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अब बच्चों को मिलेगा पौष्टिक आहार...1.8 करोड़ की परियोजना को मिली मंजूरी

जयपुर के जनजाति आश्रम और मां-बाड़ी केंद्रों में सहित कई छात्रावास आवासीय विद्यालयों में सुपोषण वाटिका स्थापित किया जाएगा. जिससे बच्चों में पौष्टिक आहार संबंधी सभी जरुरतों को पूरा किया जाएगा. जनजातीय मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया ने इसके लिए 1 करोड़ 82 लाख रुपए की परियोजना को मंजूरी दे दी है.

Jaipur tribe ashrams and hostels, जयपुर जनजाति आश्रम और छात्रावास
जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह
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Published : Oct 13, 2020, 1:13 PM IST

जयपुर. प्रदेश के जनजाति आश्रम, छात्रावास आवासीय विद्यालय और मां- बाड़ी केंद्र में रहने वाले बालक बालिकाओं को पौष्टिक सब्जियां और फल खाने को मिलेगा. बालक-बालिकाओं की पौष्टिक आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इन संस्थानों में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग सुपोषण वाटिका और पंचफल उद्यान स्थापित करेगा.

जनजाति आश्रम और मां-बाड़ी केंद्रों में लगाए जाएंगी हरी सब्जियां

जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने बताया कि विभाग की ओर से संचालित आवासीय विद्यालय, आश्रम, छात्रावास, खेल छात्रावास और मां-बाड़ी केंद्र में निवास कर रहे बालक बालिकाओं को पौष्टिक आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इन संस्थाओं में सुपोषण वाटिका और पंच फल उद्यान स्थापित किए जाएंगे. जनजातीय मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया ने इसके लिए 1 करोड़ 82 लाख रुपए की परियोजना को मंजूरी दे दी है.

पढ़ेंः खबर का असरः निर्वाचन आयोग ने मंत्रियों द्वारा सरकारी गाड़ियों के इस्तेमाल पर लगाई रोक

राजेश्वर सिंह ने बताया कि इससे विद्यालयों और छात्रावासों में साल भर फल और सब्जियों की उपलब्धता बनी रहेगी. वहीं, किचन भोजन के वेस्ट का उपयोग कंपोस्ट पिट में किया जाएगा. जिससे जैविक खाद का निर्माण होगा. जिससे उत्पादित सब्जियां और फल रसायन रहित और पौष्टिक होंगे. राजेश्वर सिंह ने बताया कि पंच फल उद्यान के अंतर्गत पपीता, सीताफल, अमरूद, सहजन, चीकू, आम, नींबू और सुपोषण वाटिका में बैंगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, फूल गोभी, पत्ता गोभी, गाजर, मूली, लौकी, तरोई, मटर समेत कई पौधे लगाए जाएंगे.

पढ़ेंः जयपुर में वाहन चोर गणेश खटीक गिरफ्तार, 4 दुपहिया वाहन बरामद

राजेश्वर सिंह ने बताया कि 36 विद्यालयों में से प्रत्येक में सुपोषण वाटिका और पंचफल उद्यान 5 हजार वर्ग मीटर भूमि में विकसित किए जाएंगे. जिस पर लगभग 37 लाख रुपए और 398 छात्रावासों में प्रत्येक में 500 वर्ग मीटर की भूमि घोषित की जाएगी. इस पर लगभग 132 लाखों रुपए व्यय होंगे. इसी प्रकार चारदीवारी युक्त 350 मां-बाड़ी केंद्रों में प्रत्येक 500 वर्ग मीटर भूमि में उक्त वाटिका उद्यान लगाए जाएंगे. जिससे पर कुल लगभग 14 लाख रुपए व्यय होंगे.

जयपुर. प्रदेश के जनजाति आश्रम, छात्रावास आवासीय विद्यालय और मां- बाड़ी केंद्र में रहने वाले बालक बालिकाओं को पौष्टिक सब्जियां और फल खाने को मिलेगा. बालक-बालिकाओं की पौष्टिक आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इन संस्थानों में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग सुपोषण वाटिका और पंचफल उद्यान स्थापित करेगा.

जनजाति आश्रम और मां-बाड़ी केंद्रों में लगाए जाएंगी हरी सब्जियां

जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने बताया कि विभाग की ओर से संचालित आवासीय विद्यालय, आश्रम, छात्रावास, खेल छात्रावास और मां-बाड़ी केंद्र में निवास कर रहे बालक बालिकाओं को पौष्टिक आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इन संस्थाओं में सुपोषण वाटिका और पंच फल उद्यान स्थापित किए जाएंगे. जनजातीय मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया ने इसके लिए 1 करोड़ 82 लाख रुपए की परियोजना को मंजूरी दे दी है.

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राजेश्वर सिंह ने बताया कि इससे विद्यालयों और छात्रावासों में साल भर फल और सब्जियों की उपलब्धता बनी रहेगी. वहीं, किचन भोजन के वेस्ट का उपयोग कंपोस्ट पिट में किया जाएगा. जिससे जैविक खाद का निर्माण होगा. जिससे उत्पादित सब्जियां और फल रसायन रहित और पौष्टिक होंगे. राजेश्वर सिंह ने बताया कि पंच फल उद्यान के अंतर्गत पपीता, सीताफल, अमरूद, सहजन, चीकू, आम, नींबू और सुपोषण वाटिका में बैंगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, फूल गोभी, पत्ता गोभी, गाजर, मूली, लौकी, तरोई, मटर समेत कई पौधे लगाए जाएंगे.

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राजेश्वर सिंह ने बताया कि 36 विद्यालयों में से प्रत्येक में सुपोषण वाटिका और पंचफल उद्यान 5 हजार वर्ग मीटर भूमि में विकसित किए जाएंगे. जिस पर लगभग 37 लाख रुपए और 398 छात्रावासों में प्रत्येक में 500 वर्ग मीटर की भूमि घोषित की जाएगी. इस पर लगभग 132 लाखों रुपए व्यय होंगे. इसी प्रकार चारदीवारी युक्त 350 मां-बाड़ी केंद्रों में प्रत्येक 500 वर्ग मीटर भूमि में उक्त वाटिका उद्यान लगाए जाएंगे. जिससे पर कुल लगभग 14 लाख रुपए व्यय होंगे.

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