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Special : यहां तंत्र विद्या में पूजे जाने वाले दक्षिणावर्ती सूंड और दक्षिणाविमुख भगवान गणेश के विग्रह की होती है उपासना - ganesh temple jaipur

छोटीकाशी में एक गणेश मंदिर ऐसा भी है, जहां तंत्र विद्या में पूजे जाने वाले दक्षिणावर्ती सूंड और दक्षिणाविमुख भगवान गणेश के विग्रह की उपासना होती है. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2021) के मौके पर कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से मंदिर में भक्तों की एंट्री 3 दिन तक निषेध रहेगी, लेकिन ईटीवी भारत के माध्यम से हम आपको नहर के गणेश मंदिर के सिद्धिविनायक के दर्शन भी कराएंगे और उनके इतिहास से भी रूबरू कराएंगे...

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भगवान गणेश के विग्रह की होती है उपासना
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Published : Sep 10, 2021, 7:53 AM IST

जयपुर. नाहरगढ़ अभ्यारण क्षेत्र में गढ़ गणेश मंदिर की तलहटी में करीब 150 साल पुराना नहर के गणेश मंदिर मौजूद है. तंत्र साधना करने वाले ब्रह्मचारी बाबा द्वारा किए गए यज्ञ की भस्म से भगवान गणेश का ये विग्रह व्यास राम चंद्र ऋग्वेदी ने प्राण प्रतिष्ठित किया. उन्हीं की पांचवी पीढ़ी आज भी यहां पूजा-आराधना कर रही है. खास बात ये है कि यहां दाहिनी तरफ सूंड और दक्षिणा विमुख भगवान गणेश पूजे जाते हैं.

इस संबंध में मंदिर महंत जय कुमार शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी को संकष्ट नाशक माना जाता है. जबकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी को सिद्धिविनायक माना जाता है. दरअसल, इस तरह की प्रतिमा तंत्र विधान के लिए होती है. ब्रह्मचारी बाबा तंत्र गणेश जी के उपासक थे और नियमित भगवान गणेश की प्रत्यक्ष आराधना करते थे.

भगवान गणेश के विग्रह की होती है उपासना...

शास्त्रों में भगवान गणेश के प्राकट्य की कथा लिखी हुई है, जिसके अनुसार पार्वती माता ने अपने मैल से विनायक के विग्रह को बनाकर उसमें प्राण फूंके थे. आज भी मांगलिक कार्यों में मिट्टी से बने हुए गणेश जी ही स्थापित किए जाते हैं. उसी तरह ब्रह्मचारी बाबा ने यज्ञों में दी गई आहुति से तैयार हुई भस्म रूपी मिट्टी से भगवान गणेश का विग्रह तैयार किया.

पढ़ें : Ganesh Chaturthi 2021 : ऐसे करें भगवान गजानन को प्रसन्न, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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हालांकि, घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश पूजे जाते हैं. इस पर जय कुमार ने बताया कि घरों में जन्म-मरण-परण चलता रहता है. उस दौरान भगवान गणेश की नियमित पूजा-पाठ नहीं हो पाती. उपासक को दोष ना लगे, इसलिए घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी की पूजा की जाती है. चूकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी तंत्र विद्या में पूजे जाते हैं, ऐसे में इनकी नियम और संयम से पूजा-अर्चना करना जरूरी है.

वहीं, मंदिर का नाम नहर के गणेश मंदिर होने के संबंध में जानकारी देते हुए महंत जय कुमार ने बताया कि जयपुर में अधिकतर मंदिरों का नाम उच्चारण क्षेत्रीय विशेषता के आधार पर किया जाता है. जिस तरह गढ़ के रूप में भगवान गढ़ गणेश को विराजमान किया गया. पहाड़ी से घिरा हुआ खोला होने की वजह से खोले के हनुमान जी हैं. ताड़ के वृक्ष अधिक होने की वजह से ताड़केश्वर महादेव हुए. यहां मंदिर के नीचे वर्षा काल के अंदर पहाड़ी क्षेत्र से वृहद पानी आया करता था, जिसकी नहर महीनों तक चलती थी. इसी नहर के चलते भगवान गणेश के इस धाम को नहर के गणेश जी कहा गया.

पढ़ें : Panchang 10 September : जानें शुभ मुहूर्त, तिथि और ग्रह-नक्षत्र की चाल, आज बन रहा ये संयोग

बहरहाल, पूरे देश में गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना का दौर जारी है. हालांकि, जयपुर के गणेश मंदिरों में कोरोना प्रोटोकॉल की पालना के तहत 3 दिन मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध किया गया है. ऐसे में अपने भगवान के दर्शन करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को निराशा हाथ लगेगी. सिद्धिविनायक नहर के गणेश जी का आशीर्वाद सब पर बना रहे, इसके लिए मंदिर प्रशासन की ओर से पूजा-अर्चना का दौर जारी रहेगा.

जयपुर. नाहरगढ़ अभ्यारण क्षेत्र में गढ़ गणेश मंदिर की तलहटी में करीब 150 साल पुराना नहर के गणेश मंदिर मौजूद है. तंत्र साधना करने वाले ब्रह्मचारी बाबा द्वारा किए गए यज्ञ की भस्म से भगवान गणेश का ये विग्रह व्यास राम चंद्र ऋग्वेदी ने प्राण प्रतिष्ठित किया. उन्हीं की पांचवी पीढ़ी आज भी यहां पूजा-आराधना कर रही है. खास बात ये है कि यहां दाहिनी तरफ सूंड और दक्षिणा विमुख भगवान गणेश पूजे जाते हैं.

इस संबंध में मंदिर महंत जय कुमार शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी को संकष्ट नाशक माना जाता है. जबकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी को सिद्धिविनायक माना जाता है. दरअसल, इस तरह की प्रतिमा तंत्र विधान के लिए होती है. ब्रह्मचारी बाबा तंत्र गणेश जी के उपासक थे और नियमित भगवान गणेश की प्रत्यक्ष आराधना करते थे.

भगवान गणेश के विग्रह की होती है उपासना...

शास्त्रों में भगवान गणेश के प्राकट्य की कथा लिखी हुई है, जिसके अनुसार पार्वती माता ने अपने मैल से विनायक के विग्रह को बनाकर उसमें प्राण फूंके थे. आज भी मांगलिक कार्यों में मिट्टी से बने हुए गणेश जी ही स्थापित किए जाते हैं. उसी तरह ब्रह्मचारी बाबा ने यज्ञों में दी गई आहुति से तैयार हुई भस्म रूपी मिट्टी से भगवान गणेश का विग्रह तैयार किया.

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हालांकि, घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश पूजे जाते हैं. इस पर जय कुमार ने बताया कि घरों में जन्म-मरण-परण चलता रहता है. उस दौरान भगवान गणेश की नियमित पूजा-पाठ नहीं हो पाती. उपासक को दोष ना लगे, इसलिए घरों में वामावर्ती सूंड वाले गणेश जी की पूजा की जाती है. चूकि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी तंत्र विद्या में पूजे जाते हैं, ऐसे में इनकी नियम और संयम से पूजा-अर्चना करना जरूरी है.

वहीं, मंदिर का नाम नहर के गणेश मंदिर होने के संबंध में जानकारी देते हुए महंत जय कुमार ने बताया कि जयपुर में अधिकतर मंदिरों का नाम उच्चारण क्षेत्रीय विशेषता के आधार पर किया जाता है. जिस तरह गढ़ के रूप में भगवान गढ़ गणेश को विराजमान किया गया. पहाड़ी से घिरा हुआ खोला होने की वजह से खोले के हनुमान जी हैं. ताड़ के वृक्ष अधिक होने की वजह से ताड़केश्वर महादेव हुए. यहां मंदिर के नीचे वर्षा काल के अंदर पहाड़ी क्षेत्र से वृहद पानी आया करता था, जिसकी नहर महीनों तक चलती थी. इसी नहर के चलते भगवान गणेश के इस धाम को नहर के गणेश जी कहा गया.

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बहरहाल, पूरे देश में गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना का दौर जारी है. हालांकि, जयपुर के गणेश मंदिरों में कोरोना प्रोटोकॉल की पालना के तहत 3 दिन मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध किया गया है. ऐसे में अपने भगवान के दर्शन करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को निराशा हाथ लगेगी. सिद्धिविनायक नहर के गणेश जी का आशीर्वाद सब पर बना रहे, इसके लिए मंदिर प्रशासन की ओर से पूजा-अर्चना का दौर जारी रहेगा.

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