जयपुर. गणगौर की सवारी जयपुर के परिदृश्य से अपना अलग ही महत्व रखती है. कोरोना की वजह से बीते दो साल बाद (Rajasthan State Culture News) गणगौर की सवारी निकाली गई, जिसे देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा. गणगौर माता की सवारी विशेष रूप से सजाए गए ऊंट, घोड़े, बैलगाड़ी और शाही हाथी के लवाजमे के साथ त्रिपोलिया गेट से निकली.
सवारी के आगे विभिन्न लोक कलाकारों ने कच्ची घोड़ी, गैर, कालबेलिया और चकरी जैसे लोक नृत्य का प्रदर्शन किया, साथ ही जयपुर के कई प्रमुख बैंड ग्रुप ने अपने वादन से वाहवाही बटोरी. इस दौरान नाचते हुए ऊंट और घोड़ा आकर्षण का केंद्र रहे. इस दौरान यूनेस्को टीम भी मौजूद रही, जिसने जयपुर की संस्कृति को जीवंत होते देखा और अपने साथ कैमरे में भी कैद किया. इसके अलावा विदेशी पर्यटकों ने भी इसे एक शानदार अनुभव बताया.
वहीं, दूसरे राज्यों से आए देशी पर्यटकों ने कहा कि उन्होंने इस फेस्टिवल के बारे में अब तक सिर्फ सुना था, आज इसे प्रत्यक्ष देखकर यह पता लग गया कि आखिर क्यों गणगौर की सवारी का विश्व स्तर पर नाम है. वहीं, इस दौरान मौजूद रहे पर्यटन विभाग के निदेशक निशांत जैन ने बताया कि ये आयोजन जयपुर की विरासत से जुड़ा हुआ है और इसे उसी अंदाज में आयोजित किया जाना था. दो साल बाद लोगों को जयपुर की इस प्रसिद्ध गणगौर की सवारी का इंतजार था, जिसे धरातल पर उतारा गया.
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इस दौरान यहां मौजूद रहे लोगों के लिए कई (Gangaur Celebration in Jaipur) आकर्षण के केंद्र थे. आगंतुकों की सुविधा के लिए त्रिपोलिया गेट पर विशेष व्यवस्था की गई थी, ताकि यहां पहुंचने वाले इस रंगारंग महोत्सव का नजदीक से नजारा देख सके. इस दौरान त्रिपोलिया गेट के सामने बने बरामदे पर मौजूद देशी-विदेशी पर्यटकों को जयपुर के प्रसिद्ध घेवर का स्वाद भी चखाया.
वहीं, हेरिटेज निगम कमिश्नर अवधेश मीणा ने बताया कि आयोजन के दौरान निगम प्रशासन ने सफाई व्यवस्था, पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था, गर्मी से बचने के लिए फायर वाहन से पानी का छिड़काव और पीने की पानी की व्यवस्था भी की गई. इस दौरान पुलिस प्रशासन भी मुस्तैदी से तैनात रही. वहीं, कार्यक्रम का लुत्फ उठाने के लिए चीफ जस्टिस एमएम श्रीवास्तव की धर्मपत्नी भी यहां पहुंचीं.
आपको बता दें कि बीते करीब 140 साल गणगौर की सवारी जयपुर की सांस्कृतिक विरासत (Worship of Shiva Parvati for Happiness Married Life) का हिस्सा रहा है. ये आयोजन यहां की शाही विरासत और समृद्धि की याद दिलाता है. दो दिवसीय इस आयोजन को बुधवार को बूढ़ी गणगौर के रूप में मनाया जाएगा.