जयपुर. राजस्थान भाजपा में घनश्याम तिवाड़ी और भूपेंद्र सिंह शक्तावत जैसे नेताओं की तो घर वापसी हो गई, लेकिन देवी सिंह भाटी सरीखे दिग्गज नेता की वापसी अटकी है. ये स्थिति तब है, जब भाटी की वापसी के लिए नोखा विधायक बिहारीलाल बिश्नोई और सांसद निहालचंद मेघवाल पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को पूर्व में पत्र लिख चुके हैं. अब चर्चा इस बात की भी है कि आखिर भाटी की घर वापसी में रोड़ा कहां अटक रहा है.
सियासी गलियारों में यह भी चर्चा
दरअसल घनश्याम तिवाड़ी और भूपेंद्र सिंह शक्तावत की भाजपा परिवार में वापसी के पीछे पार्टी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया की अहम भूमिका और रजामंदी रही है. इनमें घनश्याम तिवाड़ी तो पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के घोर विरोधी माने जाते हैं, लेकिन पूनिया उनकी भाजपा में वापसी कराने में कामयाब रहे. वहीं बीकानेर संभाग में अपना प्रभाव रखने वाले राजपूत नेता और पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी को पार्टी में लाए जाने की मांग उठने के बाद भी अब तक उनकी बीजेपी में एंट्री को लेकर कोई कार्रवाई शुरू नहीं हुई.
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वसुंधरा समर्थक माने जाने वाले विधायक बिहारीलाल बिश्नोई और सांसद निहालचंद मेघवाल ने प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिखकर सियासी रूप से भाटी की वापसी को लेकर वातावरण निर्मित करने का काम भी किया, लेकिन भाटी भाजपा में वापस लौटने में कामयाब नहीं हुए. सियासी जानकार यह भी कहते हैं कि देवी सिंह भाटी जिस प्रकार पहले वसुंधरा राजे के समर्थन में अपने बयानों के कारण चर्चाओं में आए थे. वही कारण है जिसके चलते प्रदेश भाजपा में अब तक उनके वेलकम के लिए दरवाजे नहीं खुले.
प्रदेश अध्यक्ष पूनिया का बयान देता ये संकेत
वहीं इस बारे में जब ईटीवी भारत ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया से सवाल किया तो उनका बयान सियासी गलियारों में कुछ और ही संकेत देता नजर आया. पूनिया ने कहा कि जिला इकाई की ओर से आम सामूहिक सहमति के साथ जो भी नाम आता है, उस पर गुण अवगुण के आधार पर विचार कर निर्णय लिया जाता है और आगे भी कोई नाम आएगा तो उस पर विचार कर निर्णय लिया जाएगा.
हालांकि सवाल था कि बिहारीलाल बिश्नोई और निहालचंद मेघवाल ने पत्र लिखकर देवी सिंह भाटी की भाजपा में वापसी की मांग की है, लेकिन जवाब जिला इकाई के सामूहिक निर्णय से जुड़ा आया. अब सवाल उठता है कि क्या देवी सिंह भाटी की बीजेपी में वापसी को लेकर बीकानेर जिले के ही सब नेता एकजुट नहीं हैं और उनके नाम पर अब तक कोई सामूहिक निर्णय नहीं ले पाए या फिर ये मामला किन्हीं अन्य कारणों से अटका है.