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प्रदेश के 44,424 जनजातीय परिवारों को वनाधिकार पट्टे वितरित, समग्र विकास के लिए 5 करोड़ रुपए की योजना मंजूर

जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने बताया कि वनाधिकार अधिनियम के तहत राज्य के वन में निवास करने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासी परिवारों को 44 हजार 424 पट्टों का वितरण कर 34 हजार 849 सेक्टर भूमि का आवंटन किया गया है. इनमें 44 हजार 72 पट्टे व्यक्तिगत श्रेणी में तथा 352 सांप्रदायिक श्रेणी में जारी किए गए हैं. साथ ही इन परिवारों को आर्थिक सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार 5 करोड़ रुपए की परियोजना स्वीकृत की गई है.

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44 हजार 424 जनजातीय परिवारों को वनाधिकार पट्टे वितरित
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Published : Oct 1, 2020, 10:20 PM IST

जयपुर. राज्य में कुल क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 239 वर्ग किलोमीटर में से 3 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है, जो कि 9.51 प्रतिशत है. राज्य में वन क्षेत्र मुख्य रूप से उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, सिरोही, बारां, अलवर और सवाई माधोपुर जिले में फैला हुआ है. अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने बताया कि वनाधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति तथा परंपरागत वनवासियों को अधिकतम चार एकड़ भूमि का पट्टा दिया जा सकता है. जबकि समुदाय के अधिकार के तहत निवास वनोपज का संग्रहण पशु चारण के लिए उपयोगी आदि सम्मिलित है.

44 हजार 424 जनजातीय परिवारों को वनाधिकार पट्टे वितरित

अनुसूचित जनजाति के वनवासियों के लिए पट्टा प्राप्त करने के लिए 30 दिसंबर 2005 से पूर्व वन भूमि अधिभोग किया जाना जरूरी है. जबकि अन्य परंपरागत वनवासियों के लिए उपयुक्त कम से कम तीन पीढ़ी तक वन भूमि में निवास करना जरूरी होता है. राजेश्वर सिंह ने बताया कि राज्य में कुल 79 हजार 600 दावे प्राप्त हुए थे, जिनमें व्यक्तिगत दावे 77 हजार 925, सामुदायिक दावे 16 हजार 775 थे. इनमें से 4,472 व्यक्तिगत को अधिकार पत्र और 352 सामुदायिक अधिकार पत्र जारी किए गए थे. प्रक्रियाधीन दावों की संख्या 2,026 है, जिनमें 1,944 व्यक्तिगत दावे और 82 दावे सामुदायिक दावे हैं.

यह भी पढ़ें: गांधी जयंती के मौके पर जनता के सामने कार्यकाल का लेखाजोखा पेश करेगी गहलोत सरकार

उन्होंने बताया कि वनाधिकार दामों के निस्तारण के लिए संबंधित जिलों के जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है, जिसने मंडल वन अधिकारी सदस्य और उपायुक्त जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग सदस्य सचिव है. इनके अतिरिक्त तीन सदस्य जिला परिषद द्वारा पार्षदों में से मनोनीत किए जाते हैं. इसी प्रकार उपखंड स्तरीय समिति में उपखंड अधिकारी अध्यक्ष क्षेत्रीय वन अधिकारी सदस्य जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग का अधिकारी सदस्य सचिव और पंचायत समिति द्वारा स्वयं के सदस्यों में से तीन सदस्य मनोनीत होते हैं. राज्य में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत जनप्रतिनिधि सदस्यों के उप समितियों के मनोनयन के उपरांत लंबित दावों का अंतिम रूप में निस्तारण किया जा सकेगा.

यह भी पढ़ें: धौलपुर: कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री के बेटे के खिलाफ जारी किया गिरफ्तारी वारंट

राजेश्वर सिंह ने बताया कि पट्टाधारी परिवारों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार से 5 करोड़ की परियोजना स्वीकृत कराई गई है. इस परियोजना के तहत वन क्षेत्र में इन पट्टाधारी परिवारों को मुर्गी पालन, बकरी पालन और सोर्टेड सीमन के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं उपब्ध कराने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. जिससे इन परिवारों को समग्र विकास मार्ग प्रशस्त हो सकेगा.

जयपुर. राज्य में कुल क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 239 वर्ग किलोमीटर में से 3 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है, जो कि 9.51 प्रतिशत है. राज्य में वन क्षेत्र मुख्य रूप से उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, सिरोही, बारां, अलवर और सवाई माधोपुर जिले में फैला हुआ है. अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने बताया कि वनाधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति तथा परंपरागत वनवासियों को अधिकतम चार एकड़ भूमि का पट्टा दिया जा सकता है. जबकि समुदाय के अधिकार के तहत निवास वनोपज का संग्रहण पशु चारण के लिए उपयोगी आदि सम्मिलित है.

44 हजार 424 जनजातीय परिवारों को वनाधिकार पट्टे वितरित

अनुसूचित जनजाति के वनवासियों के लिए पट्टा प्राप्त करने के लिए 30 दिसंबर 2005 से पूर्व वन भूमि अधिभोग किया जाना जरूरी है. जबकि अन्य परंपरागत वनवासियों के लिए उपयुक्त कम से कम तीन पीढ़ी तक वन भूमि में निवास करना जरूरी होता है. राजेश्वर सिंह ने बताया कि राज्य में कुल 79 हजार 600 दावे प्राप्त हुए थे, जिनमें व्यक्तिगत दावे 77 हजार 925, सामुदायिक दावे 16 हजार 775 थे. इनमें से 4,472 व्यक्तिगत को अधिकार पत्र और 352 सामुदायिक अधिकार पत्र जारी किए गए थे. प्रक्रियाधीन दावों की संख्या 2,026 है, जिनमें 1,944 व्यक्तिगत दावे और 82 दावे सामुदायिक दावे हैं.

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उन्होंने बताया कि वनाधिकार दामों के निस्तारण के लिए संबंधित जिलों के जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है, जिसने मंडल वन अधिकारी सदस्य और उपायुक्त जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग सदस्य सचिव है. इनके अतिरिक्त तीन सदस्य जिला परिषद द्वारा पार्षदों में से मनोनीत किए जाते हैं. इसी प्रकार उपखंड स्तरीय समिति में उपखंड अधिकारी अध्यक्ष क्षेत्रीय वन अधिकारी सदस्य जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग का अधिकारी सदस्य सचिव और पंचायत समिति द्वारा स्वयं के सदस्यों में से तीन सदस्य मनोनीत होते हैं. राज्य में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत जनप्रतिनिधि सदस्यों के उप समितियों के मनोनयन के उपरांत लंबित दावों का अंतिम रूप में निस्तारण किया जा सकेगा.

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राजेश्वर सिंह ने बताया कि पट्टाधारी परिवारों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार से 5 करोड़ की परियोजना स्वीकृत कराई गई है. इस परियोजना के तहत वन क्षेत्र में इन पट्टाधारी परिवारों को मुर्गी पालन, बकरी पालन और सोर्टेड सीमन के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं उपब्ध कराने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. जिससे इन परिवारों को समग्र विकास मार्ग प्रशस्त हो सकेगा.

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