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SPECIAL : गणगौर की कहानी 'ईसर-गौर' की जुबानी - जयपुर के पर्व

लोकपर्व गणगौर 15 अप्रैल को है. जीवन में धन-संपदा के प्रदर्शन और आडंबर से दूर रखने वाले इस लोकपर्व को विवाहित महिलाओं द्वारा सुहाग की लंबी उम्र और सौभाग्य को बनाए रखने के लिए किया जाता है. इसलिए इसे 'सुहाग पर्व' भी कहा जाता है. इस दिन ईसर (शिव) और गौरी (पार्वती) की पूजा का विधान है.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
गणगौर की कहानी 'ईसर-गौर' की जुबानी
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Published : Apr 14, 2021, 10:35 PM IST

जयपुर. रंग-रंगीले राजस्थान की स्थानीय परंपराओं की छटा बिखेरने वाले गणगौर पर्व को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है. खासतौर से राजस्थान में तो इसके लिए काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है. अपने विशेष रीति-रिवाजों के चलते यह महापर्व आम लोगों में काफी लोकप्रिय है.

गणगौर की कहानी 'ईसर-गौर' की जुबानी

इस दिन सुहागिनें और कुवांरी कन्याएं मिट्टी से ईसर यानी भगवान शिव और गौर यानी माँ पार्वती को बनाकर, उनको सुंदर पोशाक पहनाकर श्रृंगाए करती है और खुद भी संवरती है. जहां कुंवारी बालाएं मनपसंद वर पाने की कामना करती है तो वही विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करती है. इस दौरान महिलाएं 16 श्रृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की मधुर आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं और राजस्थानी लोक गीतों पर नृत्य कर महापर्व में चार चांद लगाती हैं.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
शिव गौरी की होती है पूजा

गणगौर का व्रत सुहागिनें अपने पति परमेश्वर से छिपकर करती है. यहां तक की शिवजी और पार्वती की पूजा का प्रसाद भी उन्हें नहीं खिलाती. इसको लेकर शिवजी का स्वांग रची तृप्ति विजय ने बताया कि जब गौरव मैया शिव शंकर से छुपकर पूजा किया करती थी और उन्हें मनाने के लिए उनकी तपस्या किया करती थी. इसके लिए मां पार्वती जंगल में जाकर छुपकर के पूजा करती थी.

पढ़ें- राजस्थान में गणगौर की मची है धूम, आज भी गणगौर मनाने की पुरानी परंपराएं निभा रहीं हैं महिलाएं

हालांकि भोलेनाथ को तो फिर भी उनकी तपस्या के बारें में पता चल जाता था लेकिन उन्हें लगता था कि शंकर जो है वो मान जाएं. तो इसी के चलते सुहागिन महिलाएं भी अपने पति की दीर्घायु और सुहाग अटल रखने के लिए पति से छुपकर गणगौर पूजती हैं. जहां कुंवारी लड़कियां भी मनचाहा वर के लिए मां पार्वती से दुआ करती है.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
महिलाओं का सुहाग पर्व है गणगौर

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक गांव में जाते हैं, जहां गरीब घर की महिलाएं भोलेनाथ और गौरी का स्वागत श्रद्धा सुमन अर्पित करके करती हैं. सच्ची आस्था देख माता पार्वती महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती है. इसके बाद माता पार्वती अपने ईसर से अनुमति लेकर एक जंगल में नदी किनारे स्नान करने जाती है जहां बालू मिट्टी से वो भोलेनाथ की प्रतिमा बनाकर कठिन पूजा करती है.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
सुहाग की लंबी उम्र की कामना

इसके बाद वापस लौटने पर शिवजी देर से आने का कारण पूछते हैं. तब माँ पावर्ती बात का टालमटोल कर देती लेकिन भोले भंडारी को गौरी की गुप्त पूजा का पता चल गया. इसको लेकर कठिन तपस्या करने वाली मां पार्वती का स्वांग रची डॉ भार्गवी बताती है कि गणगौर की पूजा हमेशा सुहागिनें करती हैं, क्योंकि गणगौर में गौर के साथ ईसर होते है हमेशा, इसलिए महिलाएं ईसर को ढूंढती हैं. इसके लिए मां गौरी से बहुत सारा सुहाग मिले ओर उनकी जोड़ी शंकर-पार्वती यानी ईसर-गौर की तरह हमेशा बनी रहे, साथ ही उन्ही की तरह प्रेम-भाव उनमें पनपा रहे इसलिए गणगौर पूजती हैं.

जयपुर. रंग-रंगीले राजस्थान की स्थानीय परंपराओं की छटा बिखेरने वाले गणगौर पर्व को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है. खासतौर से राजस्थान में तो इसके लिए काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है. अपने विशेष रीति-रिवाजों के चलते यह महापर्व आम लोगों में काफी लोकप्रिय है.

गणगौर की कहानी 'ईसर-गौर' की जुबानी

इस दिन सुहागिनें और कुवांरी कन्याएं मिट्टी से ईसर यानी भगवान शिव और गौर यानी माँ पार्वती को बनाकर, उनको सुंदर पोशाक पहनाकर श्रृंगाए करती है और खुद भी संवरती है. जहां कुंवारी बालाएं मनपसंद वर पाने की कामना करती है तो वही विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करती है. इस दौरान महिलाएं 16 श्रृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की मधुर आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं और राजस्थानी लोक गीतों पर नृत्य कर महापर्व में चार चांद लगाती हैं.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
शिव गौरी की होती है पूजा

गणगौर का व्रत सुहागिनें अपने पति परमेश्वर से छिपकर करती है. यहां तक की शिवजी और पार्वती की पूजा का प्रसाद भी उन्हें नहीं खिलाती. इसको लेकर शिवजी का स्वांग रची तृप्ति विजय ने बताया कि जब गौरव मैया शिव शंकर से छुपकर पूजा किया करती थी और उन्हें मनाने के लिए उनकी तपस्या किया करती थी. इसके लिए मां पार्वती जंगल में जाकर छुपकर के पूजा करती थी.

पढ़ें- राजस्थान में गणगौर की मची है धूम, आज भी गणगौर मनाने की पुरानी परंपराएं निभा रहीं हैं महिलाएं

हालांकि भोलेनाथ को तो फिर भी उनकी तपस्या के बारें में पता चल जाता था लेकिन उन्हें लगता था कि शंकर जो है वो मान जाएं. तो इसी के चलते सुहागिन महिलाएं भी अपने पति की दीर्घायु और सुहाग अटल रखने के लिए पति से छुपकर गणगौर पूजती हैं. जहां कुंवारी लड़कियां भी मनचाहा वर के लिए मां पार्वती से दुआ करती है.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
महिलाओं का सुहाग पर्व है गणगौर

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक गांव में जाते हैं, जहां गरीब घर की महिलाएं भोलेनाथ और गौरी का स्वागत श्रद्धा सुमन अर्पित करके करती हैं. सच्ची आस्था देख माता पार्वती महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती है. इसके बाद माता पार्वती अपने ईसर से अनुमति लेकर एक जंगल में नदी किनारे स्नान करने जाती है जहां बालू मिट्टी से वो भोलेनाथ की प्रतिमा बनाकर कठिन पूजा करती है.

Gangaur's story is spoken by Isar-Gaur
सुहाग की लंबी उम्र की कामना

इसके बाद वापस लौटने पर शिवजी देर से आने का कारण पूछते हैं. तब माँ पावर्ती बात का टालमटोल कर देती लेकिन भोले भंडारी को गौरी की गुप्त पूजा का पता चल गया. इसको लेकर कठिन तपस्या करने वाली मां पार्वती का स्वांग रची डॉ भार्गवी बताती है कि गणगौर की पूजा हमेशा सुहागिनें करती हैं, क्योंकि गणगौर में गौर के साथ ईसर होते है हमेशा, इसलिए महिलाएं ईसर को ढूंढती हैं. इसके लिए मां गौरी से बहुत सारा सुहाग मिले ओर उनकी जोड़ी शंकर-पार्वती यानी ईसर-गौर की तरह हमेशा बनी रहे, साथ ही उन्ही की तरह प्रेम-भाव उनमें पनपा रहे इसलिए गणगौर पूजती हैं.

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