जयपुर. गुलाबी नगरी में कोरोना के कारण पर्यटन व्यवसाय ठप हो गया है. कोरोना की वजह से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग काफी मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं. गुलाबी नगरी जयपुर में पर्यटन स्थल पर सैलानियों का मनोरंजन करने वाले कलाकार कोरोना काल में बुरी हालात से गुजर रहे है. कोरोना के चलते इंटरनेशनल फ्लाइट बंद है और देसी पर्यटक भी बहुत कम संख्या में आ रहे हैं.
पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की आवाजाही नहीं होने से राजस्थान के लोक कलाकारों की आय भी बंद हो गई है. ऐसे में लोक कलाकारों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. लॉकडाउन के दौरान तीन महीने तक घरों में कैद रहने के बाद अनलॉक शुरू हुआ. अनलॉक में पर्यटन स्थलों को खेलने के बाद लगा था. एक बार फिर गुलाबी नगरी समेत अन्य पर्यटक स्थल सैलानियों से गुलजार होंगे लेकिन करीब 7 महीने के बाद भी पर्यटन स्थलों पर सैलानियों की आवाजाही बहुत कम संख्या में हो रही है. जिससे लोक कलाकारों को निराशा हाथ लग रही है. लोक कलाकारों को ऐसे संकट के समय मदद की आस है.
गुलाबी नगरी के पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों को अपनी लोक कलाओं की धून पर नाचने पर विवश करने वाले कलाकार आज पर्यटकों की आवाजाही की बाट जो रहे हैं लेकिन कोरोना काल के चलते पर्यटन स्थलों पर विदेशी सैलानियों की आवाजाही नहीं हो रही है. जिससे लोक कलाकार भोपा, कालबेलिया नृत्य, कच्छी घोडी नृत्य, सपेरे समेत अन्य कलाकार जीवनयापन के लिए सहायता को तरस रहे हैं. पर्यटन स्थलों पर रोजाना ये कलाकार अपनी कलाओं को दिखाने पहुंचते है लेकिन पर्यटन स्थलों पर सैलानियों की आवाजाही नहीं होने से इनकी आय नहीं हो रही है. ऐसे में इन लोक कलाकारों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.
यह भी पढ़ें. जहां सपनों को लगते हैं पंख, मूक-बधिर बच्चों के लिए उम्मीद की किरण है 'आशा का झरना'
बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल जाने के लिए फीस नहीं होने से बच्चें को स्कूल भी नहीं भेज पा रहे है. लोक कलाकारों का कहना है कि हम लोगों को सरकार और पर्यटन विभाग से भी कोई सहायता नहीं मिल पा रही है. हम सरकार और पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग से मदद करने की मांग कर रहे हैं लेकिन कोई सकारात्मक पहल नहीं हो पा रही है. रावण हत्था लोक कलाकारों का कहना है कि साहब भूखे मरने की नौबत आ गई है पर कोई मदद करने आगे नहीं आ रहा है.
पर्यटन स्थलों के मुख्य द्वार पर भोपे रावण हत्था की धून पर पर्यटकों के मन मोहक वाली धून सुनाकर झूमने को मजबूर कर देते है. साथ ही कच्छी घोडी, कालबेलिया नृत्यागनाएं अपनी कलाओं को पर्यटकों के सामने नृत्य कर अपनी कला को दिखाकर आकर्षित करती है. जिससे देश ही नहीं विदेशों तक लोग अपने अपने कार्यक्रम में कालबेलिया नृत्य करवाकर अपनी शान बढ़ाते हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते अब इनकी मांग भी नहीं आ रही है. ऐसे में घर परिवार का पालन पोषण करना इनके सामने संकट खड़ा हो गया है.
यह भी पढ़ें. SPECIAL: दशहरे पर यहां रावण के वंशज मनाते हैं शोक, हर रोज मंडोर स्थित मंदिर में होती है लंकेश की पूजा
वहीं पर्यटन विभाग से कोई कार्यक्रम नहीं होने से कलाकारों के लिए बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. रोजाना पर्यटन स्थलों पर पहुंचकर अपनी धून बजाते है. कई घंटे बीत जाने के बाद भी कुछ एक घरेलू पर्यटक ही पहुंचते हैं. कभी कभार शाम तक 50-100 रूपए की इनकम हो जाती है. कई बार निराश होकर लौटना पड़ता है. इन कलाकारों के पास आय का कोई दूसरा जरिया भी नहीं है. ऐसे में परिवार के अन्य सदस्य भी इन कलाओं से जुड़े होने से अन्य आय का स्रोत नहीं होने से पालन पोषण करना बड़ा मुश्किल हो गया है.