जयपुर. प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और एमसीआई से पूछा है कि सरकारी मेडिकल कॉलेज मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर फीस कमेटी की सिफारिश के बिना निजी मेडिकल कॉलेज के समान फीस कैसे वसूल कर रहे हैं. दरअसल न्यायाधीश अशोक गौड़ ने यह आदेश दीर्घा जैन और अन्य की याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता एसएन कुमावत ने बताया कि याचिकाकर्ताओं का सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश हुआ है. यह कॉलेज मैरिट से भरी जाने वाली सीट के लिए 50 हजार रुपए सालाना फीस ले रहे हैं. वहीं मैनेजमेंट कोटे की 35 प्रतिशत सीटों पर निजी मेडिकल कॉलेजों के समान प्रत्येक छात्र से 7 लाख 50 हजार रुपए सालाना फीस ली जा रही है. जबकि फीस निर्धारण कमेटी ने इस फीस के संबंध में कोई अनुशंषा नहीं की है. बिना कमेटी की अनुशंषा के ही फीस वसूली हो रही है.
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याचिका में कहा गया कि राज्य कैबीनेट ने 18 अप्रेल 2017 को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 35 प्रतिशत मैनेजमेंट कोटे की सीट तय करके इन सीटों के लिए निजी मेडिकल कॉलेजों के समान फीस लेने का फैसला किया था. जबकि सुप्रीम कोर्ट के जज पी.ईनामदार और टीएमए पाई के फैसलों के अनुसार हर साल छात्रों से ली जाने वाली फीस केवल फीस निर्धारण कमेटी ही तय कर सकती है. राज्य सरकार निजी मेडिकल कॉलजों की फीस संरचना को ज्यों का त्यों नहीं अपना सकती.
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सरकारी मेडिकल कॉलेज लाभ कमाने वाली संस्था नहीं हो सकते. सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि मैरिट की सीटों पर कम फीस की भरपाई मैनेजमेंट की सीटों से नहीं की जा सकती. सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 35 प्रतिशत मैनेजमेंट कोटा रखना सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाइन के विपरीत है और यह 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता. वह भी तब जबकि मैरिट के आधार पर छात्र नहीं मिलें और सीटें खाली रह जाए. याचिका में यह भी कह गया कि 380 अंक पाने वाले छात्र को सरकारी सीट और समान अंक वाले दूसरे छात्र को मैनेजमेंट कोटे की सीट दी गई है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है.