जयपुर. भारत के संविधान में सभी व्यक्तियों को समान माना गया है. संविधान उस स्वतंत्रता और समानता की गारंटी भी देता है लेकिन आज भी थर्ड जेंडर समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं. देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं. आज भी ट्रांसजेडर सामाजिक और सांस्कृतिक भागीदारी से वंचित हैं. ऐसे में गहलोत सरकार थर्ड जेंडर की समानता सुनिश्चित करने के लिए गहलोत सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. जिसके तहत प्रदेश की गहलोत सरकार ने ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों के लिए नई सेल बना रहा ही है.
लोकसभा में 2019 में ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल पास
भारत के संविधान में सभी व्यक्तियों को समता की गारंटी और सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित किये जाने के बाद भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार होना जारी है, लगातर बढ़ते इन मामलों को देखते हुए ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल की जरूरत महसूस हुई. देश भर में अलग-अलग शहरों से उठी इस संरक्षण बिल की मांग के बाद में 5 अगस्त 2019 को ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल लोकसभा में पास करवा लिया गया. केंद्र में इस बिल को मंजूरी मिलने के साथ सभी राज्यों में भी ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण को लेकर सेल तैयार की जा रही है.
राजस्थान में थर्ड जेंडर के लिए बन रही सेल
प्रदेश की गहलोत सरकार भी ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों के लिए नई सेल बना रही है. इस सेल के लिए पांच पोस्ट का प्रस्ताव तैयार किया गया है. इसमें पुलिस के उच्च अधिकारी के साथ ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के दो सदस्य होंगे. इस सेल के बनने के बाद प्रदेश में ट्रांसजेंडर के साथ हो रही डॉमेस्ट्रिक वॉयलेंस सहित अन्य मामलों में न्याय मिलेगा.
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जयपुर किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर पुष्पा माई ने बताया कि सरकार जो ट्रांसजेंडर के लिए सेल का गठन कर रही है. इसमें कुल पांच लोग होंगे. पुलिस अधिकारीयों के साथ ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के दो लोग शामिल होंगे. ट्रांसजेंडर के लिए अलग से सेल बनने के उनके अधिकारों का संरक्षण होगा.
पूरे देश में इस तबके की आबादी लगभग पांच लाख है लेकिन मतदान के लिए इनकी गणना सिर्फ करीब 35 हजार ही है. राजस्थान में तो स्थिति और भी खराब है. यहां एक अनुमान के हिसाब से 30 हजार ट्रांसजेंडर हैं लेकिन मतदाता सूची में सिर्फ 349 का नाम है. पहली बार 2011 की जनगणना में इस वर्ग को अलग से गिना गया. राजस्थान में ट्रांसजेंडर की आबादी 16 हजार 512 पाई गई. दोबारा 2013 में किए गए सर्वे में इसकी संख्या 22 हजार से अधिक आंकी गई, जो बालिग थे. इनके बीच में कई बार आपसी वर्चस्व, घरेलू हिंसा, क्षेत्र बंटवारे जैसे मामलों को लेकर विवाद होता है. मामला थाने तक भी पहुंचता है लेकिन इनके लिए अलग से बने कानून का सही डिफाइन नहीं होने की वजह से दिक्कतें आती हैं.
शिकायत की पुलिस का होता है अलग रवैया
ट्रांसजेंडर मालिनी दास बताती है कि ट्रांसजेंडर जब किसी भी मामले को लेकर थाने पहुंचते है तो पुलिस का अलग ही तरह का रवैया होता है. इस सेल के बनने के बाद कम से कम ट्रांसजेंडर अपनी परेशानी खुल कर रख सकेगा.
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किन्नरों यानी ट्रांसजेंडर के अधिकार संरक्षण बिल को लोक सभा में मंजूरी दी गई लेकिन क्या ट्रांसजेंडर को इस बिल के जरिए संरक्षण मिलेगा, यह देखने वाली बात होगी या फिर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट की ओर से अलग पहचान के आदेश दिए जाने के बावजूद यह तबका जिस तरह से लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित हैं, उसी तरह से इस कानून से इस तबके को कोई लाभ मिलेगा देखने वाली बात होगी.