानून में एमएसपी को लेकर कोई विवाद नहीं है क्योंकि एमएसपी पर केंद्र सरकार ही खरीद करती है. यदि राज्य सरकार किसानों का हित चाहती हैं तो वह क्यों नहीं खुद एमएसपी पर अपने स्तर पर किसानों का माल खरीद लेती.

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